मौके मौके की बात है, कोई मौके पे, तो कोई मौके से
ये और बात है, अक्सर मौकापरस्ती काम आती है !
...
काश कुछ पल को, तुम अपने जहन में मुझे भी पनाह दे देते
न जाने क्या सहेजा है तुमने, जो तुम्हें बाहर आने नहीं देता !
...
धूल, मिट्टी, कीचड में, आज भी सनी रक्खी हैं यादें तेरी
जब जब याद आये तू, खुशबू-ए-मिट्टी में डूब जाता हूँ !
...
भंग, रंग, गुलाल, और हठेली गोपियों की शरारतें
उफ़ ! पिछले साल का सुरूर अब तक उतरा कहाँ है !
...
समय के सांथ प्यार भी, भ्रष्टाचार की चपेट में है
भावनाएं, मर्यादाएं, समर्पण, अब दिखते कहाँ हैं !
...
बड़े इत्मिनान से, तराशा गया है तुझे
सिर से पाँव तक क़यामत सी लगे है !
...
टेसु, सेमल, फूल, रंग, गुलाल, रंगोली
सच ! हमें तो लगे है, आ गई है होली !
...
सुना है इतनी नजदीकियां भी अच्छी नहीं होतीं
हे 'भगवन', कहीं किसी की नजर न लग जाए !
...
शाख से तोड़ा गया, ये फूल खुशनसीब था
टूटते ही हुस्न के, हांथों को है महका रहा !!
"चलो अच्छा हुआ, जो तुम मेरे दर पे नहीं आए / तुम झुकते नहीं, और मैं चौखटें ऊंची कर नही पाता !"
Thursday, March 31, 2011
शब्द - निशब्द !!
शब्द चल पड़े
शब्द अड़ पड़े
शब्द लड़ पड़े
शब्द हुए मौन !
शब्द कह रहे
शब्द की खरी
शब्द की खोटी
शब्द सुन रहे !!
शब्द की माया
शब्द की काया
शब्द की लीला
शब्द - निशब्द !!!
...
शब्द हुए निशब्द : झूठ !
निशब्द हुए शब्द : सच !!
...
शब्द अड़ पड़े
शब्द लड़ पड़े
शब्द हुए मौन !
शब्द कह रहे
शब्द की खरी
शब्द की खोटी
शब्द सुन रहे !!
शब्द की माया
शब्द की काया
शब्द की लीला
शब्द - निशब्द !!!
...
शब्द हुए निशब्द : झूठ !
निशब्द हुए शब्द : सच !!
...
... सफ़र बांकी भी है, और दर्द की कोई इन्तेहा नहीं !!
कब तक तलाशोगे खुद को, खुदी की तन्हाईयों में 'उदय'
ज़रा निकलो, देखो, किसी को तुम्हारा इंतज़ार है बाहर !
...
अब क्या दोस्त, और क्या दुश्मनी
सच ! दोनों पे हमें एतबार न रहा !
...
सदियों से मेरी यादों में, बसर है तेरा
कोई पूछे जो पता, क्या बताएं हम उसे !
...
अब दोस्ती और दुश्मनी में भी, खुदगर्जी का आलम है 'उदय'
दोनों बातें और चालें चलते हैं, अपने अपने फायदे के लिए !
...
दिलचस्प ! कहीं कुछ पुरानी टीस रही होगी
वरना कौन, यूं ही पुरुस्कारों से भागता है !
...
तुम मुझे गुलाब, और गुलाब की खुशबू सी लगती हो
वरना कोई और वजह नहीं दिखती, तुमसे मोहब्बत की !
...
मुझे खुद को खबर नहीं, कि कौन हूँ मैं
सच उलझा हुआ हूँ, खुदी को ढूँढने में !
...
चलो कुछ देर सांथ सांथ मुस्कुरा लें हम
तुम्हारे सांथ होने से सफ़र आसां होगा !
...
जख्म अब अपने किस किस से हम छिपाते फिरें
सफ़र बांकी भी है, और दर्द की कोई इन्तेहा नहीं !!
ज़रा निकलो, देखो, किसी को तुम्हारा इंतज़ार है बाहर !
...
अब क्या दोस्त, और क्या दुश्मनी
सच ! दोनों पे हमें एतबार न रहा !
...
सदियों से मेरी यादों में, बसर है तेरा
कोई पूछे जो पता, क्या बताएं हम उसे !
...
अब दोस्ती और दुश्मनी में भी, खुदगर्जी का आलम है 'उदय'
दोनों बातें और चालें चलते हैं, अपने अपने फायदे के लिए !
...
दिलचस्प ! कहीं कुछ पुरानी टीस रही होगी
वरना कौन, यूं ही पुरुस्कारों से भागता है !
...
तुम मुझे गुलाब, और गुलाब की खुशबू सी लगती हो
वरना कोई और वजह नहीं दिखती, तुमसे मोहब्बत की !
...
मुझे खुद को खबर नहीं, कि कौन हूँ मैं
सच उलझा हुआ हूँ, खुदी को ढूँढने में !
...
चलो कुछ देर सांथ सांथ मुस्कुरा लें हम
तुम्हारे सांथ होने से सफ़र आसां होगा !
...
जख्म अब अपने किस किस से हम छिपाते फिरें
सफ़र बांकी भी है, और दर्द की कोई इन्तेहा नहीं !!
Wednesday, March 30, 2011
स्पर्श ...
तुमने जब जब
मेरे कोमल अंगों को
अपने कठोर हांथों से
स्पर्श किया
छुआ, टटोलना चाहा
सच ! मैं कुछ पल को
सिहर सी गई
डरी, सहमी रही
पर कुछ पल में ही
तुम्हारे हांथों का स्पर्श
मुझे -
मेरे कोमल अंगों को
अपने कठोर हांथों से
स्पर्श किया
छुआ, टटोलना चाहा
सच ! मैं कुछ पल को
सिहर सी गई
डरी, सहमी रही
पर कुछ पल में ही
तुम्हारे हांथों का स्पर्श
मुझे -
मन को भाने लगा !!
भ्रष्टाचार में हम ज़रा से चूक गए, होना तो था नंबर-१ ... !!
किसी ने झूठे ख़्वाब पाल रक्खे हैं जहन में
सच ! क्या कोई है जो तूफ़ान रोक पाया है !
...
भ्रष्टाचार में हम ज़रा से चूक गए, होना तो था नंबर-१
सच ! खैर कोई अफसोस नहीं, नंबर-४ पर ही सही !
...
कोई कुछ भी कहे या न भी कहे, पर सच-सच्चाई तो यही है
जिस लेखन में सेक्स का तड़का लगे, ज्यादा है पढ़ा जाए !
...
सच ! ये न्यूज चैनल्स, देश का कुछ भला, कर भी नहीं सकते
इसमें दो राय नहीं, भड़का भड़का कर दर्शकों को दंगाई न बना दें !
...
जज्बात, अश्क, वादे, लहू, दिन, रात, जिंदगी
उफ़ ! क्या क्या न बहा, दिल के टूट जाने पर !
...
सच ! ज़रा जल्दी सो जाओ, मुझे तुम्हारे ख़्वाब में आना है
जीत तो जायेंगे ही, मुझे तुम्हें ख़्वाब में ही ये खुशी देना है !
...
करें तो क्या करें, जग के यही हालात नजर आते हैं
अच्छे-सच्चे, पाखंडियों की भीड़ में नजर आते हैं !
...
तुम किसी मीनार पे बैठ, चिल्लाओगे तो पैगाम होगा
मैं जमीं पे बैठ के, गर सजदा करूं, तो दिल्लगी होगी !
...
फिर नया अंदाज, नया ख्याल है ये
लगे जैसे, नए दौर की नई राह है ये !
...
तूफां, जलजला, क़यामत, बवंडर, सैलाब, सुनामी, भूकंप
न जाने क्या क्या समा होगा, आज के भारत-पाक मैच में !!
सच ! क्या कोई है जो तूफ़ान रोक पाया है !
...
भ्रष्टाचार में हम ज़रा से चूक गए, होना तो था नंबर-१
सच ! खैर कोई अफसोस नहीं, नंबर-४ पर ही सही !
...
कोई कुछ भी कहे या न भी कहे, पर सच-सच्चाई तो यही है
जिस लेखन में सेक्स का तड़का लगे, ज्यादा है पढ़ा जाए !
...
सच ! ये न्यूज चैनल्स, देश का कुछ भला, कर भी नहीं सकते
इसमें दो राय नहीं, भड़का भड़का कर दर्शकों को दंगाई न बना दें !
...
जज्बात, अश्क, वादे, लहू, दिन, रात, जिंदगी
उफ़ ! क्या क्या न बहा, दिल के टूट जाने पर !
...
सच ! ज़रा जल्दी सो जाओ, मुझे तुम्हारे ख़्वाब में आना है
जीत तो जायेंगे ही, मुझे तुम्हें ख़्वाब में ही ये खुशी देना है !
...
करें तो क्या करें, जग के यही हालात नजर आते हैं
अच्छे-सच्चे, पाखंडियों की भीड़ में नजर आते हैं !
...
तुम किसी मीनार पे बैठ, चिल्लाओगे तो पैगाम होगा
मैं जमीं पे बैठ के, गर सजदा करूं, तो दिल्लगी होगी !
...
फिर नया अंदाज, नया ख्याल है ये
लगे जैसे, नए दौर की नई राह है ये !
...
तूफां, जलजला, क़यामत, बवंडर, सैलाब, सुनामी, भूकंप
न जाने क्या क्या समा होगा, आज के भारत-पाक मैच में !!
Tuesday, March 29, 2011
अंकुरित ...
सच ! तुम पिछली कई रातों से
कुछ चुम्बकीय से थे
क्यूं थे, क्या बजह थी
कभी नहीं जानना चाहा मैंने !
तुम्हारा चुम्बकीय होना
कुछ अलग नहीं था, सिर्फ
प्यार में अनोखापन था
इन दिनों, तुम पहले से नहीं थे !
मैंने महसूस किया है, तुम्हें
तुम हिमालय की तरह
सच ! तुम बर्फ की तरह
बूँद बूँद झरते रहते थे !
बजह चाहे जो भी रही हो
पर मुझे तृप्ति मिलती थी
तुम्हारे बूँद बूँद झरने से
शायद, इसलिए, कि -
मैं गर्म थी, तपती धरती सी !
मुझे तुम्हारा हिमालय-सा झरना
और मुझमें समा जाना
सुकूं, ठंडक, खुशी दे रहा था !
आज
कुछ चुम्बकीय से थे
क्यूं थे, क्या बजह थी
कभी नहीं जानना चाहा मैंने !
तुम्हारा चुम्बकीय होना
कुछ अलग नहीं था, सिर्फ
प्यार में अनोखापन था
इन दिनों, तुम पहले से नहीं थे !
मैंने महसूस किया है, तुम्हें
तुम हिमालय की तरह
सच ! तुम बर्फ की तरह
बूँद बूँद झरते रहते थे !
बजह चाहे जो भी रही हो
पर मुझे तृप्ति मिलती थी
तुम्हारे बूँद बूँद झरने से
शायद, इसलिए, कि -
मैं गर्म थी, तपती धरती सी !
मुझे तुम्हारा हिमालय-सा झरना
और मुझमें समा जाना
सुकूं, ठंडक, खुशी दे रहा था !
सुनो, तुम्हारा बूँद बूँद झरना
निष्फल नहीं था !
आज
सुबह-सुबह जाना मैंने
तुम्हारा
तुम्हारा
कतरे कतरे में झरना
और बूँद बूँद बन, मुझमें समा जाना
तुम्हारी ये धरा
और बूँद बूँद बन, मुझमें समा जाना
तुम्हारी ये धरा
सच ! अंकुरित हो गई है !!
... सिर्फ खुबसूरती पे, तुम अब नाज न करो !!
सच ! खतों का सिलसिला तो अब चलते रहेगा
ज़रा फुर्सत निकाल के, कहीं मिल लिया जाए !
...
काश हर किसी को मनमाफिक सल्तनत मिल गई होती
उफ़ ! अब क्या कहें, कौन होता जो नहीं सुलतान होता !!
...
मौक़ा सुनहरा है, काश दम-ख़म लगा दें सब खिलाड़ी
एक बार फिर से, हम विश्व क्रिकेट के सरताज बन जाएं !
...
सच ! ये माना हमारे दरमियां, वक्त का फासला हुआ लंबा
न कर अफसोस, किसी दिन वक्त को भी हम आजमाएंगे !
...
हमने तो लिखकर संदेशा, वक्त पर ही भेज दिया था तुम्हें
'रब' जाने, तुम तक पहुंचते पहुंचते, क्यूं इन्तेहा हो गई !
...
देखते, देखते, न जाने कब, कट जाएगा ये सफ़र
जब मिलना ही है हमें, फिर तब क्या, कब क्या !
...
चल पडी ये परिपाटी, कुछ नाशुकरों की चाल से
महापुरुषों का ही क्या, सारे वतन का ये हाल है !
...
कोई हौले हौले, कुछ कहे बगैर, हमसे दूर चला गया
उफ़ ! गया भी इतनी दूर, लौट आना मुमकिन नहीं !
...
आईना, दिल, खुशी, गम, दीवानगी, कहानी
उफ़ ! न जाने कब तलक हम खामोश बैठेंगे !
...
सच ! हम तो दीवाने हैं सदियों से तेरे
सिर्फ खुबसूरती पे, तुम अब नाज न करो !!
ज़रा फुर्सत निकाल के, कहीं मिल लिया जाए !
...
काश हर किसी को मनमाफिक सल्तनत मिल गई होती
उफ़ ! अब क्या कहें, कौन होता जो नहीं सुलतान होता !!
...
मौक़ा सुनहरा है, काश दम-ख़म लगा दें सब खिलाड़ी
एक बार फिर से, हम विश्व क्रिकेट के सरताज बन जाएं !
...
सच ! ये माना हमारे दरमियां, वक्त का फासला हुआ लंबा
न कर अफसोस, किसी दिन वक्त को भी हम आजमाएंगे !
...
हमने तो लिखकर संदेशा, वक्त पर ही भेज दिया था तुम्हें
'रब' जाने, तुम तक पहुंचते पहुंचते, क्यूं इन्तेहा हो गई !
...
देखते, देखते, न जाने कब, कट जाएगा ये सफ़र
जब मिलना ही है हमें, फिर तब क्या, कब क्या !
...
चल पडी ये परिपाटी, कुछ नाशुकरों की चाल से
महापुरुषों का ही क्या, सारे वतन का ये हाल है !
...
कोई हौले हौले, कुछ कहे बगैर, हमसे दूर चला गया
उफ़ ! गया भी इतनी दूर, लौट आना मुमकिन नहीं !
...
आईना, दिल, खुशी, गम, दीवानगी, कहानी
उफ़ ! न जाने कब तलक हम खामोश बैठेंगे !
...
सच ! हम तो दीवाने हैं सदियों से तेरे
सिर्फ खुबसूरती पे, तुम अब नाज न करो !!
... उसे नहीं थी खबर, मैं अभी सफ़र के रास्ते पर हूँ !!
चंद लफ्जों में बयां कर दी थी कहानी हमने
पढ़ते पढ़ते न जाने क्यूं, वो लम्बी हो गई !
...
हम शब्दों से प्यार और शब्दों से ही चोट करते हैं
कभी फुर्सत मिले, तो शब्दों को टटोल लेना !
...
हंसना-रोना तो पल पल में बदल जाता है 'उदय'
सच ! कभी मौक़ा मिले, तो ज़रा खामोश रहो !
...
वक्त का कारवां तो बढ़ता, आगे चलता रहता है 'उदय'
ज़रा रुककर, ठहर कर, खुदी को टटोलना सीखो !
...
लोकसभा-विधानसभा में थप्पड़, झूमा-झटकी, मारपीट
उफ़ ! देश के हालात नाजुक हैं, कहीं हत्याएं न होने लगें !
...
अब कोई हम से न पूछे, साख और उल्लू की दास्तां
सारे के सारे गुलिस्तां में, उल्लू-उल्लूओं का राज है !
...
हमें तो कहीं, महापुरुष होने-बनने का कोई पैमाना नहीं दिखता
गर है, तो कोई बताये हमें, महापुरुषों की श्रेणी में कौन नहीं है !
...
भारत महान ! महानता का जिक्र, जब जब शहर में होता है
न जाने क्यूं, भ्रष्ट लोकतंत्र की पीड़ा जहन में कौंध जाती है !
...
काश ! तुमने कपडे पहने हुए होते, जिन्हें उतारने का दम भरती हो
उफ़ ! टीम की जीत पर कोई नंगी, कपडे उतारेगी तो क्या उतारेगी !
...
किसी ने नापना चाहा था कद मेरा, मेरे ठिकाने से
उसे नहीं थी खबर, मैं अभी सफ़र के रास्ते पर हूँ !!
पढ़ते पढ़ते न जाने क्यूं, वो लम्बी हो गई !
...
हम शब्दों से प्यार और शब्दों से ही चोट करते हैं
कभी फुर्सत मिले, तो शब्दों को टटोल लेना !
...
हंसना-रोना तो पल पल में बदल जाता है 'उदय'
सच ! कभी मौक़ा मिले, तो ज़रा खामोश रहो !
...
वक्त का कारवां तो बढ़ता, आगे चलता रहता है 'उदय'
ज़रा रुककर, ठहर कर, खुदी को टटोलना सीखो !
...
लोकसभा-विधानसभा में थप्पड़, झूमा-झटकी, मारपीट
उफ़ ! देश के हालात नाजुक हैं, कहीं हत्याएं न होने लगें !
...
अब कोई हम से न पूछे, साख और उल्लू की दास्तां
सारे के सारे गुलिस्तां में, उल्लू-उल्लूओं का राज है !
...
हमें तो कहीं, महापुरुष होने-बनने का कोई पैमाना नहीं दिखता
गर है, तो कोई बताये हमें, महापुरुषों की श्रेणी में कौन नहीं है !
...
भारत महान ! महानता का जिक्र, जब जब शहर में होता है
न जाने क्यूं, भ्रष्ट लोकतंत्र की पीड़ा जहन में कौंध जाती है !
...
काश ! तुमने कपडे पहने हुए होते, जिन्हें उतारने का दम भरती हो
उफ़ ! टीम की जीत पर कोई नंगी, कपडे उतारेगी तो क्या उतारेगी !
...
किसी ने नापना चाहा था कद मेरा, मेरे ठिकाने से
उसे नहीं थी खबर, मैं अभी सफ़र के रास्ते पर हूँ !!
Monday, March 28, 2011
... हुई रात जैसे जैसे, लोग उसमें डूबने लगे !!
धुन से जब निकला मैं बाहर, फिर अपना न रहा
कौन जाने, किस घड़ी, कोई कह दे मुझे अपना !
...
रोज मौक़ा नहीं होता, गुफ्तगू का शहर में
श्मशानी रश्मों के बीच, ये चर्चाएं आम हैं !
...
चलो दो कदम, हम सांथ सांथ सफ़र कर लें
मंजिलों की ओर राहें, मिलकर सहज कर लें !
...
मुद्दत हुई तुम्हें देखे, मिले, छुए हुए
सच ! तुम आज भी उतनी हंसी होगी !
...
सच ! जो शब्द उमड़ पड़े जहन में, लगा मेरे हैं
जब कागजों पे उकेरे, तो सब तुम्हारे निकले !
...
काश ! हम पर भी हमारी मर्जी होती
दो घड़ी बैठ के, तुम संग बातें करते !
...
ज़रा ठहरो, ज़रा एतबार करो, हम मिलेंगे
सच ! ज़रा ये वक्त का तूफां तो ठहर जाने दो !
...
अभी यौन सुख, शायद मिला नहीं है पूरा
तब ही तो पैर, एक जगह ठहरते कहाँ हैं !
...
सच ! एक अर्सा हुआ, खड़े हैं बाजार में
इतना हुनर नहीं, खुद को बेच दें किसे !
...
दिन भर अछूत थी, एक लड़की शहर की
हुई रात जैसे जैसे, लोग उसमें डूबने लगे !!
कौन जाने, किस घड़ी, कोई कह दे मुझे अपना !
...
रोज मौक़ा नहीं होता, गुफ्तगू का शहर में
श्मशानी रश्मों के बीच, ये चर्चाएं आम हैं !
...
चलो दो कदम, हम सांथ सांथ सफ़र कर लें
मंजिलों की ओर राहें, मिलकर सहज कर लें !
...
मुद्दत हुई तुम्हें देखे, मिले, छुए हुए
सच ! तुम आज भी उतनी हंसी होगी !
...
सच ! जो शब्द उमड़ पड़े जहन में, लगा मेरे हैं
जब कागजों पे उकेरे, तो सब तुम्हारे निकले !
...
काश ! हम पर भी हमारी मर्जी होती
दो घड़ी बैठ के, तुम संग बातें करते !
...
ज़रा ठहरो, ज़रा एतबार करो, हम मिलेंगे
सच ! ज़रा ये वक्त का तूफां तो ठहर जाने दो !
...
अभी यौन सुख, शायद मिला नहीं है पूरा
तब ही तो पैर, एक जगह ठहरते कहाँ हैं !
...
सच ! एक अर्सा हुआ, खड़े हैं बाजार में
इतना हुनर नहीं, खुद को बेच दें किसे !
...
दिन भर अछूत थी, एक लड़की शहर की
हुई रात जैसे जैसे, लोग उसमें डूबने लगे !!
सुहागरात !!
( विशेष नोट : - एक कहानी लिख रहा हूँ उसके अंश प्रस्तुत हैं .... पार्ट - १ .... )
करीना क्या बात है, आज तू बहुत खुश लग रही है !
हाँ प्रियंका, आज मैं बहुत खुश हूँ, आज रात मेरी नई शादी है, सुहागरात है !
सच, ये तो बहुत खुशी की बात है, पर किसके साथ !
वो अपने सेठ जी हैं न, बड़ी कोठी वाले, सरकार में मंत्री बन गए हैं, उनके साथ !
अरे वो तो बूढा हो गया है !
अपने को उससे क्या, क्या जवान और क्या बूढा, अपने को तो रुपयों से मतलब है, आज रात उसकी दुल्हन ... पर खुशी की बात तो है वह मंत्री जो ठहरा !
हाँ ये भी ठीक है, अपुन लोगों की तो रोज ही शादी और सुहागरात होती है, आज तू किस्मत वाली है जो मंत्री के साथ किसी आलीशान कोठी और मखमली बिस्तर पर सुहागरात मनायेगी .... सच तू खुशनसीब है ... कितने रुपये मिले !
दस हजार एडवांस में मिल गए हैं ... और बांकी कुछ शायद मंत्री खुश होकर तो दे ही देगा !
हाँ ... सच कह रही है तू करीना ... चल ठीक है ... मैं चलती हूँ थक गई हूँ !
अरे, क्यूं, क्या हुआ प्रियंका, कैसे थक गई !
अरे यार ... आज दिन में ही .... एक बड़े साहब का बुलावा आ गया था ... तू तो जानती है दिन में ... साहब के साथ दौरे पर ... वो मजा नहीं आता .... जो रात में होता है ... चल चलती हूँ ... कल बताना अपनी सुहागरात की कहानी ... बाय ... ख्याल रखना अपना !
ठीक ... बाय !
दूसरे दिन करीना और प्रियंका मिले -
यार करीना सुना ना ... कैसी रही तेरी शादी और ... !
प्रियंका ... सच मजा आ गया ... कल रात ९ बजे ही एसी गाडी आ गई थी लेने ... बैठकर गई ... सीधे एक फ़ार्म हाऊस में जाकर रुकी ... क्या आव-भगत हुई ... चिकन, मछली, विदेशी शराब ... यूं कहूं तो बस मजा ही मजा था ... मंत्री की आँखे मुझे देखकर फटी की फटी रह गईं .... शायद पहले कभी मेरे जैसी २१-२२ साल की जवान लड़की वो भी गोरी-नारी ... मुझे देखते ही गले लगा लिया और चूमने लगा ... फिर क्या था मजे ही मजे !
यार करीना, तू सचमुच बहुत लकी है ... तुझे हरदम ... यार ये बता फिर क्या हुआ !
फिर होना क्या था ... मंत्री पैग बनाने लगा ... और मैं बाथरूम में जाकर ... नहा धोकर फ्रेश होकर बाहर आई ... ग्राहक के मन की इच्छा के अनुरूप सिर्फ टाबेल को लपेट कर ... जानती हूँ ग्राहक हमेशा बिना कपड़ों के ही देखना चाहता है ... तू तो जानती है इस बात का मैं विशेष ध्यान रखती हूँ ... ग्राहक को हमेशा ही भगवान मानती हूँ और खुद को हमेशा ... पूजा और भोग की सामग्री !
सही कहा करीना ... तू सचमुच झक्कास आईटम है ... तेरा तो कोई जवाब नहीं है ... फिर क्या हुआ !
फिर ... मुझे देखते ही हाथ पकड़ कर अपनी जांघ पर बिठा लिया और मुझे चूमते हुए ... पैग का गिलास उठाकर मुझे एक घूँट पिलाया और खुद पीने लगा ... क्या बताऊँ प्रियंका ... जब उसने मुझे चूमा और एक घूँट पिलाया ... फिर उसने उसी पैग को पिया तो ऐसा लगा ... जैसे जन्नत में सुहागरात मना रही हूँ !
फिर ... आगे भी तो बता ... मुझे तो जलन हो रही है सुनकर ... फिर भी बता ... आगे क्या हुआ !
... अब आगे क्या ... तू तो जानती है मुझे ... मैंने भी उसे खुश करने में कोई कसर नहीं छोडी ... उसने जो जो सोचा नहीं होगा ... उससे भी कहीं ज्यादा मैंने उसे सुख दे दिया ... उसे लगा हो जैसे किसी जन्नत की अप्सरा के साथ रात बिताई हो ... सच ... बेहद हंसी सुहागरात थी ... बहुत मजा आया ... और तो और अभी मैंने जब अपना पर्स देखा तो उसमें एक एक हजार के पांच नोट रखे थे और मंत्री का मोबाइल नंबर भी ... प्रियंका, कल की रात किसी जन्नती सुहागरात से कम नहीं थी !!
.... क्रमश: - पार्ट -२ ब्रेक के बाद ....
करीना क्या बात है, आज तू बहुत खुश लग रही है !
हाँ प्रियंका, आज मैं बहुत खुश हूँ, आज रात मेरी नई शादी है, सुहागरात है !
सच, ये तो बहुत खुशी की बात है, पर किसके साथ !
वो अपने सेठ जी हैं न, बड़ी कोठी वाले, सरकार में मंत्री बन गए हैं, उनके साथ !
अरे वो तो बूढा हो गया है !
अपने को उससे क्या, क्या जवान और क्या बूढा, अपने को तो रुपयों से मतलब है, आज रात उसकी दुल्हन ... पर खुशी की बात तो है वह मंत्री जो ठहरा !
हाँ ये भी ठीक है, अपुन लोगों की तो रोज ही शादी और सुहागरात होती है, आज तू किस्मत वाली है जो मंत्री के साथ किसी आलीशान कोठी और मखमली बिस्तर पर सुहागरात मनायेगी .... सच तू खुशनसीब है ... कितने रुपये मिले !
दस हजार एडवांस में मिल गए हैं ... और बांकी कुछ शायद मंत्री खुश होकर तो दे ही देगा !
हाँ ... सच कह रही है तू करीना ... चल ठीक है ... मैं चलती हूँ थक गई हूँ !
अरे, क्यूं, क्या हुआ प्रियंका, कैसे थक गई !
अरे यार ... आज दिन में ही .... एक बड़े साहब का बुलावा आ गया था ... तू तो जानती है दिन में ... साहब के साथ दौरे पर ... वो मजा नहीं आता .... जो रात में होता है ... चल चलती हूँ ... कल बताना अपनी सुहागरात की कहानी ... बाय ... ख्याल रखना अपना !
ठीक ... बाय !
दूसरे दिन करीना और प्रियंका मिले -
यार करीना सुना ना ... कैसी रही तेरी शादी और ... !
प्रियंका ... सच मजा आ गया ... कल रात ९ बजे ही एसी गाडी आ गई थी लेने ... बैठकर गई ... सीधे एक फ़ार्म हाऊस में जाकर रुकी ... क्या आव-भगत हुई ... चिकन, मछली, विदेशी शराब ... यूं कहूं तो बस मजा ही मजा था ... मंत्री की आँखे मुझे देखकर फटी की फटी रह गईं .... शायद पहले कभी मेरे जैसी २१-२२ साल की जवान लड़की वो भी गोरी-नारी ... मुझे देखते ही गले लगा लिया और चूमने लगा ... फिर क्या था मजे ही मजे !
यार करीना, तू सचमुच बहुत लकी है ... तुझे हरदम ... यार ये बता फिर क्या हुआ !
फिर होना क्या था ... मंत्री पैग बनाने लगा ... और मैं बाथरूम में जाकर ... नहा धोकर फ्रेश होकर बाहर आई ... ग्राहक के मन की इच्छा के अनुरूप सिर्फ टाबेल को लपेट कर ... जानती हूँ ग्राहक हमेशा बिना कपड़ों के ही देखना चाहता है ... तू तो जानती है इस बात का मैं विशेष ध्यान रखती हूँ ... ग्राहक को हमेशा ही भगवान मानती हूँ और खुद को हमेशा ... पूजा और भोग की सामग्री !
सही कहा करीना ... तू सचमुच झक्कास आईटम है ... तेरा तो कोई जवाब नहीं है ... फिर क्या हुआ !
फिर ... मुझे देखते ही हाथ पकड़ कर अपनी जांघ पर बिठा लिया और मुझे चूमते हुए ... पैग का गिलास उठाकर मुझे एक घूँट पिलाया और खुद पीने लगा ... क्या बताऊँ प्रियंका ... जब उसने मुझे चूमा और एक घूँट पिलाया ... फिर उसने उसी पैग को पिया तो ऐसा लगा ... जैसे जन्नत में सुहागरात मना रही हूँ !
फिर ... आगे भी तो बता ... मुझे तो जलन हो रही है सुनकर ... फिर भी बता ... आगे क्या हुआ !
... अब आगे क्या ... तू तो जानती है मुझे ... मैंने भी उसे खुश करने में कोई कसर नहीं छोडी ... उसने जो जो सोचा नहीं होगा ... उससे भी कहीं ज्यादा मैंने उसे सुख दे दिया ... उसे लगा हो जैसे किसी जन्नत की अप्सरा के साथ रात बिताई हो ... सच ... बेहद हंसी सुहागरात थी ... बहुत मजा आया ... और तो और अभी मैंने जब अपना पर्स देखा तो उसमें एक एक हजार के पांच नोट रखे थे और मंत्री का मोबाइल नंबर भी ... प्रियंका, कल की रात किसी जन्नती सुहागरात से कम नहीं थी !!
.... क्रमश: - पार्ट -२ ब्रेक के बाद ....
सच ! तू मेरी गौरैया है !!
चिड़ियों की चह-चहाहट सुन
मन मेरा, चंचल हो जाता है
जब जब देखूं, मैं तुझको
मुझको चिड़ियों सी, तू लगती है
चूँ-चूँ करतीं चिड़ियाँ जैसे
वैसे ही, तेरी बातें भी, मुझको
मीठी-मीठी, चूँ-चूँ सी लगती हैं
कब तू आती, पास मेरे
और कब फुर्र-फुर्र उड़ जाती है
नाजुक, कोमल, भावन, प्यारी
सच ! तू मेरी गौरैया है !!
मन मेरा, चंचल हो जाता है
जब जब देखूं, मैं तुझको
मुझको चिड़ियों सी, तू लगती है
चूँ-चूँ करतीं चिड़ियाँ जैसे
वैसे ही, तेरी बातें भी, मुझको
मीठी-मीठी, चूँ-चूँ सी लगती हैं
कब तू आती, पास मेरे
और कब फुर्र-फुर्र उड़ जाती है
नाजुक, कोमल, भावन, प्यारी
सच ! तू मेरी गौरैया है !!
...................
सच ! जब जब देखा मैंने गौरैया को, तुम मुझको याद आईं
और जब जब देखा तुमको मैंने, तुम गौरैया सी मन को भाईँ !
........................
सच ! जब जब देखा मैंने गौरैया को, तुम मुझको याद आईं
और जब जब देखा तुमको मैंने, तुम गौरैया सी मन को भाईँ !
........................
Sunday, March 27, 2011
पथरीली राहें ...
मूंड खुजाते बैठ गया था
देख सफ़र की, पथरीली राहें
दरख़्त तले की शीतल छाया
लग रही थी, तपती मुझको !
फिर, चलना था, और
आगे बढ़ना था मुझको
राहें हों पथरीली
कुछ पल सहमा, सहम रहा था
देख सुलगती, पथरीली राहें
फिर हौसले को, मैंने
सोते, सोते से झंकझोर जगाया !
पानी के छींटे, मारे माथे पर अपने
कदम उठाये, रखे धरा पर
पकड़ हौसला, और कदमों को
धीरे धीरे, चल पडा मैं !
पथरीली, तपती, सुलगती राहों पर
कदम, हौसले, धीरे धीरे
संग संग मेरे चल रहे थे
जीवन, और मंजिल की ओर !!
देख सफ़र की, पथरीली राहें
दरख़्त तले की शीतल छाया
लग रही थी, तपती मुझको !
फिर, चलना था, और
आगे बढ़ना था मुझको
राहें हों पथरीली
या तपती धरती हो
मेरी मंजल तक तो, चलना था मुझको !
मेरी मंजल तक तो, चलना था मुझको !
कुछ पल सहमा, सहम रहा था
देख सुलगती, पथरीली राहें
फिर हौसले को, मैंने
सोते, सोते से झंकझोर जगाया !
पानी के छींटे, मारे माथे पर अपने
कदम उठाये, रखे धरा पर
पकड़ हौसला, और कदमों को
धीरे धीरे, चल पडा मैं !
पथरीली, तपती, सुलगती राहों पर
कदम, हौसले, धीरे धीरे
संग संग मेरे चल रहे थे
जीवन, और मंजिल की ओर !!
... जब से हमनें, हवाओं संग गुफ्तगू की है !!
आज फिर सब में, किसी ने गुड मार्निंग कहा
काश ! ये सब, हंसी, मोहक, सुहानी हो जाए !
...
सच ! जब जब देखा मैंने गौरैया को, तुम मुझको याद आईं
और जब जब देखा तुमको मैंने, तुम गौरैया सी मन को भाईँ !
...
एक सच्चाई से झलके, तो सच झलके ऐसे
सच ! नजर उठे, ठहरे तो, बस ठहरी ही रहे !
...
सच ! न जाने कब तलक खुद को, हम यूं ही बेचेंगे
वतन की आन, वान, शान पे न जाने कब मिटेंगे !
...
सच ! अब तो हमें खुदी पे एतबार न रहा
फिर भी अगर चाहो, तो हमें चाहते रहो !
...
खतों का सिलसिला, अब थम सा गया है
जब से हमनें, हवाओं संग गुफ्तगू की है !
...
तू इतना भी न कर गुमां खुद पे, जीत जाने का
सच ! मैदान में तो आ, तुझे भी आज मायेंगे !
...
उफ़ ! सारे वतन में दलाली, दलालों का बोलबाला हुआ
हुआ है खौफ जहन में, कहीं कोई उसका सौदा न करे !
...
एक अर्सा हुआ गुजरे हुए, तेरी जिन्दगी से
कभी हम याद आएं तो ज़रा मुस्कुरा लेना !
...
क्या खूब, क्या खूब, क्या खूब खबर है
बधाई, बधाई, बधाई, शुभ-शुभकामनाएं !
काश ! ये सब, हंसी, मोहक, सुहानी हो जाए !
...
सच ! जब जब देखा मैंने गौरैया को, तुम मुझको याद आईं
और जब जब देखा तुमको मैंने, तुम गौरैया सी मन को भाईँ !
...
एक सच्चाई से झलके, तो सच झलके ऐसे
सच ! नजर उठे, ठहरे तो, बस ठहरी ही रहे !
...
सच ! न जाने कब तलक खुद को, हम यूं ही बेचेंगे
वतन की आन, वान, शान पे न जाने कब मिटेंगे !
...
सच ! अब तो हमें खुदी पे एतबार न रहा
फिर भी अगर चाहो, तो हमें चाहते रहो !
...
खतों का सिलसिला, अब थम सा गया है
जब से हमनें, हवाओं संग गुफ्तगू की है !
...
तू इतना भी न कर गुमां खुद पे, जीत जाने का
सच ! मैदान में तो आ, तुझे भी आज मायेंगे !
...
उफ़ ! सारे वतन में दलाली, दलालों का बोलबाला हुआ
हुआ है खौफ जहन में, कहीं कोई उसका सौदा न करे !
...
एक अर्सा हुआ गुजरे हुए, तेरी जिन्दगी से
कभी हम याद आएं तो ज़रा मुस्कुरा लेना !
...
क्या खूब, क्या खूब, क्या खूब खबर है
बधाई, बधाई, बधाई, शुभ-शुभकामनाएं !
Saturday, March 26, 2011
गुनगुने ...
बात बिगड़ते देख वो
मस्तमौला हो लिए !
तैश सी बातें सुने जब
डगमग डगमग हो लिए !
ना ठंडे, ना गरम
सम्बन्ध गुनगुने कर लिए !
कौन ठिठुरता ठण्ड में
या झुलसता धूप में !
न इधर, न उधर
पकड़ी एक नई डगर !
बीच के रस्ते सुहाने
जानकर और मानकर !
नेता, अफसर, पत्रकार
गुनगुने-गुनगुने से हो लिए !!
मस्तमौला हो लिए !
तैश सी बातें सुने जब
डगमग डगमग हो लिए !
ना ठंडे, ना गरम
सम्बन्ध गुनगुने कर लिए !
कौन ठिठुरता ठण्ड में
या झुलसता धूप में !
न इधर, न उधर
पकड़ी एक नई डगर !
बीच के रस्ते सुहाने
जानकर और मानकर !
नेता, अफसर, पत्रकार
गुनगुने-गुनगुने से हो लिए !!
फ़रिश्ते ...
सच ! तुम फ़रिश्ते बन
उतर आते हो जहन में मेरे
कब, कैसे, समा जाते हो
मुझमें, खबर नहीं होती !
तुम्हारा मुझमें समा जाना
अदभुत सा लगता है मुझे
तुम्हारा वेग, हौलापन
सरसराता हुआ समागम
कोई कुदरती पहल हो जैसे !
तुम्हारा मुझमें डूब जाना
मेरे अन्दर, और अन्दर
डूबकर फिर हिलौरें मारना
भीतर ही भीतर, और भीतर
मेरे अंग अंग में समा जाना
माथे, आँखें, होंठ, कान, गले
होते हुए, धीरे धीरे, लहरों सा
वक्ष, यौन, जांघ, पिंडलियों
से होते हुए, नितम्ब, कमर, पीठ
अंग अंग में हिलौरें भरना
किसी करिश्मे से कम नहीं होता
हर क्षण तुम मुझे, फ़रिश्ते
सच ! फ़रिश्ते ही लगते हो !!
उतर आते हो जहन में मेरे
कब, कैसे, समा जाते हो
मुझमें, खबर नहीं होती !
तुम्हारा मुझमें समा जाना
अदभुत सा लगता है मुझे
तुम्हारा वेग, हौलापन
सरसराता हुआ समागम
कोई कुदरती पहल हो जैसे !
तुम्हारा मुझमें डूब जाना
मेरे अन्दर, और अन्दर
डूबकर फिर हिलौरें मारना
भीतर ही भीतर, और भीतर
मेरे अंग अंग में समा जाना
सच ! कहाँ-कहाँ नहीं !!
माथे, आँखें, होंठ, कान, गले
होते हुए, धीरे धीरे, लहरों सा
वक्ष, यौन, जांघ, पिंडलियों
से होते हुए, नितम्ब, कमर, पीठ
अंग अंग में हिलौरें भरना
किसी करिश्मे से कम नहीं होता
हर क्षण तुम मुझे, फ़रिश्ते
सच ! फ़रिश्ते ही लगते हो !!
Friday, March 25, 2011
कोई हौले हौले, कुछ कहे बगैर, हमसे दूर चला गया ... !!
ये मान लेते हैं ये मोहतरमां फिल्म हीरोइन नहीं हैं
पर खुबसूरती में किसी हीरोइन से कम भी नहीं हैं !
...
सच ! कोई कुछ भी कहे, कुछ कशिश तो है
ये और बात है समय की मार से कौन बचा है !
...
जीतना-हारना भी किसी दस्तूर से कम नहीं हैं
उफ़ ! किसी को जीतना, तो किसी को हारना था !
...
जो तुमने वादा किया हमसे, फिर मिलने का
अब तो इंतज़ार है, 'उदय' जाने कब मिलते हैं !
...
पता नहीं क्या है, पर कुछ ख़ास तो है तेरे हंसी चेहरे में
सच ! बजह चाहे जो हो, तुम्हें देखूं, तो बस देखता रहूँ !
...
काश ! कोई हमें भी इतना चाह लेता
चाहत मिलती, भले दूर से ही सही !
...
अपने देश के भ्रष्ट नेता, अफसर, पत्रकार, क्या कहने
सच ! इन्हें न सही, पर हमें तो शर्म आती है इन पर !
...
लो चले हम भी, होके मजबूर, तेरी धड़कनों से
दूर रहें या पास, चाहेंगे और चाहते रहेंगे तुम्हें !
...
कोई हौले हौले, कुछ कहे बगैर, हमसे दूर चला गया
उफ़ ! गया भी तो इतनी दूर, लौट के आना मुमकिन नहीं !!
पर खुबसूरती में किसी हीरोइन से कम भी नहीं हैं !
...
सच ! कोई कुछ भी कहे, कुछ कशिश तो है
ये और बात है समय की मार से कौन बचा है !
...
जीतना-हारना भी किसी दस्तूर से कम नहीं हैं
उफ़ ! किसी को जीतना, तो किसी को हारना था !
...
जो तुमने वादा किया हमसे, फिर मिलने का
अब तो इंतज़ार है, 'उदय' जाने कब मिलते हैं !
...
पता नहीं क्या है, पर कुछ ख़ास तो है तेरे हंसी चेहरे में
सच ! बजह चाहे जो हो, तुम्हें देखूं, तो बस देखता रहूँ !
...
काश ! कोई हमें भी इतना चाह लेता
चाहत मिलती, भले दूर से ही सही !
...
अपने देश के भ्रष्ट नेता, अफसर, पत्रकार, क्या कहने
सच ! इन्हें न सही, पर हमें तो शर्म आती है इन पर !
...
लो चले हम भी, होके मजबूर, तेरी धड़कनों से
दूर रहें या पास, चाहेंगे और चाहते रहेंगे तुम्हें !
...
कोई हौले हौले, कुछ कहे बगैर, हमसे दूर चला गया
उफ़ ! गया भी तो इतनी दूर, लौट के आना मुमकिन नहीं !!
आलिंगन !!
जिन्दगी, एक एक पल
लंबा, बहुत लंबा सफ़र
दिन, जिन्दगी, सफ़र में
जब जब होती हूँ
मैं तुम्हारे आलिंगन में
सच ! कुछ देर को ही सही
पर जब तुम, तेज वेग से
समाते हो मुझमें
कुछ पल को मैं
सिहर सी जाती हूँ
पर जैसे ही तुम
पूरे समा जाते हो मुझमें
आनंदित हो, फूल सी
खिल, बिखर जाती हूँ
खुशबू सी महकने लगती हूँ
मैं, संग संग तुम्हारे !!
लंबा, बहुत लंबा सफ़र
दिन, जिन्दगी, सफ़र में
जब जब होती हूँ
मैं तुम्हारे आलिंगन में
सच ! कुछ देर को ही सही
पर जब तुम, तेज वेग से
समाते हो मुझमें
कुछ पल को मैं
सिहर सी जाती हूँ
पर जैसे ही तुम
पूरे समा जाते हो मुझमें
आनंदित हो, फूल सी
खिल, बिखर जाती हूँ
खुशबू सी महकने लगती हूँ
मैं, संग संग तुम्हारे !!
Thursday, March 24, 2011
सच ! जीत बेहद जरुरी थी, चलो हम जीत गए !!
सच ! एक अर्सा हुआ, मिले-बिछड़े हुए पुराने दोस्तों संग
गर मौक़ा मिला तो, गले लगकर समय को आजमाएंगे !
...
फलक से तोड़कर जगमग सितारे ले आता हूँ
जो अपनी जिन्दगी के अंधेरों में जगमगाते हैं !
...
सच ! जब जब देखा है आईने में खुद को
एक मेरे सिबा सब कुछ नजर आता है !
...
ताउम्र हम करते रहे फक्र, दोस्ती पर जिनकी
आज जाना, खुदगर्जी ने दोस्त बनाया था उन्हें !
...
आज की जीत महज एक जीत नहीं है 'उदय'
सच ! किसी दिग्गज को हरा के हम जीते हैं !
...
क्यूं न आज किसी पुराने बदले की मिठाई खा ली जाए
सच ! बाद में फायनल की राह की मिठाई खायेंगे !
...
सच ! बहुत जख्म खाए थे, अंतत: हम जीत ही गए
पुराना बदला भी हुआ पूरा, और राहें भी आसान हुईं !
...
किसी को बहुत गर्व था खुद पर
आज हारा तो समझ आ गया !
...
जश्न तो जश्न है जीत का, जीत जाने का 'उदय'
उफ़ ! बकबक-झकझक तो चलते रहती है ! !
...
आलम हो जब खुशी का, तब तीज-त्यौहार क्या देखें
सच ! जीत बेहद जरुरी थी, चलो हम जीत गए !!
गर मौक़ा मिला तो, गले लगकर समय को आजमाएंगे !
...
फलक से तोड़कर जगमग सितारे ले आता हूँ
जो अपनी जिन्दगी के अंधेरों में जगमगाते हैं !
...
सच ! जब जब देखा है आईने में खुद को
एक मेरे सिबा सब कुछ नजर आता है !
...
ताउम्र हम करते रहे फक्र, दोस्ती पर जिनकी
आज जाना, खुदगर्जी ने दोस्त बनाया था उन्हें !
...
आज की जीत महज एक जीत नहीं है 'उदय'
सच ! किसी दिग्गज को हरा के हम जीते हैं !
...
क्यूं न आज किसी पुराने बदले की मिठाई खा ली जाए
सच ! बाद में फायनल की राह की मिठाई खायेंगे !
...
सच ! बहुत जख्म खाए थे, अंतत: हम जीत ही गए
पुराना बदला भी हुआ पूरा, और राहें भी आसान हुईं !
...
किसी को बहुत गर्व था खुद पर
आज हारा तो समझ आ गया !
...
जश्न तो जश्न है जीत का, जीत जाने का 'उदय'
उफ़ ! बकबक-झकझक तो चलते रहती है ! !
...
आलम हो जब खुशी का, तब तीज-त्यौहार क्या देखें
सच ! जीत बेहद जरुरी थी, चलो हम जीत गए !!
सच ! जब भी लड़ता हूँ खुद से हार जाता हूँ !!
भीड़ बढ़ती गई, काफिला भी सांथ चलता रहा
उफ़ ! कहीं कुछ थी तन्हाई जहन में, तनहा रहा !
...
ये तो जैसे-तैसे बसर कर ही लेंगे, खानाबदोशी में जिन्दगी
पर एयरकूल्ड के बासिंदों की कैसे कटेगी जेल में जिन्दगी !
...
आंकलन, बंटवारे, हकीकत, पैमाने, उफ़ ! क्या खूब सच है 'उदय'
गरीबी, नसीब, हुस्न, मोहब्बत, सबके अपने अपने मिजाज हैं !!
...
कहां, किसी को दिखती है जहां में, तन्हाई मेरी
भीड़ है, धूप है, तन्हाई संग साया तो सांथ है !
...
अकड़ ने जनभावनाओं को कुचलना है चाहा
जब टूट के बिखरेंगे, तो सबब जान जायेंगे !
...
दिल में जो उतरे हैं गर चाहें भी तो निकलें कैंसे
दिलों के जज्बों नें उन्हें, पर्दानशीं बना दिया !
...
किसने रोका है जितना जी चाहे, उड़ान भरी जाए
क्यूं न जमीं को आसमां से भी छोटा किया जाए !
...
जज्बों, हालातों, और इरादों नें मेरी राहें बदल दीं
कहां से चला, चलते चलते, कहां आ गया हूँ मैं !
...
कमबख्त ये दिल भी कितना सख्त हुआ है 'उदय'
सच ! जब भी लड़ता हूँ खुद से हार जाता हूँ !!
उफ़ ! कहीं कुछ थी तन्हाई जहन में, तनहा रहा !
...
ये तो जैसे-तैसे बसर कर ही लेंगे, खानाबदोशी में जिन्दगी
पर एयरकूल्ड के बासिंदों की कैसे कटेगी जेल में जिन्दगी !
...
आंकलन, बंटवारे, हकीकत, पैमाने, उफ़ ! क्या खूब सच है 'उदय'
गरीबी, नसीब, हुस्न, मोहब्बत, सबके अपने अपने मिजाज हैं !!
...
कहां, किसी को दिखती है जहां में, तन्हाई मेरी
भीड़ है, धूप है, तन्हाई संग साया तो सांथ है !
...
अकड़ ने जनभावनाओं को कुचलना है चाहा
जब टूट के बिखरेंगे, तो सबब जान जायेंगे !
...
दिल में जो उतरे हैं गर चाहें भी तो निकलें कैंसे
दिलों के जज्बों नें उन्हें, पर्दानशीं बना दिया !
...
किसने रोका है जितना जी चाहे, उड़ान भरी जाए
क्यूं न जमीं को आसमां से भी छोटा किया जाए !
...
जज्बों, हालातों, और इरादों नें मेरी राहें बदल दीं
कहां से चला, चलते चलते, कहां आ गया हूँ मैं !
...
कमबख्त ये दिल भी कितना सख्त हुआ है 'उदय'
सच ! जब भी लड़ता हूँ खुद से हार जाता हूँ !!
Wednesday, March 23, 2011
पर कोई सुलह की कोशिश पर, हामी तो भरे !!
चंद रुपयों के लिए, भ्रूण हत्याओं के गुनाह
उफ़ ! इनके गुनाह पीढियां न तबाह कर दें !
...
भ्रष्टाचार मुद्दे पर नारको टेस्ट का नाम सुन कर
उफ़ ! कहीं कुछ नेताओं की जान न निकल जाए !
...
गर न हुई होती मोहब्बत, खुशी-गम हम समझते कैसे
सच ! मोहब्बत तो मोहब्बत है, इल्जाम न लगाओ यारो !
...
तुमने लड़खड़ा कर मोहब्बत में, नशे के इल्जाम सहे हैं
उफ़ ! हम तो मोहब्बती नशे से, शहर में बदनाम हुए हैं !
...
गर बचना है तल्ख़ इल्जामों से 'उदय'
सच ! सारे शहर को बदनाम किया जाए !
...
इंसा चाहे तो कर ले नुक्ता-चीनी जिन्दगी की बुद्धि-विवेक से
मगर अफसोस, समय, हालात, व्यवहार, करने नहीं देते !
...
अब क्या कहें, जब भी देखा तुम्हें, देखते रहे
सच ! गर न देखें तो जीना दुश्वार लगे है !
...
ये कैसा ठंडाई का सुरूर है, जो उतारे न उतरे
ठंडाई संग, रंग और प्यार की चुस्की होगी !
...
ये माना समस्यायों का हल जंग नहीं है 'उदय'
पर कोई सुलह की कोशिश पर, हामी तो भरे !!
उफ़ ! इनके गुनाह पीढियां न तबाह कर दें !
...
भ्रष्टाचार मुद्दे पर नारको टेस्ट का नाम सुन कर
उफ़ ! कहीं कुछ नेताओं की जान न निकल जाए !
...
गर न हुई होती मोहब्बत, खुशी-गम हम समझते कैसे
सच ! मोहब्बत तो मोहब्बत है, इल्जाम न लगाओ यारो !
...
तुमने लड़खड़ा कर मोहब्बत में, नशे के इल्जाम सहे हैं
उफ़ ! हम तो मोहब्बती नशे से, शहर में बदनाम हुए हैं !
...
गर बचना है तल्ख़ इल्जामों से 'उदय'
सच ! सारे शहर को बदनाम किया जाए !
...
इंसा चाहे तो कर ले नुक्ता-चीनी जिन्दगी की बुद्धि-विवेक से
मगर अफसोस, समय, हालात, व्यवहार, करने नहीं देते !
...
अब क्या कहें, जब भी देखा तुम्हें, देखते रहे
सच ! गर न देखें तो जीना दुश्वार लगे है !
...
ये कैसा ठंडाई का सुरूर है, जो उतारे न उतरे
ठंडाई संग, रंग और प्यार की चुस्की होगी !
...
ये माना समस्यायों का हल जंग नहीं है 'उदय'
पर कोई सुलह की कोशिश पर, हामी तो भरे !!
उफ़ ! डरना, और डर कर, डराने की कोशिश की है !
गर मैं उतर जाऊं जमीं पे, तो यकीं नहीं होगा
लोग पत्थर को पूजेंगे, तो मैं 'खुदा' कहलाऊँ !
...
सच ! सौ काम छोड़कर भी, हम दौड़े चले आते !
...
जिसको जाना था, ठहरा नहीं, चला गया
अब तो यादों में ही रहेगा बसेरा उसका !
...अब क्या कहें, दिल तो चाहे था मेरा, शब्दरूपी रंग-गुलाल संग
तेरे दिल, मन, और जज्बातों को रंग रंग के कहता हैप्पी होली !
...
सोचूँ तो बस सोचता रहूँ, फिर कहाँ ठहरती है सोच मेरी
कहीं कुछ तो है जरुर, जो मेरी सोच को ठहरने नहीं देता !
...
ये तो किन्हीं नासमझों ने, आत्मघाती पहल की है
उफ़ ! डरना, और डर कर, डराने की कोशिश की है !
Tuesday, March 22, 2011
उफ़ ! इंतज़ार की कोई इन्तेहा तो हो !!
खफा होकर, किसी को क्या मिला है 'उदय'
जिन्दगी का लुत्फ़, तिरे-मिरे मिलन में है !
...
क्या खूब है हंसी तुम्हारी, कोई जवाब नहीं
जब भी हंसती हो, खुशबू सी बिखरती है !
...
सच ! जी तो चाहे है मेरा, तुम पे फना हो जाऊं
फिर सोचे हूँ, शायद तिरे कुछ काम आ जाऊं !
...
आज फिर लेट, जी तो चाहे है, सारा सिस्टम बदल दूं
पर आज, तुम मेरे जहन में रहोगे, रीयली मिस यू !
...
अब हमसे बसर होता नहीं, तेरे बिना
उफ़ ! इंतज़ार की कोई इन्तेहा तो हो !!
...
जिन्दगी का लुत्फ़, तिरे-मिरे मिलन में है !
...
क्या खूब है हंसी तुम्हारी, कोई जवाब नहीं
जब भी हंसती हो, खुशबू सी बिखरती है !
...
सच ! जी तो चाहे है मेरा, तुम पे फना हो जाऊं
फिर सोचे हूँ, शायद तिरे कुछ काम आ जाऊं !
...
आज फिर लेट, जी तो चाहे है, सारा सिस्टम बदल दूं
पर आज, तुम मेरे जहन में रहोगे, रीयली मिस यू !
...
अब हमसे बसर होता नहीं, तेरे बिना
उफ़ ! इंतज़ार की कोई इन्तेहा तो हो !!
...
Monday, March 21, 2011
हम तो चाहेंगे तुम्हें, जब तक जी चाहेगा ! !
कोई न भी कहे, तब भी हम तो तुम्हें चाहेंगे
सच ! तुम्हें देखे बिना, हमसे रहा नहीं जाता !
...
हमारी चाहतों का, अब कोई इम्तिहां न ले
हम तो चाहेंगे तुम्हें, जब तक जी चाहेगा !
...
अखबार ! जरुरत न सही, आदत सी पड़ गई है
कुछ अच्छा, कुछ बुरा, इसमें संसार दिखता है !
...
ये ठीक ही रहा मुन्नी की बदनामी रंग लाई
बदनाम भी हो गई, और नाम भी हो गया ! !
सच ! तुम्हें देखे बिना, हमसे रहा नहीं जाता !
...
हमारी चाहतों का, अब कोई इम्तिहां न ले
हम तो चाहेंगे तुम्हें, जब तक जी चाहेगा !
...
अखबार ! जरुरत न सही, आदत सी पड़ गई है
कुछ अच्छा, कुछ बुरा, इसमें संसार दिखता है !
...
ये ठीक ही रहा मुन्नी की बदनामी रंग लाई
बदनाम भी हो गई, और नाम भी हो गया ! !
Saturday, March 19, 2011
किसी की मजाल कहाँ थी जो इन मनहूसों को खरीद लेता ... !!
अब खंजर ही सच बयां कर सकते हैं 'उदय'
कलम कहीं बिक गई, तो कहीं गुलाम हुई है !
...
तेरी खूबियाँ किसी इबादत से कम नहीं लगतीं
सच ! सोचता हूँ कहीं 'खुदा' तुमसा तो नहीं होगा !
...
अफसरान खुदी की जगहंसाई में मस्त-मौला हुए हैं
उफ़ ! नेक-नियती से उन्हें परहेज सा हुआ है !
...
हांथ खाली ही सही, पर हौसले बुलंद हैं
कुछ सपने सहेजना, और कुछ खरीदना बांकी है !
...
किसी की मजाल कहाँ थी जो इन मनहूसों को खरीद लेता
वो तो इन्होंने खुद को हंसी-खुशी बेच दिया होगा !
...
अब कोई हमें, जन्नत का दिलासा न दे
हम तो पहुंचे हैं यहाँ, उसी रास्ते होकर !
...
कलम कहीं बिक गई, तो कहीं गुलाम हुई है !
...
तेरी खूबियाँ किसी इबादत से कम नहीं लगतीं
सच ! सोचता हूँ कहीं 'खुदा' तुमसा तो नहीं होगा !
...
अफसरान खुदी की जगहंसाई में मस्त-मौला हुए हैं
उफ़ ! नेक-नियती से उन्हें परहेज सा हुआ है !
...
हांथ खाली ही सही, पर हौसले बुलंद हैं
कुछ सपने सहेजना, और कुछ खरीदना बांकी है !
...
किसी की मजाल कहाँ थी जो इन मनहूसों को खरीद लेता
वो तो इन्होंने खुद को हंसी-खुशी बेच दिया होगा !
...
अब कोई हमें, जन्नत का दिलासा न दे
हम तो पहुंचे हैं यहाँ, उसी रास्ते होकर !
...
Friday, March 18, 2011
खुद को बेच भी दो, खुद के बने भी रहो !!
विकीलीक्स के खुलासे किसी चमत्कार से कम नहीं हैं
उफ़ ! शायद भारतीय मीडिया की पहुँच उतनी नहीं है !
...
सारे के सारे बिक गए हैं, कोई ईमानदार नहीं दिखता
हे 'भगवन' देश का कोई माई-बाप नहीं दिखता !
...
सारा राजनैतिक सिस्टम सड़ चुका है
कहीं देश में महामारी न फ़ैल जाए !
...
हम सब खुद को बेच चुके हैं 'उदय'
गुलाम कहाँ मर्जी का मालिक हुआ है !
...
ये सौदे भी क्या खूब सौदे हैं 'उदय'
खुद को बेच भी दो, खुद के बने भी रहो !!
अब कोई हमें, जन्नत का दिलासा न दे ... !!
एक माँ ही तो है, जिसके मन मंदिर में, हर क्षण बहती है ममता
दुआएं है देती आई, सदियों से, फिर बेटा चाहे रावण हो या राम !
...
गर जज्बे, हौसले, मंसूबे, तूफानों से उमड़ रहे हों जहन में
फिर पत्थरों की परवाह किसे, नजरें मंजिलों पे ठहर जाती हैं !
...
अब कोई हमें, जन्नत का दिलासा न दे
हम तो आये हैं वहीं से होकर !
...
कल सोने न दिया थकान ने, सारी रात हमको
सुबह से फिर है शुरू, मंजिल तक सफ़र मेरा !
...
कोई चाहे भी तो, शायद अब हम न चाहेंगे उसे
एक बार चाहा, और चाहत का अंजाम है देखा !
...
दुआएं है देती आई, सदियों से, फिर बेटा चाहे रावण हो या राम !
...
गर जज्बे, हौसले, मंसूबे, तूफानों से उमड़ रहे हों जहन में
फिर पत्थरों की परवाह किसे, नजरें मंजिलों पे ठहर जाती हैं !
...
अब कोई हमें, जन्नत का दिलासा न दे
हम तो आये हैं वहीं से होकर !
...
कल सोने न दिया थकान ने, सारी रात हमको
सुबह से फिर है शुरू, मंजिल तक सफ़र मेरा !
...
कोई चाहे भी तो, शायद अब हम न चाहेंगे उसे
एक बार चाहा, और चाहत का अंजाम है देखा !
...
Wednesday, March 16, 2011
कौन जाने किस घड़ी, अपनी घड़ी भी आयेगी !!
न जाने कब तलक, हम खुद को आजमाएंगे
चलो छोडो, क्या रक्खा है पुरानी रंजिशों में !
...
हम मोहब्बत को, और मोहब्बत हमें आजमाती रही
उफ़ ! बला थी मोहब्बत, बस जिन्दगी गुजरती रही !
...
उफ़ ! प्यार कर के हमने गुनाह कर दिया
आज मालुम पडा, उन्हें दोस्ती पसंद थी !
...
चलो मिल बैठ कर, कुछ बातें कर लें
जन्नतों सी खुशी, दो घड़ी में गुजर कर लें !
...
जब से देखा है तुम्हें, चैन गायब है हुआ
जब भी देखें हैं तुम्हें, चैन मिल जाता है !
...
सच ! अब क्या कहें, पैर मिरे जमीं पे नहीं रहते
दुआओं के असर ने, आसमां पे बैठाया है मुझे !
...
क्रिकेट ! हमने तो हार तय कर रक्खी थी
उफ़ ! मजबूर थे खेलना पडा, हार गए !
...
सच ! लेखकों की भीड़ देखो, बड़ रही है हर घड़ी
कौन जाने किस घड़ी, अपनी घड़ी भी आयेगी !!
चलो छोडो, क्या रक्खा है पुरानी रंजिशों में !
...
हम मोहब्बत को, और मोहब्बत हमें आजमाती रही
उफ़ ! बला थी मोहब्बत, बस जिन्दगी गुजरती रही !
...
उफ़ ! प्यार कर के हमने गुनाह कर दिया
आज मालुम पडा, उन्हें दोस्ती पसंद थी !
...
चलो मिल बैठ कर, कुछ बातें कर लें
जन्नतों सी खुशी, दो घड़ी में गुजर कर लें !
...
जब से देखा है तुम्हें, चैन गायब है हुआ
जब भी देखें हैं तुम्हें, चैन मिल जाता है !
...
सच ! अब क्या कहें, पैर मिरे जमीं पे नहीं रहते
दुआओं के असर ने, आसमां पे बैठाया है मुझे !
...
क्रिकेट ! हमने तो हार तय कर रक्खी थी
उफ़ ! मजबूर थे खेलना पडा, हार गए !
...
सच ! लेखकों की भीड़ देखो, बड़ रही है हर घड़ी
कौन जाने किस घड़ी, अपनी घड़ी भी आयेगी !!
Tuesday, March 15, 2011
शहर के लोग खुद को 'खुदा' कहते फिरे हैं !!
किसी भी लेखन में, लेखक के व्यक्तित्व को तलाशना
उफ़ ! न सिर्फ लेखक, खुद के सांथ भी नाइंसाफी होगी !
...
सच ! न तो मैं गुल था, और न ही गुलाब था यारो
क्यूं आती रही खुशबु, खुद ही अनजान था यारो !
...
कहीं कुछ है जो झलकता है तेरी अदाओं में
किसी दिन तुम भी शिखर पर जरुर होगे !
...
हिंसा-अहिंसा, न्याय-अन्याय, जिंदगी-मौत, सत्य-असत्य
उफ़ ! अब क्या कहें, कहीं राहें, कहीं सोचें, भटकी भटकी दिखे हैं !
...
गर रुसवा ही होना था मोहब्बत को, दर पे तिरे
हो जाने देती, तेरी खामोशियाँ देखी नहीं जातीं !
...
हमें तो हुस्न, किसी तिलस्म से कम नहीं लगता
न देखो तो पछताओ, देख लो तो फिर फंस जाओ !
...
हम बेच देंगे खुद को, चाहे कोई गुनाह ही कहे
पत्रकार हुए तो क्या, शान-शौकत नहीं होगी !
...
क्या कोई हद, दायरा, सरहद है, गुनाहों की
कहो गर है, तो एक बार में ही क्षमा कर दें !
...
मैं खुद का होकर कुछ कर नहीं पाता, जी चाहे बेच दूं
उफ़ ! मगर अफसोस, कोई खरीददार नहीं मिलता !
...
सच ! अब इबादत का मन नहीं होता 'उदय'
शहर के लोग खुद को 'खुदा' कहते फिरे हैं !!
उफ़ ! न सिर्फ लेखक, खुद के सांथ भी नाइंसाफी होगी !
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सच ! न तो मैं गुल था, और न ही गुलाब था यारो
क्यूं आती रही खुशबु, खुद ही अनजान था यारो !
...
कहीं कुछ है जो झलकता है तेरी अदाओं में
किसी दिन तुम भी शिखर पर जरुर होगे !
...
हिंसा-अहिंसा, न्याय-अन्याय, जिंदगी-मौत, सत्य-असत्य
उफ़ ! अब क्या कहें, कहीं राहें, कहीं सोचें, भटकी भटकी दिखे हैं !
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गर रुसवा ही होना था मोहब्बत को, दर पे तिरे
हो जाने देती, तेरी खामोशियाँ देखी नहीं जातीं !
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हमें तो हुस्न, किसी तिलस्म से कम नहीं लगता
न देखो तो पछताओ, देख लो तो फिर फंस जाओ !
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हम बेच देंगे खुद को, चाहे कोई गुनाह ही कहे
पत्रकार हुए तो क्या, शान-शौकत नहीं होगी !
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क्या कोई हद, दायरा, सरहद है, गुनाहों की
कहो गर है, तो एक बार में ही क्षमा कर दें !
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मैं खुद का होकर कुछ कर नहीं पाता, जी चाहे बेच दूं
उफ़ ! मगर अफसोस, कोई खरीददार नहीं मिलता !
...
सच ! अब इबादत का मन नहीं होता 'उदय'
शहर के लोग खुद को 'खुदा' कहते फिरे हैं !!
Monday, March 14, 2011
टिप्पणियाँ ! क्या गजब दस्तूर हैं ब्लागजगत के !!
भीड़ में सब शेर बन, इधर-उधर दहाड़ते
जुल्म देख पड़ोस में, सब भीगी बिल्ली हो गए !
...
उफ़ ! जब से हुआ है इश्क, हमें नींद है आती नहीं
ख़्वाब देखें भी तो क्या, तुम बसे हर ख़्वाब में !
...
उफ़ ! क्या खूब नज़ारे हैं, जी तो चाहे हम देखते रहें
हंसी वादियां, वर्फ, खुबसूरती, देखें तो देखें किसे !
...
फितरती सोच के कारण, लगे इल्जाम हैं इन पर
अब क्या कहें हम, इनकी ये आदत नहीं जाती !
...
'खुदा' जाने हुस्न की और भी क्या क्या अदाएं होंगी
उफ़ ! किसी ने जान कर भी अनजान बन, हमारी जान ले ली !
...
उफ़ ! बिलकुल नई इबारत, नई कहानी जान पड़ती है
पर जिस्म से जिस्म का रिश्ता, तो सदियों पुराना है !
...
सच ! न तो इस पार ठहरे, और न ही उस पार निकले
फंस गए हम, हुस्न के नखरे ही बड़े तिलस्म निकले !
...
गर दोनों ही शख्स जज्बातों में संकोच न करें
तो फिर लव क्या, और अरेंज क्या, सफल हैं !
...
फर्क इतना ही है यारा, दोस्ती और मोहब्बत में
एक में है जान का खतरा, दूजी जीने नहीं देती !
...
भाव, अभाव, प्रभाव, दुर्भाव, प्रादुर्भाव, समभाव
टिप्पणियाँ ! क्या गजब दस्तूर हैं ब्लागजगत के !!
जुल्म देख पड़ोस में, सब भीगी बिल्ली हो गए !
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उफ़ ! जब से हुआ है इश्क, हमें नींद है आती नहीं
ख़्वाब देखें भी तो क्या, तुम बसे हर ख़्वाब में !
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उफ़ ! क्या खूब नज़ारे हैं, जी तो चाहे हम देखते रहें
हंसी वादियां, वर्फ, खुबसूरती, देखें तो देखें किसे !
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फितरती सोच के कारण, लगे इल्जाम हैं इन पर
अब क्या कहें हम, इनकी ये आदत नहीं जाती !
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'खुदा' जाने हुस्न की और भी क्या क्या अदाएं होंगी
उफ़ ! किसी ने जान कर भी अनजान बन, हमारी जान ले ली !
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उफ़ ! बिलकुल नई इबारत, नई कहानी जान पड़ती है
पर जिस्म से जिस्म का रिश्ता, तो सदियों पुराना है !
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सच ! न तो इस पार ठहरे, और न ही उस पार निकले
फंस गए हम, हुस्न के नखरे ही बड़े तिलस्म निकले !
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गर दोनों ही शख्स जज्बातों में संकोच न करें
तो फिर लव क्या, और अरेंज क्या, सफल हैं !
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फर्क इतना ही है यारा, दोस्ती और मोहब्बत में
एक में है जान का खतरा, दूजी जीने नहीं देती !
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भाव, अभाव, प्रभाव, दुर्भाव, प्रादुर्भाव, समभाव
टिप्पणियाँ ! क्या गजब दस्तूर हैं ब्लागजगत के !!
ओहदे, तमगे, रियासतें, सिपहसलारी, सब उनके हुए हैं !!
बुजदिलों ने भीड़ बन, सारा शहर जला दिया
देख लुटती आबरू, किसी से कुछ हुआ नहीं !
...
जब भी देखूं मैं तुझे, जज्बात बहक जाते हैं
अब तुम्हीं कुछ कहो, रोकूँ तो कैसे खुद को !
...
हर जमाने में मोहब्बत का, अपना अलग मकां होता है
ये और बात है, लोग मोहब्बत का तमाशा बना देते हैं !
...
क्यूं छिप छिप कर, हमें यूं सता रहे हो
मेरी आवाज सुनकर, बाहर चले आओ !
...
क्यूं न हम सामने रहते रहते ही, गुमशुदा हो जाएं
कोई पहचान न सके, और हम तुम्हें चाहते भी रहें !
...
वो यूँ दौड़कर आया, हादसे की तरह
टूटकर बिखरा, आंसुओं की तरह !!
...
हम तो मिट्टी के थे, मिट्टी हो गए
तुम थे सोने के, फिर कैसे मिट्टी हो गए !
...
आज भीड़ में वो मुझको मिला था
सच ! न जाने क्यूं तन्हा ही लगा था!
...
ख़त्म क्यूं होती नहीं, साकी तेरी गुस्ताखियां
क्यूं खफा,खफा सी हैं, आज तेरी चालाकियां !
...
चमचागिरी की मिशालें, वतन में खूब तरक्की पे हैं 'उदय'
ओहदे, तमगे, रियासतें, सिपहसलारी, सब उनके हुए हैं !!
देख लुटती आबरू, किसी से कुछ हुआ नहीं !
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जब भी देखूं मैं तुझे, जज्बात बहक जाते हैं
अब तुम्हीं कुछ कहो, रोकूँ तो कैसे खुद को !
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हर जमाने में मोहब्बत का, अपना अलग मकां होता है
ये और बात है, लोग मोहब्बत का तमाशा बना देते हैं !
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क्यूं छिप छिप कर, हमें यूं सता रहे हो
मेरी आवाज सुनकर, बाहर चले आओ !
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क्यूं न हम सामने रहते रहते ही, गुमशुदा हो जाएं
कोई पहचान न सके, और हम तुम्हें चाहते भी रहें !
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वो यूँ दौड़कर आया, हादसे की तरह
टूटकर बिखरा, आंसुओं की तरह !!
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हम तो मिट्टी के थे, मिट्टी हो गए
तुम थे सोने के, फिर कैसे मिट्टी हो गए !
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आज भीड़ में वो मुझको मिला था
सच ! न जाने क्यूं तन्हा ही लगा था!
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ख़त्म क्यूं होती नहीं, साकी तेरी गुस्ताखियां
क्यूं खफा,खफा सी हैं, आज तेरी चालाकियां !
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चमचागिरी की मिशालें, वतन में खूब तरक्की पे हैं 'उदय'
ओहदे, तमगे, रियासतें, सिपहसलारी, सब उनके हुए हैं !!
Sunday, March 13, 2011
उफ़ ! न जाने क्या सोचकर 'रब' ने बनाया है तुझे !!
बुजदिली की मशालें, भीड़ में मिल जायेंगी
फूंक से जल जायेंगी, प्रतिरोध से घवारायेंगी !
...
ताजगी, रौनक, खुशबू, खुबसूरती, दीवानगी
जब भी देखा है तुझे, तू सब सी लगे है मुझे !
...
जागते रहो - नहीं आऊँगी, कह कर चली गई
नहीं आऊँगी सुना नहीं, सारी रात जागते रहे !
...
सुबह से शाम तक, इर्द-गिर्द भटकता फिरा
बेचारा आदमी ! किसी इश्क में लाचार था !
...
सच ! तुम्हारी चुप ने, न जाने क्या कर दिया
देखते देखते आम आदमी से ख़ास हो गया !
...
तुम से आते न बना, और न ही आये तुम
हम बैठे रहे, चौखट पे आँखें बिछाए हुए !
...
उफ़ ! बला सी खुबसूरती समेटी है तुम में
तुम ही कह दो अब, क्यूं न चाहें हम तुम्हे !
...
सच ही कहा है 'उदय' ने, सपने तो सपने होते हैं
देखो तो जी भर के देखो, उनकी हदें नहीं होतीं !
...
जब भी देखा, गुनाह मिरे, आते हैं नजर
सच ! गर झूठ बोलें, तो वे आईने न हों !
...
आँखें, जुल्फें, जिस्म, अदाएं, और महकती खुशबू
उफ़ ! न जाने क्या सोचकर 'रब' ने बनाया है तुझे !!
फूंक से जल जायेंगी, प्रतिरोध से घवारायेंगी !
...
ताजगी, रौनक, खुशबू, खुबसूरती, दीवानगी
जब भी देखा है तुझे, तू सब सी लगे है मुझे !
...
जागते रहो - नहीं आऊँगी, कह कर चली गई
नहीं आऊँगी सुना नहीं, सारी रात जागते रहे !
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सुबह से शाम तक, इर्द-गिर्द भटकता फिरा
बेचारा आदमी ! किसी इश्क में लाचार था !
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सच ! तुम्हारी चुप ने, न जाने क्या कर दिया
देखते देखते आम आदमी से ख़ास हो गया !
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तुम से आते न बना, और न ही आये तुम
हम बैठे रहे, चौखट पे आँखें बिछाए हुए !
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उफ़ ! बला सी खुबसूरती समेटी है तुम में
तुम ही कह दो अब, क्यूं न चाहें हम तुम्हे !
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सच ही कहा है 'उदय' ने, सपने तो सपने होते हैं
देखो तो जी भर के देखो, उनकी हदें नहीं होतीं !
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जब भी देखा, गुनाह मिरे, आते हैं नजर
सच ! गर झूठ बोलें, तो वे आईने न हों !
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आँखें, जुल्फें, जिस्म, अदाएं, और महकती खुशबू
उफ़ ! न जाने क्या सोचकर 'रब' ने बनाया है तुझे !!
Saturday, March 12, 2011
न जाने क्यूं, मेरा महबूब आँखों में उतर आता है !!
सांसद निधि बढ़ा कर सरकार ने, अच्छा किया
सच ! किसी न किसी का तो भला जरुर होगा !
...
'खुदा' जाने, क्यों खामोश रहती है माशूक मेरी
सच ! मैंने तो आज तक उसे, कभी डांटा नहीं !
...
बहुत हुई हाय-तौबा, अभी भी वक्त है, गुनाहों से तौबा कर लो यारो
कहीं ऐसा न हो, इमारतें तो खडी रहें, पर खेलने को बच्चे ही न रहें !
...
वक्त का भी क्या कहना, आज बुरा तो कल अच्छा
ये जिन्दगी है मियां, वक्त बदलते देर नहीं लगती !
...
अंखियाँ, द्वार, पिया, सेज, मिलन, इंतज़ार
उफ़ ! दुल्हन बैठी रही, दुल्हा मियां गायब रहे !
...
सच ! क्या रक्खा है, शब्दों और अल्फाजों में
आंखें मूंद के देखो, शायद वहां मेरा वसेरा हो !
...
हम हो गए थे बुत, देख उसको रु-ब-रु
अब क्या कहें, चाहना, गुनाह हो गया !
...
कब कहा, कब चुप रहे, और कब हमने खामोश कहा
इधर से, उधर से, दिलों की धड़कनें, बातें करती रहीं !
...
आज तू हमें लहरों सी, खिल-खिल बहती लगे है
सच ! जी तो चाहे, आज तेरे संग-संग बह लूं मैं !
...
सच ! 'खुदा' का जिक्र, जब जब जुबां पे आता है
न जाने क्यूं, मेरा महबूब आँखों में उतर आता है !!
सच ! किसी न किसी का तो भला जरुर होगा !
...
'खुदा' जाने, क्यों खामोश रहती है माशूक मेरी
सच ! मैंने तो आज तक उसे, कभी डांटा नहीं !
...
बहुत हुई हाय-तौबा, अभी भी वक्त है, गुनाहों से तौबा कर लो यारो
कहीं ऐसा न हो, इमारतें तो खडी रहें, पर खेलने को बच्चे ही न रहें !
...
वक्त का भी क्या कहना, आज बुरा तो कल अच्छा
ये जिन्दगी है मियां, वक्त बदलते देर नहीं लगती !
...
अंखियाँ, द्वार, पिया, सेज, मिलन, इंतज़ार
उफ़ ! दुल्हन बैठी रही, दुल्हा मियां गायब रहे !
...
सच ! क्या रक्खा है, शब्दों और अल्फाजों में
आंखें मूंद के देखो, शायद वहां मेरा वसेरा हो !
...
हम हो गए थे बुत, देख उसको रु-ब-रु
अब क्या कहें, चाहना, गुनाह हो गया !
...
कब कहा, कब चुप रहे, और कब हमने खामोश कहा
इधर से, उधर से, दिलों की धड़कनें, बातें करती रहीं !
...
आज तू हमें लहरों सी, खिल-खिल बहती लगे है
सच ! जी तो चाहे, आज तेरे संग-संग बह लूं मैं !
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सच ! 'खुदा' का जिक्र, जब जब जुबां पे आता है
न जाने क्यूं, मेरा महबूब आँखों में उतर आता है !!
Friday, March 11, 2011
ऐश्वर्या, प्रियंका, करीना, दीपिका, अनुष्का, कैटरीना ... !!
'खुदा' ने जो नूर बख्शा है तुझे, कोहिनूर जैसा है
उफ़ ! तुझे देखूं तो बेचैनी, न देखूं तो बेचैनी !
...
ए बिडू ये अपुन का थोबड़ा है, बोले तो झक्कास
जो भी देखे, तो समझ ले हो जाए यार अपना !
...
उफ़ ! इतनी बड़ी सरकार, और समझदार सलाहकार कोई नहीं
गर करना है बाबाजी को बेअसर, तो कस दो नकेल भ्रष्टाचार पे !
...
गर गठबंधन ही रोड़ा है, तो तोड़ दो, पर गठबंधन का रोना
उफ़ ! न जाने कब तक रो रो कर, खुदी को शर्मसार करोगे !
...
एक बस्ती तलाशी थी हमने, दो घड़ी सुकूं के लिए
उफ़ ! मजहबी लोग, अब वहां भी नारे लगा रहे हैं !
...
सच ! न कर गुमां, तू अपनी खूबसूरती पे
वो तो मेरी आँखों ने खुबसूरत बनाया है तुझे !
...
उल्फतें, नफरतें, शरारतें, मोहब्बतें, क्या कहने
सच ! गर न हों, तो जिन्दगी में रक्खा क्या है !
...
सच ! जी तो चाहे है, काश ! सिर्फ हम तुम
दो घड़ी बैठ के, चटनी संग समोसे खा लें !
...
उफ़ ! तूने आँखों से, न जाने कौन-सी मय पिला दी मुझे
न तो होश में आते हैं, और न ही होता है नशा अब हमको !
...
ऐश्वर्या, प्रियंका, करीना, दीपिका, अनुष्का, कैटरीना
उफ़ ! क्या गजब लटके-झटके, कैसे संभाले खुद को !!
उफ़ ! तुझे देखूं तो बेचैनी, न देखूं तो बेचैनी !
...
ए बिडू ये अपुन का थोबड़ा है, बोले तो झक्कास
जो भी देखे, तो समझ ले हो जाए यार अपना !
...
उफ़ ! इतनी बड़ी सरकार, और समझदार सलाहकार कोई नहीं
गर करना है बाबाजी को बेअसर, तो कस दो नकेल भ्रष्टाचार पे !
...
गर गठबंधन ही रोड़ा है, तो तोड़ दो, पर गठबंधन का रोना
उफ़ ! न जाने कब तक रो रो कर, खुदी को शर्मसार करोगे !
...
एक बस्ती तलाशी थी हमने, दो घड़ी सुकूं के लिए
उफ़ ! मजहबी लोग, अब वहां भी नारे लगा रहे हैं !
...
सच ! न कर गुमां, तू अपनी खूबसूरती पे
वो तो मेरी आँखों ने खुबसूरत बनाया है तुझे !
...
उल्फतें, नफरतें, शरारतें, मोहब्बतें, क्या कहने
सच ! गर न हों, तो जिन्दगी में रक्खा क्या है !
...
सच ! जी तो चाहे है, काश ! सिर्फ हम तुम
दो घड़ी बैठ के, चटनी संग समोसे खा लें !
...
उफ़ ! तूने आँखों से, न जाने कौन-सी मय पिला दी मुझे
न तो होश में आते हैं, और न ही होता है नशा अब हमको !
...
ऐश्वर्या, प्रियंका, करीना, दीपिका, अनुष्का, कैटरीना
उफ़ ! क्या गजब लटके-झटके, कैसे संभाले खुद को !!
लेखन किसी जादूगरी से, कहीं कुछ कम नहीं ... !!
जी तो चाहे है, तुम्हें बना लूं अपना
फिर खुबसूरती देख ठहर जाता हूँ !
...
मान भी जाओगे बुरा, तो मान जाओ
सच ! क्या फर्क, बुरा न मानो होली है !
...
उफ़ ! क्या अंदाज, और क्या नजाकत संग खुबसूरती है
जी चाहता है, आज समोसे-चटनी का दौर हो जाए !
...
जी तो चाहे है, काश ! सिर्फ हम तुम
दो घड़ी बैठ के, दो कप काफी पी लें !
...
सपने तो सपने होते हैं, कुछ मीठे, कुछ तीखे होते हैं
होना है साकार सभी को, कुछ आज, तो कुछ कल होना है !
...
तू नहीं, तेरे एहसास ही सही
मेरे जज्बातों में बसर है तेरा !
...
गिले, शिकबे, समस्याएं, आलोचनाएं, समालोचनाएं
सच ! बहस होते रही, होते रहेगी, चलो छोडो, आगे बढ़ें !
...
जिन्दगी, हर्ष, संघर्ष, गर्व, गरीबी, अमीरी, सुख, दुख
टुकड़ों टुकड़ों, हिस्सों हिस्सों में, है जिन्दगी का बसेरा !
...
हर रोज, मुझे तुम, वैसी ही लगती हो, जैसे रोज लगती हो
पर कभी वैसी नहीं लगतीं, सच ! जैसे पहली बार लगी थीं !
...
लेखन किसी जादूगरी से, कहीं कुछ कम नहीं है 'उदय'
सच ! फर्क इतना ही है, उतने तमाशबीन नहीं मिलते !!
फिर खुबसूरती देख ठहर जाता हूँ !
...
मान भी जाओगे बुरा, तो मान जाओ
सच ! क्या फर्क, बुरा न मानो होली है !
...
उफ़ ! क्या अंदाज, और क्या नजाकत संग खुबसूरती है
जी चाहता है, आज समोसे-चटनी का दौर हो जाए !
...
जी तो चाहे है, काश ! सिर्फ हम तुम
दो घड़ी बैठ के, दो कप काफी पी लें !
...
सपने तो सपने होते हैं, कुछ मीठे, कुछ तीखे होते हैं
होना है साकार सभी को, कुछ आज, तो कुछ कल होना है !
...
तू नहीं, तेरे एहसास ही सही
मेरे जज्बातों में बसर है तेरा !
...
गिले, शिकबे, समस्याएं, आलोचनाएं, समालोचनाएं
सच ! बहस होते रही, होते रहेगी, चलो छोडो, आगे बढ़ें !
...
जिन्दगी, हर्ष, संघर्ष, गर्व, गरीबी, अमीरी, सुख, दुख
टुकड़ों टुकड़ों, हिस्सों हिस्सों में, है जिन्दगी का बसेरा !
...
हर रोज, मुझे तुम, वैसी ही लगती हो, जैसे रोज लगती हो
पर कभी वैसी नहीं लगतीं, सच ! जैसे पहली बार लगी थीं !
...
लेखन किसी जादूगरी से, कहीं कुछ कम नहीं है 'उदय'
सच ! फर्क इतना ही है, उतने तमाशबीन नहीं मिलते !!
Thursday, March 10, 2011
हर घड़ी छुक-छुक, धुक-पुक, सी चलती है जिन्दगी !!
दो दिलों के जज्बात, चलते, बढ़ते, मिलते रहे
आज जब हम रु-ब-रु हुए, जज्बात खिल पड़े !
...
धूल, कूडा, करकट, कंकड़, अंधड़, आए, गए
उफ़ ! ये महज अफवाह थी, ग्रीष्म आने की !
...
नौंक-झौंक, छीना-झपटी, खींचा-खांची, पटका-पटकी
सब से मिलकर बने है, हमें तो सतरंगी लगे है दोस्ती !
...
कहें तो क्या कहें, कब तक हम गुमसुम रहें
तुम अब चुप न रहो, सच ! कह दो प्यार है !
...
आज तो हम ठान के, आये थे मैकदा
लुट जायेंगे, या लूट लेंगे, साकी तुझे !
...
न जाने कब तक, मैं तुम्हें यूं ही देखता रहूँ
क्यों, किसलिए, देखते देखते सोचता रहूँ !
...
अब क्या हम, और क्या हमारी चाहतें
झौंका हवा के हैं, आज यहाँ, कल वहां !
...
खामोशी तेरी हम महसूस करते रहे, जन्नत सी रही
लव खोले जो तूने, होश उड़ गए, क़यामत आ गई !
...
तुम्हारे साथ होने से, मैं एक दिन खोज लूंगा, सारा जहां
हर बार, बार बार, तुम मेरे संग चलते चलो, बढ़ते चलो !
...
जिन्दगी के इम्तिहान, क्या गजब इम्तिहान हैं
हर घड़ी छुक-छुक, धुक-पुक, सी चलती है जिन्दगी !!
आज जब हम रु-ब-रु हुए, जज्बात खिल पड़े !
...
धूल, कूडा, करकट, कंकड़, अंधड़, आए, गए
उफ़ ! ये महज अफवाह थी, ग्रीष्म आने की !
...
नौंक-झौंक, छीना-झपटी, खींचा-खांची, पटका-पटकी
सब से मिलकर बने है, हमें तो सतरंगी लगे है दोस्ती !
...
कहें तो क्या कहें, कब तक हम गुमसुम रहें
तुम अब चुप न रहो, सच ! कह दो प्यार है !
...
आज तो हम ठान के, आये थे मैकदा
लुट जायेंगे, या लूट लेंगे, साकी तुझे !
...
न जाने कब तक, मैं तुम्हें यूं ही देखता रहूँ
क्यों, किसलिए, देखते देखते सोचता रहूँ !
...
अब क्या हम, और क्या हमारी चाहतें
झौंका हवा के हैं, आज यहाँ, कल वहां !
...
खामोशी तेरी हम महसूस करते रहे, जन्नत सी रही
लव खोले जो तूने, होश उड़ गए, क़यामत आ गई !
...
तुम्हारे साथ होने से, मैं एक दिन खोज लूंगा, सारा जहां
हर बार, बार बार, तुम मेरे संग चलते चलो, बढ़ते चलो !
...
जिन्दगी के इम्तिहान, क्या गजब इम्तिहान हैं
हर घड़ी छुक-छुक, धुक-पुक, सी चलती है जिन्दगी !!
Wednesday, March 9, 2011
बाबा रामदेव, बाबागिरी धरी रह जायेगी ..... !!
जब तुमने छाप ही दिया है, चेहरा मेरे महबूब का
अब क्या कहें, सच ! मेरे महबूब सा कोई दूजा नहीं है !
...
सच ! हमको खबर नहीं थी, उसे चाहते हो तुम
धोखे से लड़ गई थी नजर, अब रोक लेंगे हम !
...
पता नहीं क्यूं, अब खुद पे एतबार नहीं होता
जब से सुना, ये दुनिया मौकापरस्तों की है !
...
खुदा का शुक्र मानो, हमसा दूजा नहीं कोई
नहीं तो, रो रो कर, कब के मर चुके होते !
...
मेरा बजूद पूंछ कर, अब इम्तिहां न लो
सच ! मैं कुछ भी नहीं हूँ, एक सिवाय तिरे !
...
कोई कुछ भी कहे, या ना भी कहे, कोई बात नहीं
हम तो चाहेंगे तुम्हें, जब तक हैं जवां जज्बात मिरे !
...
सच ! तुम अपनी खुबसूरती पे, गुमान मत रखना
वो तो मेरी आँखें हैं, जो तुम्हें खूबसूरत बना रही हैं !
...
चलो अच्छा हुआ, खुजाने-खुजवाने का शौक नहीं पाला
जमीं पे ही रगड़-घिस कर, कदम-दर-कदम बढ़ते रहे !
...
तुम्हारी खामोशी, बेवजह नहीं होगी
सच ! कहीं कुछ बात तो जरुर होगी !
...
बाबा रामदेव, बाबागिरी धरी रह जायेगी
गर भ्रष्ट लोगों के ज़रा भी हिमायती होगे !!
अब क्या कहें, सच ! मेरे महबूब सा कोई दूजा नहीं है !
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सच ! हमको खबर नहीं थी, उसे चाहते हो तुम
धोखे से लड़ गई थी नजर, अब रोक लेंगे हम !
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पता नहीं क्यूं, अब खुद पे एतबार नहीं होता
जब से सुना, ये दुनिया मौकापरस्तों की है !
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खुदा का शुक्र मानो, हमसा दूजा नहीं कोई
नहीं तो, रो रो कर, कब के मर चुके होते !
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मेरा बजूद पूंछ कर, अब इम्तिहां न लो
सच ! मैं कुछ भी नहीं हूँ, एक सिवाय तिरे !
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कोई कुछ भी कहे, या ना भी कहे, कोई बात नहीं
हम तो चाहेंगे तुम्हें, जब तक हैं जवां जज्बात मिरे !
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सच ! तुम अपनी खुबसूरती पे, गुमान मत रखना
वो तो मेरी आँखें हैं, जो तुम्हें खूबसूरत बना रही हैं !
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चलो अच्छा हुआ, खुजाने-खुजवाने का शौक नहीं पाला
जमीं पे ही रगड़-घिस कर, कदम-दर-कदम बढ़ते रहे !
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तुम्हारी खामोशी, बेवजह नहीं होगी
सच ! कहीं कुछ बात तो जरुर होगी !
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बाबा रामदेव, बाबागिरी धरी रह जायेगी
गर भ्रष्ट लोगों के ज़रा भी हिमायती होगे !!
बस समझ लो, तुम हमें अच्छे नहीं लगते !!
सिर्फ सुर्ख गुलाब सी, खुबसूरती नहीं है तुम में
सच ! कहीं ज्यादा, गुलाब की महक है तुम में !
...
सिर्फ ये अकेला बेशर्मी के आयाम नहीं गढ़ रहा
इसके हमसफ़र भी खूब मस्त-मौला हो रहे हैं !
...
भ्रष्टाचार के लिए, कोई किसी एक को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकता
गठबंधन, पक्ष, विपक्ष, और बिन पैंदी के सारे लोग जिम्मेदार हैं !
...
नेता-अफसर, लेखक-प्रकाशक, एक-दूसरे की खुजाने में मस्त हैं
उफ़ ! इनके चक्कर में जनता अपना सिर खुजा रही है !
...
सर सर, फुर फुर, हिलते डुलते,
पत्ते पत्ते, हरे हरे, हरे पत्ते, पत्ते हरे !
...
जिस इमारत के शिखर पे, है बैठ तू इतरा रहा
है नहीं तुझको खबर, कि मैं तेरी बुनियाद हूँ !
...
सच ! हम चाहते भी नहीं, सहेजना चाहत को
खुली फिजाओं में उड़ने दो, अब चाहत हमारी !
...
सच ! मुर्दों के शहर में, भूतों की हुकूमत है
न जीने की चिंता है, न मरने ठिकाना है !!
...
क्यूं निहार रहा हूँ मैं तुम्हें, मुझे भी पता नहीं
शायद कुछ हो वास्ता, तुमसे आँखों का मेरी !
...
क्या करोगे जानकर, तुम वजह रुसवाई की
बस समझ लो, तुम हमें अच्छे नहीं लगते !!
सच ! कहीं ज्यादा, गुलाब की महक है तुम में !
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सिर्फ ये अकेला बेशर्मी के आयाम नहीं गढ़ रहा
इसके हमसफ़र भी खूब मस्त-मौला हो रहे हैं !
...
भ्रष्टाचार के लिए, कोई किसी एक को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकता
गठबंधन, पक्ष, विपक्ष, और बिन पैंदी के सारे लोग जिम्मेदार हैं !
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नेता-अफसर, लेखक-प्रकाशक, एक-दूसरे की खुजाने में मस्त हैं
उफ़ ! इनके चक्कर में जनता अपना सिर खुजा रही है !
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सर सर, फुर फुर, हिलते डुलते,
पत्ते पत्ते, हरे हरे, हरे पत्ते, पत्ते हरे !
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जिस इमारत के शिखर पे, है बैठ तू इतरा रहा
है नहीं तुझको खबर, कि मैं तेरी बुनियाद हूँ !
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सच ! हम चाहते भी नहीं, सहेजना चाहत को
खुली फिजाओं में उड़ने दो, अब चाहत हमारी !
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सच ! मुर्दों के शहर में, भूतों की हुकूमत है
न जीने की चिंता है, न मरने ठिकाना है !!
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क्यूं निहार रहा हूँ मैं तुम्हें, मुझे भी पता नहीं
शायद कुछ हो वास्ता, तुमसे आँखों का मेरी !
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क्या करोगे जानकर, तुम वजह रुसवाई की
बस समझ लो, तुम हमें अच्छे नहीं लगते !!
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