सच ! हाँ जानती हूँ, तुम मुझे
निर्वस्त्र देखना चाहते हो, घंटों निहारना चाहते हो
सिर से पैरों तक, फिर पैरों से सिर तक !
आगे से, पीछे से, अकेले में, रौशनी में
तुम चाहते हो, देखना मुझे, निर्वस्त्र ...
अपनी मद भरी आँखों से !
सच ! तुम कितने लालायित हो
मैंने एक-दो बार भांपा है
तुम्हारी नजरें स्थिर बन, ठहर सी जाती हैं
कभी कभी, मुझ पर, कपडे बदलते समय !
और तो और, एक-दो बार, तुमने मुझे
नहाते समय, देखने का असफल प्रयास भी किया
किन्तु, तुम सहम गए !
तुम्हारी सालों की लालसा, चाहती हूँ
कर दूं पूरी, पर क्या करूं
शर्म के कारण
सच ! चाहकर भी, सहम जाती हूँ !
कल तो मैंने, मन ही बना लिया था, पर
चाहते चाहते
शर्म उतर आई, रुक गई, ठहर गई
नहीं तो कल रात, तुम्हारी जिज्ञासा, हो गई होती पूरी !
सच ! अब मुझसे भी, तुम्हारी लालसा -
व्याकुलता, देखी नहीं जाती
देखें, कब तक, शर्म रोक सकती है मुझको !
या फिर, किसी दिन, शर्माते, लजाते ही
अपनी आँखों को, मूँद कर
मैं तुमसे, चुपके से, कह दूंगी, लो, कर लो पूर्ण
चुपके से, धीरे से, अपनी जिज्ञासा पूरी !!