"चलो अच्छा हुआ, जो तुम मेरे दर पे नहीं आए / तुम झुकते नहीं, और मैं चौखटें ऊंची कर नही पाता !"
Sunday, November 30, 2014
Tuesday, November 25, 2014
वादा ...
किस शहर की
किस गली के नुक्कड़ पे
किस गली के नुक्कड़ पे
पूछूँ मैं नाम तेरा,
क्योंकि -
थक गया हूँ मैं ढूंढते-ढूंढते तुझको
कहीं ऐसा न हो
सांस रूठ जाए - वादा टूट जाए ?Wednesday, November 19, 2014
दो उचक्के …
दो उचक्के …
और चार चक्के,
चल रही है गाड़ी, बढ़ रही है गाड़ी
दौड़ रही है गाड़ी,
सरपट भाग रही है गाड़ी,
सरपट भाग रही है गाड़ी,
थोड़े कच्चे, पर धुन के पक्के,
दो उचक्के …
और चार चक्के ???Thursday, November 13, 2014
किरदार ...
वो आज मुझसे ही मेरा पता पूंछ रहे थे
कैसे, औ किस किस को बताऊँ
कि -
मैं खुद ही गुमनाम फिरा करता हूँ ???
… कि -
मैं खुद ही गुमनाम फिरा करता हूँ ???
जोकरों के सिवाय कोई और किरदार फबता नहीं है हम पे
मगर… फिर भी… वो जिद किये बैठे हैं 'खुदा' बनने की ?
…
जुनून-ए-इश्क में, चिंदी-चिंदी हो गए
कल तक जो शेरवानी हुआ करते थे ? …
Wednesday, November 5, 2014
कश्मकश ...
उफ़ ! वो मिले भी तो कुछ इस तरह
कि मिलते ही, फिर से बिछड़ गए ?
कि मिलते ही, फिर से बिछड़ गए ?
…
गर हम इसी तरह बहते रहे, तो तय है 'उदय'
इक दिन, ……… हम भी सागर हो जाएंगे ?
…
आज हम जल्दी उठ गए हैं 'उदय'
अब देखते हैं, तलाशते हैं फायदे ? …
सच ! कभी कभी तो हम भी उनके जैसे हो जाते हैं
पर, इक वो हैं, जो सदियों से जैसे के तैसे ही हैं ??
…
…
तुम भी अजनबी - हम भी अजनबी
फिर, कैसी औ क्यूँ है ये कश्मकश ?…
Sunday, November 2, 2014
पतवार ...
चलो पकड़ लें,
राह पकड़ लें, डोर पकड़ लें,
राह पकड़ लें, डोर पकड़ लें,
जीवन की …
पतवार पकड़ लें,
फिर …
चले चलें, बढे चलें …
मंजिल की ओर … पतवार पकड़ लें,
फिर …
चले चलें, बढे चलें …
सपनों की ओर … … … !
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