Wednesday, December 26, 2018

अनपढ़ मंत्री

लघुकथा - अनपढ़ मंत्री !

कॉफी हाउस की टेबल पर ... दो न्यूज चैनल के पत्रकार, तीन समाचार पत्रों के पत्रकार तथा एक राजनैतिक दल के दो नेता ... आपस में इस बात पर चर्चा कर रहे थे कि .. लो एक अनपढ़ आदिवासी नेता को मंत्री बना दिये, जिसे पढ़ना तक नहीं आता ....

पास की टेबल पर बैठे एक कवि का बे-फिजूल की बहस सुनकर खून खौल गया ... कवि से रहा नहीं गया .... और उठकर बुद्धिजीवी चर्चाकारों पर बेहद शांत अंदाज में पिल पड़े तथा 3-4 सवाल दाग दिए .....

पहला सवाल ... क्या आपको पता है जिसकी आप आलोचना कर रहे हैं उसका जन्म जिस गांव में हुआ था उस गांव में स्कूल नहीं था तथा आस-पास के 20-30 किमी दूर किसी गांव में भी नहीं था ?

दूसरा सवाल ... क्या आपको पता है कि उसके माता-पिता उसे 100, 200, 300 किमी दूर पढ़ने हेतु भेजने में सक्षम नहीं थे अर्थात वह चाँदी की चम्मच लेके पैदा नहीं हुआ था ??

तीसरा सवाल ... क्या आपको पता है कि जब उसके पास के गांव में स्कूल खुला तब तक वह 20 साल की उम्र पार कर चुका था तथा साक्षरता अभियान क्या होता है यह भी वह नहीं जानता था ???

चौथा सवाल ... क्या यह गर्व की बात नहीं है कि वह आदिवासी अंचल से 3 बार, 4 बार, 5 बार से लगातार चुनाव जीतते आ रहा है ????

कवि महोदय सवाल दाग कर चले गए ... और ..... बुद्धिजीवी पत्रकार व नेतागण सवालों के जवाब ढूंढने में लग गए .... !!

~ उदय

Friday, December 14, 2018

अगर चाहो तो इतमिनान से चाहो .... !

01

सब कुछ.. वक्त पे मत छोड़ 'उदय'
वक्त हर घड़ी रहमदिल नहीं होता !

02

यकीनन ये इम्तिहान उनका था
भले ही, कोई और फैल कर दिया गया है आज !

03

आईने का कुसूर तो आईना जानता है
आज तुझे अपने चेहरे को भांपना है !

( भांपना = आंकलन लगाना, अनुमान लगाना )

04

कुछ-कुछ ख्याल से हैं मिजाज तेरे
बदल जाते हैं बार-बार !

05

न आहट, और न ही कहीं कोई सरसराहट है
वक्त करवट बदल रहा है शायद ?

06

अगर चाहो तो इतमिनान से चाहो
झील हैं बहता दरिया नहीं हैं हम !

07

तनिक हार का गम तो हल्का कर लेते मियाँ
सरकारें तो.... हमेशा ही कटघरे में होती हैं !

~ उदय

Friday, December 7, 2018

तमाम उम्र काम न आई दुआ उसकी ... !

01

यकीं नहीं था कि - वो बेवफा निकल जाएंगे
जिनसे सीखा था कभी हमने वफ़ा का पाठ !

02

फड़फड़ाते रहे ख्वाब उड़ान भरने को
इक झौंका हवा का करीब नहीं आया !

03

बात आहिस्ता-आहिस्ता ही कही गई थी लेकिन
खामोशियों से भी रहा न गया !

04

जिन्दगी में, कभी .. किसी इम्तिहान में हारे नहीं थे 
चलो, तुम्हारी खामोशियों से कुछ सबक तो मिला !

05

अब इसे, फितरत कहो, या हुनर
वो, खुद ही बंदर, खुद ही भालू, औ खुद ही मदारी हैं !

06

तमाम उम्र काम न आई दुआ उसकी
बददुआ ने पल में कमाल कर दिया !

07

यहाँ, कोई, एतबार के काबिल नहीं दिखता
क्यों, खामों-खां किसी को आजमाया जाए !

08

तेरे वादे पे अब क्या एतबार करते
जब तेरे दिल पे ही एतबार न रहा !

09

तमाशेबाजो अब तो बाज आ जाओ तमाशों से
लहू जो बह रहा है वो कर्ज है तुम पर !

~ उदय

Saturday, November 24, 2018

ये उनकी बेरुखी का ही असर है शायद ... !

01

हम उन्हें भी याद आएंगे, इक दिन देख लेना तुम
उन्हें लगने तो दो ठोकर किसी सोने की मूरत से ?

02

मिट जाएँ खुद-ब-खुद अंधेरे शायद
वर्ना अब कोई एतबार के काबिल न रहा !

03

अब वो जो आये हैं तो कुछ बात तो होगी ही
वैसे भी, बिना बात के वो आते कब हैं !

04

तमाम कोशिशें नाकाम ही रहीं उनकी 'उदय'
वो, झूठ चेहरे से छिपा नहीं पाए !

05

जीत की चाह इत्ती है, कि कुछ मुगालते में अब भी हैं
शायद ! जब तक हारेंगे नहीं ख्वाब टूटेंगे नहीं !!

06

ये उनकी बेरुखी का ही असर है शायद
वर्ना, हम आदमी कहाँ थे पहले !

07

मुगालतों की कहानी थी भली
कुछ इस तरह, वो जिंदगी से रु-ब-रु न हो सके !

08

दलालों की मेहरवानी से सौदे हो रहे हैं तय
वर्ना, आदमी की कोई कीमत नहीं है !

09

फरिश्तों की खामोशियाँ समझो 'उदय'
कहीं कुछ चूक हो रही है शायद !

~  उदय

Wednesday, November 14, 2018

कुछ महक सी है फिजाओं में ...

01

खुद का, खुद से, खुद हो जाना, 'खुदा' हो जाना है 'उदय'
कब हम करेंगे ये करिश्मा ये बताओ तो जरा ?

02

कुछ रोशनी खुद की भी जगमगाने दो
सिर्फ दिये काफी नहीं गरीबों के लिए !

( दिये = दीप, दीपक )

03

फ़िराक में तो थे कि वो 'खुदा' कहला जाएं मगर
दो घड़ी की रौशनी भी वो दे ना सके !

04

किस बात पे रोएं या किस बात पे हंसे
सारा जग है भूल-भुलैय्या ?

05

हमारी आशिकी भी इक दिन उन्हें रुला देगी
जिस दिन उन्हें कोई उनसा मिलेगा !

06

कुछ महक सी है फिजाओं में
कोई आस-पास है शायद !

07
मेरे निबाह की तू फिक्र न कर
कोई और भी सफर में साथ है मेरे !

( निबाह = निर्वाह, गुजारा, साथ )

08

गर तुझको 'खुदा' का खौफ है तो पीना छोड़ दे
वर्ना ये बता, 'खुदा' ने कब कहा पीना गुनाह है ?

09

यूँ तो, वक्त के साथ फरिश्ते भी बदल जाते हैं
फिर किसी पे क्यूँ करें एतबार उतना ?

10

सारा शहर जानता है उनके सारे इल्जाम झूठे हैं
मगर फिर भी, कचहरी लग रही है !

~ उदय

Saturday, November 3, 2018

ख्वाहिशें

01

ये सच है, तू सदा ही मेरी ख्वाहिश रही है मगर
बच्चों की भूख से बड़ी कहाँ होती हैं ख्वाहिशें ?

02

फ़ना हो गए, कल फिर कई रिश्ते
एक चाँद कितनों संग निभा पाता ?

03

कैसा गुमां जिन्दगी का या कैसा रंज मौत का
कोई दास्तां नहीं, इक दास्तां के बाद ?

04

ये सियासत है या है कोई परचून की दुकां
कोई सस्ता, तो कोई बेतहाशा कीमती है ?

05

न कोई उनकी ख़ता थी न कोई मेरी ख़ता थी
राहें जुदा-जुदा थीं ..... ..... जुदा-जुदा चलीं !

06

ताउम्र तन्हाई थी
कुछ घड़ी जो तुम मिले तो कारवें बनने लगे !

07

ये किसे तूने
मेरी तकलीफों के लिए मसीहा मुकर्रर कर रक्खा है

जिसे खुद
अपनी तकलीफों से फुर्सत नहीं मिलती ?

08

कोई ज़ख्म यादों के सफर में है
कब तलक बचकर चलेगा वो मेरी नजर में है

उसे भी साथ चलना होगा उसके
ज़ख्म जो हर घड़ी जिसकी नजर में है !

09

किस बात का गुमां करूँ किस बात का मैं रंज
पहले फक्कड़ी मौज थी अब है औघड़ी शान !

~ उदय

Saturday, October 27, 2018

कविताएँ लिखना एक जोखिम का काम है ?

01

आपको एक अच्छा कवि बनने के लिए
संपादक, प्रकाशक, मालिक या
इनसे भी बड़ा स्वयंभू होना जरूरी होगा

यदि आप
इनमें से कोई एक भी नहीं हैं तो

तो भी कोई बात नहीं
आप कविताएँ लिखते रहें
शायद
आपकी किसी कविता को पढ़कर
इनमें से किसी के रौंगटे खड़े हो जाएं

या किसी को इतना विचलित कर दे कि वो
आपको
कवि मानने को मजबूर हो जाये

लेकिन
ऐसा कब होगा
इसकी कोई गारंटी नहीं है
सच कहूँ तो
कविताएँ लिखना एक जोखिम का काम है ??

02

किसी के रूठने की, कोई हद तो होगी
या ये सफर ....... यूँ ही चलता रहेगा ?

03

ये कौन किसे मार रहा है
राम रावण को, या रावण रावण को ?

ये कौन भ्रम में है
तू, मैं, या कोई और .... ??

एक रावण जो -
तुम्हारे भीतर है, मेरे भीतर है, हर किसी के भीतर है
उसे कौन -
पाल-पोष रहा है .... ???

04

इल्जामों की फिक्र किसे है 'उदय'
फिक्र तो इस बात की है कि अदालतें उनकी हैं !

05

कैसा गुमां, कैसा गुरुर, और कैसी मगरूरियत
बस, मिट्टी से मिट्टी तक का सफर है ?

06

खामोशियाँ भी जुर्म ही हैं अगर
खामोशियाँ सत्ता की हैं ?

07

कुछ झूठ, कुछ फ़रेब,
कुछ ऐसी ही मिली-जुली फितरत है उसकी,

मगर फिर भी
वो खुद को 'खुदा' कहता है ?

08

न दुख के बादल थे औ न ही गम की घटाएँ थीं मगर
रिमझिम-रिमझिम बरस रही थीं तकलीफें !

09

चाँद का चाँद-सा होना लाज़िमी था
मगर मुस्कान उसकी उससे जियादा कातिलाना थी ?

( लाज़िमी = उचित )

10

आज बाजार में गजब की चिल्ल-पों है 'उदय'
लगता है किसी बेजुबाँ की नीलामी है शायद ?

~ उदय 

Thursday, October 18, 2018

औरत देवी है .... !

01

बड़े अजब-गजब थे फलसफे जिंदगी के
न सहेजे गए, न भूले गए !

( फलसफे = दर्शन शास्त्र, तर्क, ज्ञान, अनुभव )

02

शह और मात का खेल है सियासत
कभी घोड़ा मरेगा, कभी हाथी मरेगा, कभी राजा मरेगा !

03

लोग कहते हैं 'उदय' तुम भी 'खुदा' हो जाओ
सोचता हूँ, करेंगे क्या 'खुदा' होकर ?

न तो मस्जिद
न मजार
और न ही कोई मकबरा है अपने मिजाज सा

रही-सही एक मुहब्बत है अपनी
कहीं वो भी न छिन जाए
तुम्हारे सुझाये 'खुदाई' चक्कर में

वैसे भी, शहर तो भरा पड़ा है, पटा पड़ा है
स्वयंभू 'खुदाओं' से

एक हम 'खुदा' न हुए तो क्या हुआ !!

कदम-कदम पर तो
'खुदा' मिलते हैं, बसते हैं, शहर में अपने !!!!!

04

हम उन्हें संवारते रहे और वो हमें उजाड़ते रहे
कुछ इस तरह, तमाम दोस्त अपने ही रकीब निकले !

सिलसिले दोस्ती के ठहर गए उस दिन
जिस दिन दोस्त अपने ही आस्तीन के साँप निकले !!

05

फुटपाथ पे होकर भी नजर चाँद पे थी
उसके ख्वाबों की कोई इन्तेहा तो देखे ?

06

तलवे चाट लो
या घुटने टेक दो, या दुम हिला लो

या नतमस्तक हो जाओ
बात एक ही है

मतलब
तुमने गुलामी कबूल ली !!

07

विकल्प है तो ठीक है
अगर नहीं है
तब भी एक विकल्प ढूँढ लिया जाता है

गर किसी ने यह भ्रम पाल लिया है कि
अवाम के पास विकल्प नहीं है
इसलिए
वह अजेय है
तो यह उसकी नादानी है

विकल्प -
लंगड़ा, लूला, काना ... भी हो सकता है !

08

बामुश्किल ही सही, ढही तो, एक गुंबद गुनह की
वैसे तो, सारा किला ही गुनहगार दिखे है ?

09

औरत देवी है, सर्व शक्तिशाली है
आदिशक्ति है
पूजी जाती है, पूज्यनीय है

इतना ढोंग काफी है
औरत के
शोषण करने के लिए .... ??

~ उदय

Thursday, October 11, 2018

दोज़ख के ख्याल से सिहर उठता हूँ !

01

दिल भी, कुछ आशिक मिजाज हो रहा है आज
या तो मौसम का असर है, या फिर कोई पास से गुजरा है !

02

लोग, सदियों से छले जाते रहे हैं
आगे भी छले जाएंगे

पहले राजनीति की बुनियाद में छल था
अब सत्ता भी छल युक्त हो गई है

अब,
लोगों को भी छलने की कला सीखनी होगी
नहीं तो
लोग हारते रहेंगे !

03

वो.. कुछ झूठे.. कुछ सच्चे.. ही अच्छे हैं
एक से लोग, हर घड़ी अच्छे नहीं लगते !

( एक से लोग = एक स्वभाव के लोग अर्थात जिनका स्वभाव हर समय एक जैसा होता है ... से है )

04

लौट कर आएंगे, वो ऐसा कह कर गए हैं
क्यों न इस झूठ पर भी एतबार कर लिया जाए !

05

गर तुम चाहो तो मैं कुछ कहूँ वर्ना
सफर खामोशियों का, कहाँ उत्ता बुरा है !

06

इल्जाम उनके रत्ती भर भी झूठे नहीं हैं लेकिन
उनकी म्यादें बहुत पुरानी हैं ?

07

मसला शागिर्दगी का नहीं है 'उदय', उस्तादी का है
कोई, कैसे, किसी... पैंतरेबाज को 'खुदा' कह दे ?

08

पहले ज़ख्म, फिर मरहम, फिर तसल्ली
ये अंदाज भी काबिले तारीफ हैं उनके ?

09

मुगालतों में जिंदगी का अपना अलग मजा है लेकिन
दोज़ख के ख्याल से सिहर उठता हूँ !

( दोज़ख = नर्क, जहन्नुम )

Thursday, October 4, 2018

गरम गोश्त

01

यूँ तो ....... हर सियासत में, अपने लोग बैठे हैं
पर, हम ये कैसे भूल जाएं कि वे सियासती हैं !

02

मैं भी उसके जैसा होता, थोड़ा सच्चा-झूठा होता
थोड़ा इसका
थोड़ा उसका
सबका थोड़ा-थोड़ा होता

मंदिर होता - मस्जिद होता
गाँव भी होता
शहर भी होता
सबका थोड़ा-थोड़ा होता 

बच्चा होता
बूढ़ा होता
इधर भी होता - उधर भी होता
मैं भी उसके जैसा होता, थोड़ा सच्चा-झूठा होता !

03

पुरुष को अब बंधनों से मुक्त कर दिया गया है
साथ, स्त्री को भी

अब दोनों स्वतंत्र हैं
किसी दूसरे-तीसरे के साथ रहने के लिए, सोने के लिए
लेकिन

कितनी भयंकर होगी वो रात, वे मंजर
जब
एक ही छत के नीचे, शहर में
दो-दो .. तीन-तीन .. तूफान मचलेंगे ... ?

सोचता हूँ तो दहल उठता हूँ कि
कब तूफान ..
किसी के हुए हैं .... ??

04

औरत को आजादी चाहिए
लेकिन कितनी ?

कहीं उतनी तो नहीं, जितनी -

एक बच्चे को होती है
या उतनी जितनी एक बदचलन पुरुष को है

लेकिन एक सवाल है
औरत तो सदियों से ही आजाद है, मर्यादा में
फिर कैसी आजादी ?

हम यह कैसे भूल रहे हैं कि
पुरुष भी तो एक मर्यादा तक ही आजाद है

अगर मर्यादा से ऊपर, बाहर
कोई आजादी है, और वह उचित है, तो

मिलनी ही चाहिए
औरत भी क्यों अछूती रहे, ऐसी आजादी से ?

05

बड़े हैरां परेशां हैं सियासी लोग
इधर मंदिर - उधर मस्जिद, किधर का रुख करें ?

06

न वफ़ा, न बेवफाई
कुछ सिलसिले थे यूँ ही चलते रहे !

07

कृपया कर
गड़े मुर्दे मत उखाड़ो, सिर्फ हड्डियाँ ही मिलेंगी
वे किसी काम न आएंगी

क्या किसी को डराना है ?
यदि नहीं तो

किसी ताजे की ओर बढ़ो
स्वाद मिलेगा

गरम खून, गरम गोश्त
गरमा-गरम

सुनो, अगर ताजा न मिले तो
किसी जिंदा को उठा लो

हमें तो अपना पेट भरना है
हम काट लेंगे .... !!

08

सुनो, कहो उनसे, अदब में रहें
हम इश्क में हैं, कोई उनकी जागीर नही हैं !

09

गुमां कर खुद पे, हक है तेरा
पर जो तेरा नहीं है उस पे गुमां कैसा ?

~ उदय

Tuesday, September 25, 2018

आडंबर

01

ये जो सियासत है, सियासतबाज हैं
वे अपने नहीं हैं

किसी दिन आजमा लेना, वे मुल्क के भी नहीं हैं !

 02

लोग काम में उलझे रहे, हम इश्क में
कुछ इस तरह.. फ़ना हुई है जिन्दगी !

 03

मजबूरियाँ ले आई हैं .. यहाँ मुझको
वर्ना
कौन खुशनसीब तेरे आगोश से यूँ ही चला आता ?

04

दीवाना हूँ कैसे बाज आऊँ आदत से
तुझे देखूँ, मिलूँ, और चूमूँ न !

05

कुछ हुनर मुझे भी बख्श दे मेरे मालिक
तेरी महफ़िल में अब भी ढेरों उदास बैठे हैं !

06

लगी थी आग, धधक रहे थे जिस्म, दोनों के मगर
कहीं कुछ फासले थे जो उन्हें थामे हुए थे !

07

ये जरूरी तो नहीं हर इल्जाम का मैं जवाब देता फिरूँ
क्या कुछ लोग हँसते हुए अच्छे नहीं लगते ?

08

दबी जुबान से वो खुद को गुलाम कहते हैं
इश्क हो जाये तो फिर शाह कहाँ रहते हैं !

09

जिस दिन गणेश प्रसन्न हुए
घर में ही रुकने, रुके रहने का मन किये
उसी दिन
तुम कर आये विसर्जित

वो भी कहाँ ?
एक दूषित जल में

क्यों ?

क्या ईश्वर -
तुम्हारे आडंबर से छोटे हैं, झूठे हैं ??

~ उदय 

Thursday, September 20, 2018

लंगर

01

होंगे वो कातिल जमाने की नजर में, मुझे क्या
मुझे तो, दे जाते हैं सुकूं दो घड़ी में उम्र भर के लिये !

( यहां ... "मुझे क्या" से अभिप्राय ... जमाने से मुझे कोई लेना-देना नहीं है ... से है .... अर्थात मैं क्यूँ परवाह करूँ जमाने की ... )

02

वो, बहुत मंहगी शराब पीता है
ठहरता नहीं है पल भर भी, छक कर शराब पीता है

बैठा है आज लंगर में, इसलिए
काजू, कबाब, टंगड़ी, चिकन चिल्ली के साथ पीता है

हम भी देखेंगे उसे, उस दिन
अपने पैसों से, वो कितनी शराब पीता है !

03

हार गए, थक गए, मर-खप गए
शहर के कइयों नेता ...

मगर
इस, मंदिर-मस्जिद के बीच की ये दीवार
वो
आधा इंच भी
इधर-उधर,
टस-मस कर नहीं पाए !

आज, ये जो तेरे सामने हैं, स्वार्थी, मतलबी लोग
ये तुझे
बरगलायेंगे,
फुसलायेंगे,
ललचाएँगे,
पर तू
इन नामुरादों पे, कभी ऐतबार मत करना

क्योंकि -
सुकून
अमन
चैन
सब कुछ अपना है
और
ये, मंदिर-मस्जिद के बीच की दीवार, भी अपनी है
मंदिर भी अपना है, मस्जिद भी अपनी है

ये शहर भी अपना है !

04

पुतला दहन ... ?
-------
पुतला दहन
अब एक बहुत पुरानी परंपरा हो गई है
विरोध की

इस प्रतीक से
अब कोई असर नहीं पड़ता है शैतानों पर

अब पीड़ितों को
विरोध का कोई नया तरीका ढूँढना होगा
नहीं तो
शैतान, शाम-रात तक, सब कुछ मुस्कुरा कर भूल जाएंगे

और
आपकी पीड़ा व पुतला दहन
मात्र
प्रतीक बन कर राह जाएंगे

आप .. इक्कीसवीं सदी में हैं
आज
अठारहवीं, उन्नीसवीं, बीसवीं सदी के हथियार
सब फुस्स हैं ....
कुछ .. आज के हिसाब से सोचो .. करो ... ठोको .... ?

05

'उदय' न तो हमें तुम्हारी कविता समझ में आती है
और न ही शेर
क्या लिखते हो, क्या पढ़ते हो, क्या समझते हो
तुम्हीं जानो

हमें तो सब घंडघोल ही लगते हैं

तुम
ऐसा क्यूँ नहीं करते
कुछ और लिखो, जो हमें समझ में आये
सबको समझ में आये
जो दुनिया के लोग लिख रहे हैं, पढ़ रहे हैं

जैसे
कुछ नंगा-पुंगा .. सैक्सी टाइप का ...
मचलते हौंठ, ललचाते स्तन, पुकारती अधनंगी पीठ ...
फुदकते नितम्ब, .. इससे भी कुछ हाई लेबल का

कब तक, बोलो कब तक
तुम अपनी गंवार टाइप की लेखनी से
हमें बेहोश करते रहोगे ??

~ उदय 

Sunday, September 16, 2018

वक्त-वक्त की बात

01

एक और अनर्गल कविता ...
-----

आधी लूट
पूरी लूट
कच्ची लूट
पक्की लूट

टमाटर लूट
प्याज लूट
डीजल लूट
पेट्रोल लूट
बैंक लूट
रुपया लूट
लूट सके तो लूट, भाग सके तो भाग ..

चौकीदार अपना, दरोगा अपना, पंच-सरपंच सब अपने
बस ..
तू ... लूट .... लूट .... लूट .....

लूट .. लूट के लूट ... फिर लूट के लूट ....

लंदन जा .. न्यूयार्क जा .. मेलबोर्न जा .. पेरिस जा
कहीं भी जा के बैठ ...

अँगूठा दिखा .... पीठ दिखा ... अकड़ पकड़ के बैठ ..
तेरी मर्जी .... हा-हा-हा .. तेरी मर्जी ... !!

~ उदय

02

14 सितंबर ..

"हिन्दी दिवस ... आज की हिन्दी पर चाटूकारों का कब्जा है और वे इसे अपने चंगुल से निकलने नहीं देंगे .. किन्तु ... जो हिन्दी से प्रेम करते हैं वे करते रहेंगे !"

03

कोई रंज नहीं है कि वे इकरार से बचते हैं
इतना काफी है कि वो इंकार नहीं करते !

04

वक्त .... वक्त .... वक्त ...... वक्त-वक्त की बात है 'उदय'
कभी उन्हें काजल से प्रेम था औ अब हिना प्यारी हुई है !

05

इनके .. उनके .. किन-किन के सवालों के वो जवाब दें
सच तो ये है ..
न हिन्दू .. न मुसलमां ... वो कुर्सी के ज्यादा करीब हैं !

06

इधर हम तन्हा ..…............ उधर वो तन्हा
इस मसले का कोई हल तो बताओ 'उदय' !

07

वो इतने करीब से गुजरे हैं
लगता नहीं कि बहुत दूर पहुँचे होंगे !

( यहाँ करीब से आशय ..  जानबूझकर टकराते-टकराते बच कर निकलने से है )

08

चोट दौलत की ... जिस घड़ी उनका सीना चीर देगी
देखना ... उस दिन उन्हें भी मुफ़लिसी भाने लगेगी !

09

दरअसल, हम भी .. उनकी तरह ही तन्हा हैं
पर ये बात .. जा के ... कौन समझाए उन्हें !

~ उदय

Friday, September 14, 2018

हिन्दी .... नचइयों की मौज !

इक दिन .. मैं ... बिन बुलाये मेहमान की तरह
एक कार्यक्रम के ... दर्शक दीर्घा में जाकर बैठ गया

मैंने देखा ..
कुछ नचइये हिन्दी को नचवा रहे थे

हिन्दी घूँघट में थी
और
नचइये .. हिन्दी संग मदमस्त झूम रहे थे

नचइये किस मद में थे
यह कह पाना मुश्किल है
क्योंकि -
आजकल .. नशे भी कई प्रकार के होते हैं

खैर .. छोड़ो ...

कुछ देर बाद मैंने देखा
हिन्दी .... ब्रा और पेंटी में नाच रही थी
और
नचइये .. मंजीरे, ढोल, नगाड़े, इत्यादि पीट रहे थे

फिर .. कुछ देर बाद ... क्या देखता हूँ

हिन्दी ... ब्रा-पेंटी औ चुनरी में स्टेज पर चुपचाप खड़ी थी
और .. सारे नचइये कुर्सियों में ससम्मान बैठे थे

हॉल में तालियाँ गूँज रही थीं
पुरुस्कार वितरण का समय आ गया, यह सोचकर

मैं ... उठकर चला आया .... ??

~ उदय

Thursday, September 13, 2018

कोई आखिरी इच्छा ... ?

01

एक अनर्गल कविता ....
-------------

कुत्ता भौंक रहा था
उसे देखकर आदमी चुपचाप बैठ गया

कुछ देर बाद
आदमी उठ खड़ा हुआ

यह देख
कुत्ता चुपचाप बैठ गया

सहम गया
और आदमी को भौंचक देखने लगा

उसे डर था
कहीं आदमी न भौंकने लगे .... ?

02

दिन का सफर तो जैसे-तैसे कट ही जाएगा 'उदय'
कोई कहे उनसे, हमें अंधेरों में उनकी ज्यादा जरूरत है !

03

कभी अपना भी किसी के मुहब्बती महल में डेरा था
पर .. अब ... सड़क पर हैं !

04

मँहगाई ....

फरिश्ते नहीं आयेंगे बचाने तुमको
गर, हिम्मत है तो खुद ही जूझ लो उनसे !

05

लो .. तन्हाई भी बेवफा निकली
हर घड़ी उनको लिए फिरती है !

06

एक और अनर्गल कविता ...
-----------

हुजूर ..
आपने सारे के सारे खेत उजाड़ दिये
फसल चौपट कर दी
आपका शुक्रिया

हमने आप पे भरोसा किया
बहुत हुआ

अब और नहीं
कोई आखिरी इच्छा .... ?

07

इक दिन .. तुझे भी खाक होना है
आज भभक ले जितना जी चाहे !

08

कुसूर उनका नहीं है
हमें ही मुहब्बत रास नहीं आई शायद !

09

वजह कुछ खास नहीं है लेकिन
दलितों को लेकर दिलों में उनके गुबार बहुत है !

~ उदय

Sunday, September 9, 2018

तीखी घड़ी

01

कुसूर उनका नहीं है 'उदय'
दिल अपना ही तनिक काफ़िर निकला !

02

दिल्लगी ......... नहीं .. ऐसा कुछ भी नहीं है
बस, कुछ यूँ समझ लो, वो हमें पहचानते हैं !

03

बहुत काफी नहीं थे फासले
मगर खामोशियों की जिद बड़ी थी !

04

बड़ी तीखी घड़ी है
हैं भक्त औ भगवान दोनों कटघरे में

एक ताने तीर है
तो एक पकड़े ढाल है

कौन सच्चा ..
कौन झूठा ..
धर्म विपदा में खड़ा है !

05

सिर्फ कत्ल का इल्जाम है बेफिक्र रहो
यहाँ सजी सब दुकानें अपनी हैं !

06

अनार, सेव, अँगूर के बगीचों पे उनका कब्जा है लेकिन
दलितों की बाड़ियों में लगे बेर उन्हें चुभते बहुत हैं !

07

वो खुद ही 'खुदा' होने का दम भर रहे हैं
जो हिन्दू-मुसलमां में भेद कर रहे हैं !

~ उदय

Thursday, September 6, 2018

हाजिर जवाबी

01

काश, इश्क की भी कोई परिभाषा होती
हम पढ़ लेते, रट लेते

और
हू-ब-हू टीप देते

कुछ इस तरह ..

स्कूल की, प्रिंसिपल की, मास्टर की
सब की धज्जियाँ उड़ा देते

तुम तो क्या ..

गर, राधा भी सामने होती तो
हम, उसे भी प्रीत लेते !

~ उदय

02

क्या हम बगैर समझौते के साथ नहीं चल सकते
साथ नहीं रह सकते

कुछ अच्छाइयों, कुछ बुराइयों के साथ
यूँ ही .. बगैर रिश्ते के

जरूरी तो नहीं
कुछ रिश्ता हो, हम सोलह आने खरे हों

और, वैसे भी
हम, उम्र के जिस पड़ाव पे हैं

वहाँ
अहमियत ही क्या है रिश्तों की, पैमानों की ... !

~ उदय

03

भय ..
दहशत ..
खौफ ..
ड़र ..
आतंक ..
मायूसी ..
चहूँ ओर .. कुछ ऐसा ही माहौल हो गया है हुजूर

मुझे तो
लगभग हर चेहरे पे इंकलाब लिखा नजर आ रहा है

आप भी .. अपनी नजर पैनी करिए हुजूर
ये मौन क्रांति ...

शायद
अपनी ओर ही बढ़ रही है .... !!

~ उदय

04

उनकी .. हाजिर जवाबी भी लाजवाब है 'उदय'
झूठ पे झूठ .. झूठ पे झूठ .. फिर झूठ पे झूठ !

~ उदय

05

उनका .. पास से गुजरना ही काफी था
सारे ज़ख्म .... खुद-ब-खुद हरे हो गये !

~ उदय

Sunday, September 2, 2018

दहशतगर्दी

01

न तू
न तेरी मोहब्बत
और न ही ये तेरा शहर रास आया

सोचता हूँ
मैं यहाँ अब तक रुका क्यूँ था ?

~ उदय

02

साब जी
उसकी मंशा ठीक नहीं है ...
कहो तो -
गिरफ्तार कर लूँ ?

अबे, तुझे कैसे पता ??

अरररे ... साब जी
वह ..
सोशल मीडिया पर रोज कुछ भी उट-पुटांग लिख कर
क्योश्चन(?)मार्क लगा देता है

उसकी सवाल करने की .. आदत ... मंशा .....

समझो न साब जी
ऐसे लोग ... कितने खतरनाक .... ???

~ उदय

03

उसके शब्द
खंजर से भी ज्यादा पैने हैं
और सवाल
मिसाइल से भी ज्यादा विस्फोटक

उसे पढ़कर, सुनकर
कई लोग सुध खो बैठते हैं

और

आप यह मानने के लिए तैयार नहीं हैं कि -
वह देशद्रोही है ..... ?

क्यूँ मी लार्ड .. क्यूँ .... ??

~ उदय

04

तुम मुझे समझने की कोशिश करते रहो
और जानने की भी
तुम्हारी मर्जी

पर
ये मत भूलो कि तुम अब मेरे दायरे में हो

मैं
किसी न किसी दिन

बड़े आहिस्ते
तुम्हारे भीतर, पूरा का पूरा समा जाऊँगा

फिर
बेसुध जिस्म और चमचमाती आँखों से

समझते रहना मुझे ... !!

~ उदय

05

अब .. तब ..

तब ... अब ..
बोलो .. कब तक खामोश रहें

कहो.. कुछ तो कहो
क्या .. यूँ ही ... तुम भी खामोश रहोगे ?

खामोशी भी .. कभी-कभी ..
चुभने लगती है

देखो .. सुनो ..
बीच-बीच में कुछ बोलते रहा करो

जुबां से न सही तो
आँखों से .. !

~ उदय

06

लो, अब तो
बच्चों ने भी घर से निकलना बंद कर दिया है

चीलें भी मंडराने लगी हैं आसमां में

परिंदों में फड़फड़ाहट
जानवरों में छटपटाहट
और
बुजुर्गों में घबराहट साफ नजर आ रही है

क्या इतनी दहशतगर्दी पर्याप्त नहीं है हुजूर ?

कहो तो -
खून से सने खंजरों की
एक-दो रैलियां और निकलवा दूँ हुजूर ??

~ उदय

07

जी चाहता है
गटक लूँ तुम्हें .. गुपचुप की तरह ...

गटकते रहूँ ..
गटकते रहूँ ..
गटकते रहूँ ..
गटकते रहूँ ..

तब तक ... जब तक ....
डकार न आ जाये

मैं जानता हूँ
घंटे दो-घंटे में हजम हो जाओगी तुम

कुछ इस तरह
हम ..
एक हो जाएंगे .. सदा सदा के लिए ... !

~ उदय 

Thursday, August 30, 2018

झूठे दिलासे ...

01

आओ, अभी तो आखिरी साँस तक साथ चलें
फिर देखेंगे, किधर जाते हैं ..................... ?

~ उदय

02

बिन लकीरों के इन हाथों में तुम उतर आये कैसे
सोचता हूँ तो
खुद पे यकीं नहीं होता

मगर ..

फिर
तेरे हाथों की लकीरों का भी तो ख्याल आ जाता है !

~ उदय

03

एक आदमी
जो अभी-अभी 'कलेक्टरी' छोड़ कर आया है

वह
हमारा तुरुप का इक्का है

जीत तय है ....
क्योंकि

अभी
हमारे पास और भी इक्के हैं !

~ उदय

04

कुछ खामोशियाँ चेहरे पे
क्यों ?

क्या कोई वजह नहीं है मुस्कुराने की
या चाहते नहीं हो मुस्कुराना

या फिर चाहते हो
कि
मैं कहूँ ...

मैं कहूँ, या न कहूँ

बस
तुम इतना समझ लो
कि
मैं चाहता हूँ कि तुम मुस्कुराओ ...

वजह जरूरी नहीं है
मैं चाहता हूँ .... !

~ उदय

05

उनके मिजाज कुछ मुझसे मिलते नहीं हैं
फिर भी वो मेरे साथ चल रहे हैं

तुम भी
मेरे साथ चलो

शायद, ख्वाबों के मिजाज मिल जाएं
या खामोशियों के !

~ उदय

06

बस
तुम
एक बार मेरी नजर से खुद को देखो तो सही

गर
खुद को खुद से प्यार न हो जाए तो कहना

ये
मेरी नजर है

जो
ठहर जाती है .. कहीं न कहीं .... !

~ उदय

07

न दुख, न दर्द, न दया, न करुणा, न मासूमियत

कुछ ऐसे मिजाज हैं,
मेरे महबूब के !

~ उदय

08

सच ..
उनके झूठे दिलासे भी काम कर रहे हैं

हमें, हम पर
एतबार होने लगा है !

~ उदय 

Saturday, August 25, 2018

हुजूम ...

01

सच ..
लिपट-लिपट के सिमट रही थीं
तकलीफें हमसे

जबकि हमें चाह थी कि कोई और लिपटे !

~ उदय

02

रोज ख्याल बदल जाते हैं उनके
मेरे बारे में

लिखता जो हूँ
लिखे को, मुझसा समझ लेते हैं !

~ उदय

03

वह आई,
और आकर सीधे बाजू में बैठ गई

लगा जैसे
कन्फर्म टिकिट हो उसके पास ... !

~ उदय

04

उतनी अस्तियाँ नहीं थीं
जितनी विसर्जित की जा रही हैं
गंगा भी मौन है
जमुना भी मौन है
सरस्वती भी क्या कहती बेचारी
हुजूम से .... !

~  उदय

05

कल ..... राख बन के मैं ...... गंगा में समा जाऊँगा
आज, जी भर के, उठती लपटों में देख लो मुझको !

~ उदय

06

मेरे बाप की जागीर है, पैसा है
अब, मैं उससे ..

आसमान में मोबाइल उड़ाऊँ
या साईकल से व्हाट्सअप-व्हाट्सअप करूँ
तुम्हें क्या ?

तुम, बेवजह ही
चूँ-चूँ .. चूँ-चूँ ... कर रहे हो .... !

~ उदय 

Thursday, August 23, 2018

सावधान ...

01

कुछ उट-पुटांग से ख्याल हैं हमारे
तुम्हारे बारे में

दूर रहा करो हमसे
और
सावधान भी

कहीं ऐसा न हो
किसी दिन

जमकर
कोसो हमें .... !

बस
इसे तुम वार्निंग समझ लो ..... !!

~  उदय

02

एक बार
एक गधे को भ्रम हो गया
कि
वह शेर है

बस
फिर क्या था
इसी भ्रम में ..
पाँच साल गुजर गए !

~ उदय

03

अभी तय नहीं है लौटने का वक्त
पर
तय है लौटना

बस
तुम
आस मत छोड़ना !

~ उदय 

Wednesday, August 22, 2018

मन की लहरें ..

01

बहुत तीखी मिर्ची है
वो, खुद को कुछ ऐसा समझती थी

पर
उसे मेरे स्वाद का अंदाजा नहीं था

बस
फिर क्या था .... !

~ उदय

02

तुम्हें देखते ही ...

मुँह में .. पानी-सा आ गया था
और ..
दाँत भी खट्टे हो गए थे

समझ गया था
इमली सा स्वाद है तुम्हारा,

पर
मन नहीं माना .... !

~ उदय

03

कुछ कषैला सा स्वाद है तुम्हारा .. औ खुशबू भी
क्या तुम्हें पता था कॉफ़ी पसंद है मुझे ...........?

~  उदय 

Sunday, August 19, 2018

ये बाजार .. तुम्हारा ही बनाया हुआ है ... ?

इक दिन तुम्हारी भी कीमत लगेगी
तुम भी बिक जाओगे

ये बाजार है
यहाँ -

ईमान
स्वाभिमान
सत्य
सिद्धांत
तन
मन
जिन्दगी
मौत
जिन्दे
मुर्दे
सब बिक जाते हैं, बिक रहे हैं

देखना
इक दिन
तुम्हारी भी बोली लग रही होगी

और
तुम बिक चुके होगे
कोई .. तुम्हें खरीद कर अपने साथ ले जा रहा होगा

ये बाजार .. तुम्हारा ही बनाया हुआ है ... ?

~  उदय

Saturday, August 18, 2018

उस्ताद की उस्तादी

कल
आखिरी 'शो' था 'उस्ताद' का
हो गया, पर्दा गिर गया

लोग निहारते रहे, नम आँखों से
और
'उस्ताद' अलविदा कह गए

यही तो उस्तादी थी 'उस्ताद' की
कि -
उन्हें
आखिरी 'दृश्य' में अलविदा कहना था
और फिर लौटना भी नहीं था

बस
फिर क्या था

इसलिए
उन्होंने
'दृश्य' चुना 'मौत' का
जमाई 'धूनी' ..
पंचतत्वों में, और विलीन हो गए ... !

लोग निहारते रहे, नम आँखों से .... !!

~ उदय

Friday, August 17, 2018

तेरे छूने से

मैं टूटा नहीं था उतना उसके तोड़ने से
जितना मैं बिखर गया हूँ
तेरे छूने से

तू है कौन
ये मुझको बतला दे
मंशा क्या है आने की जतला दे

मैं खास नहीं हूँ
ये भी तुझको मालूम है

तू आम नहीं है
ये भी मुझको मालूम है

क्यूँ बिखेर चला जा रहा है मुझको
बस, तू ..
इतना बतला दे

क्यूँ आया था ...
मंशा क्या थी .. जतला दे .... ?

मैं टूटा नहीं था उतना .... !!

~ उदय

Thursday, August 16, 2018

'अटल' अमर थे, जीवन पथ पर

आम नहीं थे
खास नहीं थे
कुछ तो थे, कुछ हटके थे

कोई नहीं था
कोई नहीं है
उनके कद का, उनके जैसा

कुछ ऐसा किरदार था ...

राह दिखाते, राह बताते, राह बनाते
कदम-कदम पर

'अटल' अमर थे, जीवन पथ पर
न हारे न जीते जग से ... !

~ उदय

Wednesday, August 15, 2018

आजादी

मुबारक हो
तुम्हें .. तुम्हारी .. भाषणी आजादी, कागजी आजादी

हमें तो
एक ऐसी आजादी चाहिए जहाँ -

बोलने ..
उड़ने ..
घूमने ..
फिरने ..
चलने ..
विचरने ..
सोने ..
जगने ..
उठने ..
बैठने ..
लिपटने ..
सिमटने .. की पूरी आजादी हो

कला आजाद हो, कलाकार आजाद हों
धर्म आजाद हों,
संस्कृतियाँ आजाद हों ..... !

~  उदय

Tuesday, August 14, 2018

बेरहम

कौन जानता था, किसने सोचा था
कि
जिन्दगी बेरहम निकल जायेगी
और वक्त ... जालिम
कि -

कभी तन्हाईयाँ होंगी, और हम तन्हा होंगे

वर्ना
हम भी सहेज कर रख लेते कुछ रिश्ते
ये सोच कर
कि -
कभी काम आएंगे ... !

इसके लिए
हमें
बस .. थोड़ा ... खुदगर्ज ही तो बनना था !!

~ उदय

Monday, August 13, 2018

नवाबी ठाठ

पहले .. हजार, दो हजार, पांच हजार फूंका करते थे
शौक पर, शौक से

अब
सौ, दो सौ, तीन सौ ही फूंक पा रहे हैं

क्योंकि -
गरीबी रेखा के नीचे जो पहुँच गए हैं साहब

वजह
वही पुराने नवाबी ठाठ

विदेशी शराब
मंहगी-मंहगी सिगरेट के कश
जंगलों की सैर

ठाठ औ शौक
दोनों अभी भी जिंदा हैं

बस ..
बीपीएल कार्ड जारी नहीं हुआ है

क्योंकि -
साहब आज भी पुरानी कोठी में रहते हैं !

~ उदय

Sunday, August 12, 2018

इक तेरा ही आना बाकी है !

लाइफ में किरदार बहुत से आये हैं
बस
इक तेरा ही आना बाकी है

जो छू कर
इस मृत शरीर में हलचल भर दे

लिपट-सिपट कर
इस शरीर को चंदन कर दे

मरा नहीं हूँ
शायद .. जान अभी भी बाकी है

दो बूँद अमृत की
तेरे होंठों से पीना बाकी है

लाइफ में किरदार .... !

~ उदय

Friday, August 10, 2018

थप्पड़

वक्त ने
खेंच के थप्पड़ मारा है

कब ?
किसे ?
क्यों ?

पता नहीं ...
पर
आवाज गूंज रही है !

तुम प्रधान हो, कोई तुर्रम नहीं हो
संभल के रहो

कहीं ऐसा न हो
तुम्हारा गाल भी तिलमिला जाए !!

~ उदय

Sunday, August 5, 2018

मित्र छाँव है, पूरा एक गाँव है !

मित्र छाँव है, पूरा एक गाँव है
भाई है
पिता है
माँ है
बहन है

मित्र, क्या नहीं है ?

कुआ है
झरना है
बहता पानी है

चौपाल है
स्कूल है
मंदिर है
बाजार है
खेत है
खेल का मैदान है

मित्र, क्या नहीं है ?

धूप है
बरसात है
ठंड है
आग है
मित्र छाँव है, पूरा एक गाँव है !

~ उदय

Friday, August 3, 2018

वक्त वक्त की बात

कभी हम भी किसी की फर्स्ट चॉइस थे
पर
अब ... लास्ट भी नहीं हैं

इसे ही कहते हैं दोस्त
वक्त का बदलना

वक्त जब बदलता है तो
विचार ..
पसंद ..
कभी-कभी तो ईमान भी बदल जाते हैं

लोगों का बदलना छोड़ो दोस्तो
देखो
खुद भी तो कितना बदल गए हो ?

~ उदय

Wednesday, August 1, 2018

मुनासिब घड़ी

नफरत के बीज बो दिए गए थे
बहुत पहले

अब तो
फसल लह-लहा रही है

पर
अभी काटने का वक्त नहीं आया है

फसल
काटी जाएगी
एक मुनासिब घड़ी में .... !

~ उदय

Tuesday, July 31, 2018

दिल्ली से ...

डसने को आतुर, व्याकुल
कुछ नेता
रोज .. फुफकार रहे हैं
दिल्ली से ... ,

साँप नहीं, पर
साँपों से भी ज्यादा जहरीले उनके मंसूबे हैं

कब .. डस लें, लील लें
चितकार रहे हैं

बचो ..
छिपो ..
भागो ..
उनकी आँखें .. तुम पर ही टिकी हुई हैं ... !

~ उदय

Monday, July 30, 2018

रोजी-रोटी

खोपड़ी किस की है
दलित की, पंडित की, ठाकुर की या बनिया की
क्या फर्क पड़ता है

वैसे भी ...
कौनसा हर पंडित विद्वान होता है
और हर ठाकुर बहादुर

खैर .. छोड़ो ...
हम तो सभी को विद्वान और बहादुर मानते हैं

और वैसे भी
कौनसा हमें विद्वानी और बहादुरी से करतब दिखाना है
हमें तो खोपड़ी से दिखाना है

इसलिये
लगाओ एक काला टीका खोपड़ी पे
लटकाओ नींबू और हरी मिर्च
फूँको लोभान

और ..
शुरू करो डमरू की डम-डम
आखिर ... रोजी-रोटी का सवाल .... !!

~ उदय

Sunday, July 29, 2018

कीमत

अभी अलट-पलट के टटोल रहे हैं
परख रहे हैं

सिक्का ..
कहीं खोटा तो नहीं है,

फिर
बाजार में उछाल देंगे

और .. वसूल लेंगे
कीमत मेरी !!

~ उदय

Friday, July 27, 2018

जलो मत बराबरी करो

लघुकथा : जलो मत बराबरी करो
---------------------------------------
एक दिन .. क्षेत्र में एक नये-नवेले लंगोटी बाबा के बढ़ते प्रभाव से चिढ़कर सारे बाबा .. बाबाओं के बाबा - "बाबा अमरकंटक" के पास पहुँचे .. और लंगोटी बाबा की बुराई करने लगे ...

"बाबा अमरकंटक" 2-3 मिनट में ही सारी कहानी समझ गए .. और बालक हंटरधारी को बुलवाया ... तथा आदेश दिया कि इन सब को लाइन से खड़ा कर 10-10 हंटर का प्रसाद बाँटा जाए ....

हंटर खाने के बाद सभी बाबा तिलमिलाए हुए .. मुंह लटका कर खड़े हो गए ... तब "बाबा अमरकंटक" बोले .. अबे गधो ... धरती के बोझो .... तुम सब लोग शौक से बाबा बने हो .. और उसे मजबूरियों ने बाबा बना दिया है ....

तुम लोग 10-10, 20-20 साल की बाबागिरी में भी अभी उस लेबल तक नहीं पहुंचे हो जहाँ वो 1 साल में ही पहुँच गया है ... अगर तुम उसकी लंगोटी तक पहुँचने की कहानी ....

और लंगोटी से यहाँ तक पहुँचने की कहानी सुनने के इच्छुक हो तो ... मुझे एक बार फिर से बालक हंटरधारी को बुलाना पड़ेगा और इस बार 100-100 हंटर का प्रसाद .... बोलो क्या बोलते हो ???

100-100 हंटर का नाम सुनते ही .. सभी बाबा ... प्रणाम करते हुए जाने की मुद्रा में खड़े हो गए .... बाबाओं के बाबा - "बाबा अमरकंटक" समझ गए कि .. इनके लिए आज इतना डोज (खुराक) पर्याप्त है .. किन्तु ...

अपने-अपने गंतव्य की ओर रवाना करने से पूर्व ... "बाबा अमरकंटक" ने .. सब के कान में सफलता का एक अद्भुत व बेहद प्रभावशाली मंत्र फूँक दिया .. "जलो मत बराबरी करो" .... !!

~ उदय

Thursday, July 26, 2018

चड्डीधारी

लघुकथा : चड्डीधारी
------------------------
एक बार ... बालक नरेंद्र पर वक्त की मार ऐसी पड़ी कि उसका सब कुछ तबाह हो गया ... घर-द्वार बिक गया ... पत्नी अपनी चुड़ैल मां की बातों में आकर मायके चली गई ... कर्जदारों ने पेंट-शर्ट तक उतार ली ... इधर-उधर सोते-जगते भटकते-भटकते बनियान भी चिथड़े-चिथड़े होकर गिर गई ....

चड्डी पहने दर-दर की ठोकरें खाते नरेंद्र पर ..

पास से गुजर रहे 'बाबा' की नजर पड़ी ... बाबा ने कहा - बालक तेरा सब कुछ लुट गया है .. क्या अब भी तुझे कुछ आस है ? ... यदि नहीं .. तो ... ले पकड़, ये एक मुट्ठी राख .... इस चड्डी का त्याग कर अर्थात चड्डी को निकाल फेंक और राख मल ले बदन पर .... और चल, मेरे साथ हो ले .....

बालक नरेंद्र .. पत्नी व घर-द्वार रूपी यादों से .. अर्थात माया व मोह रूपी ख्यालों से बाहर निकला तब तक 'बाबा जी' अदृश्य हो चुके थे ... और मुट्ठी में बंद राख ने भी कोयले का रूप ले लिया था .... वहाँ एक आकाशवाणी गूँज रही थी .. "जब चड्डीधारी का ये हाल है तो दूसरों का क्या होगा" .... !!

~ उदय

Wednesday, July 25, 2018

तीन इक्के

जिन्दगी भर .. हम ...
दाँव लगाते रहे
कभी जीतते, तो कभी हारते रहे
पर,
कभी नुकसान में नहीं रहे

तमाम उम्र ... एक अफसोस-सा रहा
कि -
कभी तीन इक्के नहीं आये

पर,
कल आये .. हाँ ... तीन इक्के ....
लेकिन
हम हार गए
और,
दुक्की-तिक्की-पंजा .. पत्तों वाला जीत गया

मुफ़लिस चाल थी ..
मुफ़लिस में .. छोटे पत्ते बड़े होते हैं
और .. बड़े छोटे .... !!

~ उदय

Sunday, July 22, 2018

खुबसूरती

सुनो मैडम ..
आपकी खुबसूरती की वजह

कभी लिपस्टिक
कभी पावडर
कभी काजल
कभी बिंदिया
तो कभी चकमक ड्रेस होती है
वर्ना ....

खैर ... छोड़ो ....
ये तो आप भी जानती हैं
कि -
आपका आईना
कभी आपसे झूठ नहीं बोलता ?

~ उदय

Saturday, July 21, 2018

ब्यूटीफुल गर्ल

चलो आओ फिर से एक नया ख्वाब देखें
इस बार ब्यूटीफुल गर्ल का नहीं
टैलेंटेड गर्ल का देखें

क्यों ?

क्योंकि -
ब्यूटीफुल गर्ल सिर्फ ब्यूटीफुल होती है
देख चुके हैं
आजमा चुके हैं
सह चुके हैं

सुना है
कि -
टैलेंटेड गर्ल ज्यादा ब्यूटीफुल होती है
इसलिए
अब उसकी चाह है !

~ उदय

Thursday, July 19, 2018

दोस्त

बहुत होनहार है, दोस्त मेरा
सब समझता है
कब मुझसे मिलना है, कब नहीं

उसे चतुर कहना, चालाक कहना
अच्छा नहीं होगा
क्योंकि
वह दोस्त है मेरा

मुझे जब उसकी चाह होती है तब
वह ढूंढे भी नहीं मिलता है

पर
वह अपनी जरूरत पर
मुझे ढूंढ लेता है !!

~ उदय

Saturday, July 14, 2018

तिकड़म

कभी आपको
खुद रास्ता .. खुद सीढ़ी ..
तो कभी खुद पीठ बनना होगा,

वर्ना
पिछड़ जाओगे .. बिछड़ जाओगे ..
किसी से,

ये मायावी संसार है
यहाँ
तिकड़म, तीन-पांच-तेरह, पांच-तीन-अठारह ..
बहुत जरूरी हैं !

~ उदय

Saturday, July 7, 2018

कर्म और भाग्य

लघुकथा : कर्म और भाग्य
-------------------------------
एक दिन ... 'कर्मदेव' और 'भाग्यदेव' .... इस बात पर आपस में बहस करते हुए कि - मैं बड़ा हूँ, मैं सर्वेसर्वा हूँ, मैं महान हूँ, इत्यादि तर्कों के साथ तू-तू मैं-मैं करते हुए  'महादेव' के पास पहुँचे ...

'महादेव' समझ गए कि - समस्या अत्यंत गंभीर है तथा तर्कों के माध्यम से इन्हें समझा पाना कठिन है इसलिए ...

'महादेव' ने उन्हें पृथ्वीलोक भेजते हुए कहा कि - आप दोनों सभी मनुष्यों के कर्मों और भाग्यों का अध्ययन कर के आओ, फिर मैं तुम्हें बताऊँगा कि तुम दोनों में ज्यादा महान कौन है ....

यह कहते हुए 'महादेव' अंतरध्यान हो गए तथा 'कर्मदेव' और 'भाग्यदेव' पृथ्वी की ओर कूच कर गए ... 'कर्मदेव' और 'भाग्यदेव' का पृथ्वी पर ... अभी तक शोध जारी है कि दोनों में ज्यादा महान कौन है .... ?

~ उदय

Thursday, July 5, 2018

मायानगरी

ये मायानगरी है दोस्त
यहाँ
सब भ्रम है
धोखा है
छल है ...

खाली हाथ आये थे
खाली हाथ ... .... जाना है

ये तिलस्म, ये खजाने, ये कारीगरी
सब यहीं की है

पर, हम,
यहाँ के नहीं हैं .... ?

~ उदय

Tuesday, July 3, 2018

गड़े मुर्दे

हम गड़े मुर्दे खोदेंगे ...
उखाड़ेंगे

नीबू-मिर्ची का भोग लगाकर
उन्हें जगायेंगे

फिर आधा लाल और आधा काला टीका लगाकर
हम अपनी मर्जी के माफिक
उनकी सवारी निकालेंगे

कुछ लोग ...
यह देखकर ड़र जाएंगे, घर से बाहर नहीं निकलेंगे
और जो निकलेंगे ..
वे डरकर नतमस्तक हो जाएंगे

इस तरह, हम, अपना मकसद साध लेंगे
हम जीत जायेंगे .... !!

~ उदय

Friday, June 29, 2018

तुम गुड्डू के गुड्डू ही रहे !

जब कोई लड़की तुम्हें नकार दे
तो
इसका मतलब ये नहीं है
कि -
तुम हैंडसम नहीं हो
क्यूट नहीं हो
चार्मिंग नहीं हो

तुम यह भूल रहे हो
कि -
तुम जिस पर लट्टू हुए थे

वह लड़की ...

टीशर्ट और मिनी स्कर्ट पहने हुए थी
हाई हिल सैंडिल .. और ...
बड़ा गोल साइज का गॉगल उसकी पहचान थी

तुम गुड्डू के गुड्डू ही रहे
यह नहीं टटोल पाये
कि -
उसकी चॉइस सलमान खान से कम कैसे हो सकती है ?

~ उदय 

Wednesday, June 27, 2018

तुम तुम थे, तो हम भी हम हैं !

वो चोर थे
इसलिए आज हम भी चोर हैं
वो फिरकीबाज थे
इसलिए आज हम भी फिरकीबाज हैं

उन्होंने संविधान की खूब गिल्लियाँ उड़ाईं
तो हम चौके-छक्के उड़ा रहे हैं

हम उनसे किसी भी मामले में
पीछे नहीं हैं

हम उन्हें सबक सिखा कर ही रहेंगे
कि -
तुम तुम थे, तो हम भी हम हैं

जनता ... ?
जनता की तो ... ऐसी की तैसी .... !!

~ उदय

Saturday, June 23, 2018

बंदर और मदारी

तुम बंदरों की तरह हरकतें करते रहो
कोई न कोई मदारी
खुद-ब-खुद तुम्हें पकड़ लेगा, सहेज लेगा

और
तमाशे दिखाना शुरू कर देगा

इस तरह
तालियाँ गूंजने लगेंगी
सिक्के उछलने लगेंगे

तुम कितने महत्वपूर्ण हो
उपयोगी हो
प्रतिभाशाली हो
सब समझ जाएंगे

फिर ...
एक दिन .. तुम पूजे भी जाओगे
इतिहास में भी रहोगे

बस ... तुम्हें ..... एक मदारी की जरूरत है ?

~ उदय

Friday, May 25, 2018

मौकापरस्त

वो सियाने हैं इतने
कि -
कभी शेर, कभी भालू, तो कभी खुद को चीता समझते हैं
मगर अफसोस ..
बिच्छू देखकर ... वो बंदर से उछलते हैं !

यही तो होती है फितरत
मौका परस्तों में ...

कभी बाहों में होते हैं
कभी हाथों में होते हैं
कभी चरणों में होते है .... !!

~ उदय 

Tuesday, May 22, 2018

यही जीवन है .... !

वक्त हमेशा हवा की गति के साथ उड़ते रहता है, दौड़ते रहता है ... उस पर किसी का जोर नहीं है किसी का नियंत्रण नहीं है .... यदि हम उसके साथ कदम मिलाने से जरा भी चुके तो समझो हम खो गए, बिछड़ गए ....

बिछड़ने के बाद हम कहाँ होंगे, कितने पीछे होंगे, किसके साथ होंगे .... ईश्वर जाने ... !

इसलिए .. सदा ... वक्त की रफ्तार को पकड़े रहो, उसे अपनी आंखों से ओझल मत होने दो .... जीवन एक दौड़ है और वक्त साँसें हैं, वक्त कदम हैं, वक्त चाल है ...

जिस प्रकार कभी-कभी हवा रुक जाती है अर्थात सन्नाटे का रूप ले लेती है .. तो ठीक इसके विपरीत कभी-कभी तूफान का रूप भी ले लेती है अर्थात बवंडर बन जाती है ...

सन्नाटे और बवंडर जैसे क्षण अक्सर हमारे जीवन में आते -जाते रहते हैं ... इन क्षणों में हमें संयम से काम लेना है ..

संयम और हमारी एकाग्रता हमें हर सन्नाटे व बवंडर से पार ले जाएंगे .. और ....

वक्त .. एक दिन ... हमें हमारी मंजिल पर छोड़ कर .. हमें सैल्यूट मारते हुए आगे निकल जाएगा .... यही जीवन है ..... !

~ उदय 

Monday, May 14, 2018

इम्तहान

पहले कहा उसने
कोई दुख
कोई गम
कोई अपनी परेशानी बता,

फिर कहता है -
छोड़
तू किसी और की, कोई एक अच्छी जुबानी बता

बात हो रही थी अपने 'खुदा' से
इसलिये चुप था

वर्ना, अब तक ... कब का ....
हाल-चाल
ठीक कर चुका होता,

एक हद होती है
तकलीफों में तकलीफ देने की

शायद, चैन छीन कर भी सुकूं नहीं मिला उसको
जो अब
मसखरेपन पर उतर आया है

'खुदा' है
चुप हूँ
ये भी कोई इम्तहान हो शायद ?

~ उदय ~

Sunday, May 13, 2018

शायद .. कोई .. आस-पास है ... !!

प्रेम है, दुआ है, लाड़ है, या डांट है,

कुछ ..
अजीब-सा अहसास है

मन उदास है
शायद .. कोई .. आस-पास है ... !! 

~ श्याम कोरी 'उदय'

Friday, May 11, 2018

भ्रम

राजधानी में
एक बड़े नेता और एक बड़े पत्रकार

दोनों
मुस्कुरा रहे थे
और
एक दूसरे की पीठ थप-थपा रहे थे

देख कर लगा
देश उन्नति में है, विकास की डोर सही हाथों में है

लेकिन, नहीं, शायद, सच्चाई कुछ और थी,

सामने पड़े एक अखबार के पन्ने पर -

तीन किसानों के आत्महत्या,
पांच लोगों के भूख से मरने,
एक मासूम बच्ची के साथ गैंग रेप,
एक दलित को सिर पर चप्पल रख कर घुमाने,

इत्यादि, खबरें ...... सुर्खियां बनीं थीं

उन्नति ... विकास .... मुस्कुराहट ... थप-थपाहट ....
उफ्फ ... शायद .. सब भ्रम है ??

~ श्याम कोरी 'उदय' 

Thursday, May 10, 2018

मोटी किताब

एक मोटी किताब
सुनते हैं, देश चलता है उससे

उसमें लिखा एक-एक शब्द पत्थर की लकीर है
लोगों से
हम तो ऐसा ही सुनते आए थे

पर, अब लगता है, सब झूठ है

आज
सफेद कुर्ते वाले, काले कोट वाले, अपराधी सोच वाले
उसमें ओवरराइटिंग कर दे रहे हैं

उनकी ओवरराइटिंग
कभी-कभी तो
हमें, पत्थर से भी ज्यादा मजबूत लगती है

शायद सब भ्रम था
मोटी किताब की जो कहानी हमने सुनी थी
झूठ थी ???

~ श्याम कोरी 'उदय'

Monday, May 7, 2018

The Ideology

"One Ideology, one Religion, one Nation
no
sorry friends
not possible to me,

Yes, I know, I am not a Butterfly
but
all Flowers are mine,

Yes, I am not a Bird
but
whole sky is mine,

Yes, I am not a God
but
whole world is mine."

~ uday 

Saturday, March 31, 2018

चीख !

चीख !
------
किसी की चीख तुम्हें पुकार रही है
वहाँ .. उस खंडहर से ...

तुम जाओगे न ?

शायद तुम्हारी हिम्मत
किसी छेड़छाड़, बलात्कार, हत्या को रोक दे

हिम्मत करोगे न ?

या फिर, आस-पास से गुजर रहे
अन्य लोगों की तरह
तुम भी, चीख को अनसुना मान गुजर जाओगे ??

जोखिम तो है
चीख सुनने में, हिम्मत दिखाने में ..

पर तुम, कभी, अपने आप से झूठ नहीं बोल पाओगे
कि -
तुमने चीख सुनी ही नहीं ???

- श्याम कोरी 'उदय'

Friday, March 30, 2018

अचानकमार में टाइगर है ?

अचानकमार में टाइगर है ?
-------------------------------
कुछ लोग चाटुकारिता के मद में इतने मदमस्त हैं कि गौर (बाइसन) व चीतल (डिअर) की फोटो सोशल मीडिया में लगा-लगा कर तथा हर 10-12 घंटे में चर्चा कर इस महिमा मंडन में लगे हुए हैं कि अचानकमार टाइगर रिजर्व एक स्वर्ग है।

अगर वे ... टाइगर की फ़ोटो लगाते व चर्चा करते तो निसंदेह मुझे उनकी पीठ थप-थपाने से परहेज नहीं होता, लेकिन वे बाइसन व डिअर की बार-बार चर्चा कर चाटुकारिता के नए अध्याय लिखने का जो प्रयास कर रहे हैं निंदनीय हैं ।

आज ... आवश्यकता है अचानकमार में टाइगर को केंद्र-बिंदु मानने की, टाइगर की उपलब्धता को शोध का विषय  मानने की, यदि कुछेक वर्ष ऐसा ही चलता रहा तो टाइगर की चाह में जो पर्यटक भूले-भटके आ रहे हैं उनका आना भी बंद हो जाएगा ।

जहाँ तक मेरा मानना है ... शासकीय अमले को चाहिए कि अचानकमार में टाइगर के लिए ऐसा माहौल निर्मित किया जाए कि जो टाइगर अब तक सिर्फ और सिर्फ शासकीय अमले के खूफिया कैमरों में नजर आता है वह आमजन (पर्यटकों) को भी नजर आ सके ।

साथ ही साथ ... वाइल्डलाइफ लवर्स, वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर्स व शासकीय अमले को मेरी सलाह है कि वे आपस में कुछ इस तरह का ताल-मेल बना कर चलें जो अचानकमार टाइगर रिजर्व के नाम के अनुरूप हो व हित में हो ।

- श्याम कोरी 'उदय'

Wednesday, March 28, 2018

भ्रम

यदि आप अंधकार में हैं
तो स्वयं आपको
अंधकार से बाहर निकलने का प्रयास करना पड़ेगा,

अगर आप यह सोच रहे हैं
कि -
कोई कुदरती चमत्कार होगा, और आप बाहर निकल आयेंगें
तो यह, आपका भ्रम भी हो सकता है,

चलो कुछ देर के लिए हम यह मान भी लें
कि -
यह भ्रम नहीं है,

तो, सच्चाई तो यह भी है
कि -
कुदरती चमत्कारों की कोई समय सीमा नहीं होती
तो क्या, तब तक आप अंधकार में बैठे रहेंगें ??

- श्याम कोरी 'उदय'

Saturday, March 17, 2018

प्यार में ...

हर बार की तरह ...

इस बार भी
वो खामोशी से गुजर गए करीब से

पर ...
उन्ने कुछ कहा - मैनें कुछ सुना
ऐसा लगा ... दिल को .....

शायद ... ये भ्रम हो ..... ?

क्योंकि -
प्यार में ... अक्सर .... मन ही मन .....
बहुत कुछ कह देते हैं - बहुत कुछ सुन लेते हैं ... ??

Thursday, March 1, 2018

अब .. आगे ... तुम्हारी मर्जी ..... ?

आज .. इंकलाब की जरूरत नहीं है
कत्लेआम की है,

ये कलयुग है
यहाँ तर्कों से जीत नहीं होगी,

अगर जीतना है राक्षसों से .. पिशाचों से .. तो ...
तलवार उठानी ही पड़ेगी,

नहीं तो .. वे ... तुम्हारा खून पी-पी कर
तुम्हें .. हरा देंगें ... मार डालेंगें .....

अब .. आगे ... तुम्हारी मर्जी ..... ?

- श्याम कोरी 'उदय'

Saturday, February 17, 2018

वक्त

वक्त घसीट रहा है
हम, घिसटते जा रहे हैं

घिसटते-घिसटते ..
हम, थोड़ा-थोड़ा छिलते जा रहे हैं

इक दिन ..
हम, पूरी तरह छिल जायेंगें

वक्त .. चलते रहेगा ...

किसी-न-किसी को
हर क्षण ... घसीटते रहेगा .... ?

- श्याम कोरी 'उदय'

Saturday, February 10, 2018

किलेबंदी

अगर .. वो चमचे नहीं होते ...
तो ..
वो ...
साहब के गले के गमछे नहीं होते,

यही दस्तूर है
हुनर है

साहब ... यही किलेबंदी है ....
शह है ... मात है .... !!

- श्याम कोरी 'उदय'

Friday, January 12, 2018

अभी भी वक्त है ... !

यदि ..
व्यवस्था लचर हो चली हो तो

कुछ इस तरह धक्का मारो व्यवस्था में

कि -
थरथरा जाये ..
नींव भी,

अगर
ऐसा नहीं हुआ तो ..
नहीं किया तो ..

इक दिन .. दब कर मर जाओगे
दम घुट जायेगा ...

अभी भी वक्त है
व्यवस्था के .. भरभरा कर गिरने में .... ?

- श्याम कोरी 'उदय'

Sunday, January 7, 2018

विकल्प ...

बहुत खुश थे .. खुशनुमा हालात थे ...
कल तक ..

कल .. तुमसे मिलने से पहले तक
चेहरे पर मुस्कान .. ताजगी ... उत्साह ....
हर पल .. पल-पल ...
सच ... बनी रहती थी .. ठहरी रहती थी ....
तुम जो थे साथ ..
हर कदम पर .. कदम-कदम पर ...

पर .. कल से ...
तुमसे .. आखिरी मुलाक़ात के बाद ...
मन ... शांत .. खामोश .. व्याकुल-सा ... है

काश ...
तुम .. रुठने ... नाराजगी की ..वजह बता जाते ....
काश ...
तुम .. कोई और विकल्प चुन लेते ... ?

~ श्याम कोरी 'उदय'