नहीं है रंज, तेरी बेवफ़ाई का
रंज है तो, तेरी खामोशियां हैं।
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हम इंसा थे, या थे मिट्टी के पुतले
बारिश की बूंदों ने हमें मिट्टी बना डाला।
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मुफ़लिसी में भी, न रहा हाथ तंग मेरा
अमीरों को भी, चाय पिलाता रहा हूं।
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हम अच्छे थे तब तक, जब तक तूने 'खुदा' माना
फ़िर क्या था बुराई में, जब तूने बुरा माना।
18 comments:
सभी शेर बहुत अच्छे
नहीं है रंज, तेरी बेवफ़ाई का
रंज है तो, तेरी खामोशियां हैं।
बहुत सुंदर जनाब सभी शेर बहुत अच्छे लगे
बारिश की बूंदों ने... बहुत कुछ है इन पंक्तियों में ! कतरा-कतरा जज्ब कर हूँ इसे...
--आ.
मुफ़लिसी में भी न रहा हाथ तंग मेरा
अमीरों को भी चाय पिलाता रहा हूँ मैं
--अच्छा शेर।
नहीं है रंज, तेरी बेवफ़ाई का
रंज है तो, तेरी खामोशियां हैं
वाह जी ये खामोशी भी तो बेवफाई ही हुई न ....!!
हम अच्छे थे तब तक, जब तक तूने 'खुदा' माना
फ़िर क्या था बुराई में, जब तूने बुरा माना
बुराई में बुरा क्यों न माने भला .....??
वाह वाह । बहुत खूब शेर कहे हैं ।
खासकर
हम अच्छे थे तब तक, जब तक तूने 'खुदा' माना
फ़िर क्या था बुराई में, जब तूने बुरा माना
श्याम जी ,
अगर खामोशियाँ न होती तो शायद ये पंक्तियाँ ही न होती .
हम इंसा थे, या थे मिट्टी के पुतले
बारिश की बूंदों ने हमें मिट्टी बना डाला ...
ye oopar vaale ki kudrat ka kamaal hai ... mitti ko insa aur insa ko miti bana deta hai ...
मुफ़लिसी में भी, न रहा हाथ तंग मेरा
अमीरों को भी, चाय पिलाता रहा हूं ...
bahoot khoob hai ye sher .... jameen se juda huva ..
shaandaar...........
रूमानी जज्बों का सुंदर प्रस्फुटन।
शेर बहुत प्यारे हैं।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
हम अच्छे थे तब तक, जब तक तूने 'खुदा' माना
फ़िर क्या था बुराई में, जब तूने बुरा माना।
bahut hi sundar panktiyan hai....
मुफ़लिसी में भी, न रहा हाथ तंग मेरा
अमीरों को भी, चाय पिलाता रहा हूं।
Sabhi sher apne aap mein muqammal magar iska jawaab nahi..
bahut khoob likhte hain aap..
aap aaye hamare blog par aapka shukriya..
jab puraane panne palat rahaa tha blog ka to yakaayak aapke blog pe nazar padi jo hameshaa se mujhe pasand hai ... saare hi she'r kamaal ke hai pahaal she'r jis komalataa ka parichay karaa rahaa hai wo padhate hi ban raha ahi ...
badhaayee
arsh
bahut khoob "मुफ़लिसी में भी, न रहा हाथ तंग मेरा
अमीरों को भी, चाय पिलाता रहा हूं।"
सभी शेर उत्तम
हम इंसा थे, या थे मिट्टी के पुतले
बारिश की बूंदों ने हमें मिट्टी बना डाला।
BAhut khub.
aapke sher to anmol hain ek kashis hoti hai jab padhte hain to!!
मुफ़लिसी में भी, न रहा हाथ तंग मेरा
अमीरों को भी, चाय पिलाता रहा हूं।
exceelent wah bahut khoob gahra sher
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