"बोधि प्रकाशन" से प्रकाशित स्त्री विषयक काव्य संग्रह - "स्त्री होकर सवाल करती हो ...!" आज प्राप्त हुई, बेहद खुशी हुई ... सर्वप्रथम इस पुस्तक से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े सभी हमकदम मित्रों को बधाई व शुभकामनाएं ... सांथ-ही-सांथ इस ऐतिहासिक "काव्य संग्रह - स्त्री होकर सवाल करती हो ...!" की सफलता के लिए अमिट, असीमित, अनंत शुभकामनाएं ...
मित्रों, इस संग्रह में देश के जाने-मानें १२७ रचनाकारों के सांथ मेरी भी रचनाएँ हैं ... आप निसंकोच इस ऐतिहासिक काव्य संग्रह को अवश्य पढ़ें ...
इसी संग्रह से कुछ पंक्तियाँ - ०१ - " ... स्त्री बोली - ना ( वह बोला - नखरे दिखाती है साली ... ) स्त्री बोली - हाँ ( वह बोला - चालू है यार ... ) ... " ०२ - " ... कभी तू डूब जाता है मुझमें कभी कहता है मुझे डूब जाने को फर्क क्या है, तेरे, या मेरे डूब जाने में ... " ०३ - " ... एक देह है जो बिछी है घर के दरवाजे से लेकर रसोई, बैठक और बिस्तर तक न घिसती है न चढ़ता है मैल इस पर ... "
ब्रेक के बाद ... फिर कभी, कुछ नई पंक्तियों के सांथ ... !! ... "स्त्री होकर सवाल करती है....!"/फेसबुक पर मौजूद 127 रचनाकारों की स्त्री विषयक कविताओं का संग्रह/संपादक डॉ लक्ष्मी शर्मा/पेपरबैक/संस्करण जनवरी 2012/पृष्ठ 384/मूल्य 100 रुपये मात्र (डाक से मंगाने पर पैकेजिंग एवं रजिस्टर्ड बुकपोस्ट के 50 रुपये अतिरिक्त)/बोधि प्रकाशन, एफ 77, करतारपुरा इंडस्ट्रियल एरिया, बाईस गोदाम, जयपुर 302006 राजस्थान। संपर्क दूरभाष : 099503 30101, 08290034632 (अशोक)
“लेखन एक कला है ... शब्दों व भावों की रचना, लेख, कहानी, कविता, गजल, हास्य-व्यंग्य, शेर-शायरी, ये सभी समय समय पर की जाने वाली नवीन अभिव्यक्तियाँ होती हैं, अभिव्यक्तियों के भाव-विचार सकारात्मक अथवा नकारात्मक हो सकते हैं, अत: इन अभिव्यक्तियों के आधार पर लेखक की मन: स्थिति का आँकलन करना निरर्थक है !”