गुमां है खुद पे, या यकीं है
कि तू 'शेर' है, बेखौफ़ फ़िरता है।
.......................................
"चलो अच्छा हुआ, जो तुम मेरे दर पे नहीं आए / तुम झुकते नहीं, और मैं चौखटें ऊंची कर नही पाता !"
अपुन का ब्लाग बन गएला है "आखिरी सुपाडी" ... तो अपुन शुरु करता है पोस्ट "पहली सुपाडी" से ... ये उन दिनों की बात है जब अपुन की उमर सत्रह साल आठ माह की रही होगी ... अपुन ने बडे मियां की फ़िल्म "दीवार" फ़र्स्ट डे फ़र्स्ट शो देखेला था उसीच दिन अपुन बडे मियां का बहुत बडा फ़ैन हो गएला था ...
... शाम को राशन की दुकान वाला बनिया उधारी पैसों को लेकर ... मां को अनाप-शनाप बक रेला था ये अपुन से बरदास्त नहीं हुआ अपुन वहींच्च भिड गया था उससे ... वो तो मां अपुन को पकड कर घर ले आई थी नहीं तो ... बनिया हर किसी के साथ अंड-संड बोला करता था ... अपुन को पता था पडोस के दूसरे बनिये के साथ उसका झगडा चल रहेला था ... अपुन का खून खौल रहेला था कि उसने मां को बहुत बुरा सुनाया है ...
... अपुन सीधा दूसरे बनिये के पास गया और बोला ... क्यों सेठ तेरा सामने वाले बनिया से खुन्नस चल रहेला है ... बोल तो आज उसको टपका देता हूं ... बोल क्या देगा ... जो मांगेगा दे दूंगा १०० रुपये ... टपका डाल साले को बहुत अकडता है साला ... चल ठीक है तेरा काम हो जायेगा ... निकाल १०० रुपए का नोट तेरा काम कर देता हूं ... सेठ ने खट से १०० का नोट निकाल कर दे दिया ... हां सेठ एक काम और करना अपुन तेरा काम कर के गांव छोडकर भाग जायेगा ... मेरी मां को कभी भी कोई जरुरत पडे तो उसकी मदद करते रहना ... नहीं तो आकर ... नहीं नहीं तू जा उसकी चिंता छोड मैं देख लूंगा ...
.... अपुन सीधा बनिये की दुकान के बाहर दुकान बंद होने का इंतजार करने लगा ... जैसे ही बनिया दुकान बंद कर घर जाने लगा अपुन उसके पीछे हो लिया जैसे ही वह सुनसान गली में पहुंचा ... अपुन ने लपक के साले का टेटुआ दबा दिया ... जब वो निपट गया तो अपुन सीधा स्टेशन पहुंच कर मुम्बई-हावडा मेल में सवार हो गया ... ट्रेन चलते जा रही थी और अपुन को मां की याद सताते जा रही थी ... अपुन कहां जा रहा था नईच्च पता था ... धीरे धीरे पछतावा होने लगा ... अपुन को उसे टपकाना नहीं था यहिच्च सोच सोच कर सारी रात आंख नहीं लगी ...
... सुबह होते होते अपुन को रोना जैसा आने लगा ... गांव वापस लौटना भी मुश्किल था, मां की याद भी सताते रही ... अपुन ने कसम खाया कि ... किसी को मारने का सुपाडी नहीं लेगा ... चाहे दीवार फ़िल्म की तरह जूता पालिश ही क्यों न करना पडे ... अपुन ने कान पकड के कसम खाया ये अपुन की पहली और "आखिरी सुपाडी" है ... मुम्बई पहुंच के कुछ काम कर लेगा पर किसी को मारने की सुपाडी कतई नहीं लेगा ... याद है अपुन को आज भी वो १०० का नोट ... जिसे चलती ट्रेन के दरवाजे पे खडा होकर अपुन ने आंख मूंद कर हाथ में लेकर उडा दिया था .... !!!
अपुन का ब्लाग बन गएला है "आखिरी सुपाडी" ... तो अपुन शुरु करता है पोस्ट "पहली सुपाडी" से ... ये उन दिनों की बात है जब अपुन की उमर सत्रह साल आठ माह की रही होगी ... अपुन ने बडे मियां की फ़िल्म "दीवार" फ़र्स्ट डे फ़र्स्ट शो देखेला था उसीच दिन अपुन बडे मियां का बहुत बडा फ़ैन हो गएला था ...
... शाम को राशन की दुकान वाला बनिया उधारी पैसों को लेकर ... मां को अनाप-शनाप बक रेला था ये अपुन से बरदास्त नहीं हुआ अपुन वहींच्च भिड गया था उससे ... वो तो मां अपुन को पकड कर घर ले आई थी नहीं तो ... बनिया हर किसी के साथ अंड-संड बोला करता था ... अपुन को पता था पडोस के दूसरे बनिये के साथ उसका झगडा चल रहेला था ... अपुन का खून खौल रहेला था कि उसने मां को बहुत बुरा सुनाया है ...
... अपुन सीधा दूसरे बनिये के पास गया और बोला ... क्यों सेठ तेरा सामने वाले बनिया से खुन्नस चल रहेला है ... बोल तो आज उसको टपका देता हूं ... बोल क्या देगा ... जो मांगेगा दे दूंगा १०० रुपये ... टपका डाल साले को बहुत अकडता है साला ... चल ठीक है तेरा काम हो जायेगा ... निकाल १०० रुपए का नोट तेरा काम कर देता हूं ... सेठ ने खट से १०० का नोट निकाल कर दे दिया ... हां सेठ एक काम और करना अपुन तेरा काम कर के गांव छोडकर भाग जायेगा ... मेरी मां को कभी भी कोई जरुरत पडे तो उसकी मदद करते रहना ... नहीं तो आकर ... नहीं नहीं तू जा उसकी चिंता छोड मैं देख लूंगा ...
.... अपुन सीधा बनिये की दुकान के बाहर दुकान बंद होने का इंतजार करने लगा ... जैसे ही बनिया दुकान बंद कर घर जाने लगा अपुन उसके पीछे हो लिया जैसे ही वह सुनसान गली में पहुंचा ... अपुन ने लपक के साले का टेटुआ दबा दिया ... जब वो निपट गया तो अपुन सीधा स्टेशन पहुंच कर मुम्बई-हावडा मेल में सवार हो गया ... ट्रेन चलते जा रही थी और अपुन को मां की याद सताते जा रही थी ... अपुन कहां जा रहा था नईच्च पता था ... धीरे धीरे पछतावा होने लगा ... अपुन को उसे टपकाना नहीं था यहिच्च सोच सोच कर सारी रात आंख नहीं लगी ...
... सुबह होते होते अपुन को रोना जैसा आने लगा ... गांव वापस लौटना भी मुश्किल था, मां की याद भी सताते रही ... अपुन ने कसम खाया कि ... किसी को मारने का सुपाडी नहीं लेगा ... चाहे दीवार फ़िल्म की तरह जूता पालिश ही क्यों न करना पडे ... अपुन ने कान पकड के कसम खाया ये अपुन की पहली और "आखिरी सुपाडी" है ... मुम्बई पहुंच के कुछ काम कर लेगा पर किसी को मारने की सुपाडी कतई नहीं लेगा ... याद है अपुन को आज भी वो १०० का नोट ... जिसे चलती ट्रेन के दरवाजे पे खडा होकर अपुन ने आंख मूंद कर हाथ में लेकर उडा दिया था .... !!!
.........................................................................