Thursday, February 28, 2013

मंसा ...


मेरे ही अन्दर ... तुम्हें ...
हर घड़ी ... 
मिल जायेंगे ...
आग ... 
पानी ...
हवा ... 
शीतलता ... 
धरा ... आसमाँ ...
धूप ... छाँव ... 
घर ... आँगन ... 
बस, तुम ... 
उस मंसा से ...
छूना,... टटोलना मुझे ??

Tuesday, February 26, 2013

छुक-छुक ...


बाज आ जाओ मियाँ,........लफ्फाजियों से 
गर इस बार टूटा दिल, तो बिखर जाओगे ? 
...
सच ! अब इसमें कुसूर उनका, तनिक भी नहीं है 'उदय' 
हम ही नादाँ थे, जो बात उनके दिल की भाँप नहीं पाए ? 
... 
"वाई-फाई" की क्या जरुरत है, और किसे जरुरत है मियाँ
कहीं ऐंसा न हो, यह सिर्फ आतंकी मंसूबों को अंजाम दे ? 
... 
ईमानदारी की, सारी किताबें कल रद्दी में बेच दी हमने 
उफ़ ! सालों-साल में भी, इक पन्ना काम नहीं आया ? 
... 
छुक-छुक ... छुक-छुक ... छुक-छुक थी 
छुक-छुक ... छुक-छुक ... छुक-छुक है ? 

Monday, February 25, 2013

टेड़े-मेडे ...


शराफतों औ वफाओं की 'उदय', अब क़द्र नहीं है वहाँ 
जहाँ, झूठ औ फरेब के, हर घड़ी जलसे लगते हों ??
...
लुटते तो हम ही हैं अक्सर, उनके आगोश में जाकर 
पर, इल्जाम तो देखो,...वो हमको लुटेरा कह रहे हैं ? 
... 
उन तक पहुँचने के, रास्ते बहुत आसाँ थे 'उदय' 
शायद, पाँव हमारे............ही टेड़े-मेडे निकले ?
... 
कल, रिश्ता टूटते ही, सदियों पुराना हो गया था 
आओ लग के गले, फिर से नया कर लें सनम ? 

Sunday, February 24, 2013

बेचैनी ...


आओ, हम अपने किनारों को, एक कर लें 
अब अलग-अलग हमसे चला नहीं जाता ? 
... 
छोड़ दो, लताड़ दो, धुतकार दो, उन दहशतगर्दों को 
जो बम फोड़ कर,.......कौम को बदनाम करते हैं ? 
... 
वैसे तो, वे एक-दूसरे की पीठ खूब थप-थपा रहे हैं 
मगर अफसोस,..................सुर है न ताल है ? 
... 
मिलने को तो, वो जब भी मिलते हैं 'छाती' तान के मिलते हैं 
मगर अफसोस, कभी.......... उनकी मंसा जाहिर नहीं होती ? 
... 
लो, वो आज फिर, कुछ.........कहे-सुने बिन चले गए 
सच ! उनकी बेचैनी, अब हमसे और देखी नहीं जाती ?

Saturday, February 23, 2013

कोहिनूर ...


उन्नें,....बम फोड़े, धमाके किये, जानें ले लीं 
............................. अब अपनी बारी है ? 
... 
सुनते हैं, आसमाँ में, कहीं ...घर है 'खुदा' का 
किसी दिन, देखने, हमें..........उड़ना पडेगा ? 
... 
कोई समझाये उन्हें, 'कोहिनूर' की बातें तो बाद में हो जायेंगी 
पहले, हिन्दुस्तान को ........... ''हिन्दुस्तान' नाम तो दे दो ? 
... 
अगर उन्हें, भाई-भतीजों से फुर्सत होती 'उदय' 
तो शायद, हम मान भी लेते, कि वे पारखी हैं ? 
... 
ओखर मन के डफली हे गा, अऊ.......ओखर मन के राग हे 
काबर कर ही सुरता ओला, जेखर से मुडी फूटे के आभास हे ?

Thursday, February 21, 2013

फेसबुक बाबा ...


वे ... कूद पड़ते हैं ... 
झूम उठते हैं ... लपक पड़ते हैं ! 

जब भी देखते हैं ...
किसी, ... महिला मित्र की पोस्ट ... 
फेसबुक पर !

फिर ... भले चाहे ... 
पोस्ट ... 
बे-सिर-पैर की ही क्यों न हो !

उन्हें तो ... बस ... 
लाईक औ कमेन्ट की, होती है जल्दी !

जल्दी ... हो भी क्यों न .. 
डर होता है ... उन्हें ... 
पिछड़ जाने का ... बिछड़ जाने का !

इसलिए - 
घूमते रहते हैं ... मंडराते फिरते हैं ... 
रात-दिन ... 
हाजिरी ... देने की फिराक में !

न सिर्फ बूढ़े-खूसट, लौंडे-लपाड़े ... 
वरन ... अच्छे-खासे सम्पादक-प्रकाशक भी ...
जय हो ... फेसबुक बाबा ... जय हो ??

Tuesday, February 19, 2013

सरकार ...


उनसे मिलने की, हमें कोई मुकम्मल वजह नहीं दिखती 
फिर भी, न जाने क्यूँ, पग हमारे उनकी ओर बढ़ रहे हैं ? 
... 
हमें तो वे, घुटने से ऊपर, कभी दिखे नहीं हैं 
शायद होंगे, ....................... सरकार हैं ?
... 
तुम इसी तरह, हम पे झूठे इल्जाम लगाते रहो 
गर कोई हमें, भूलना भी चाहे तो भूल न सके ? 

मर्जी के मालिक ...


उनकी खुबसूरती पे, अब हम क्या बेबाक टिप्पणी दें 
जब हमने कभी, .......... गौर से देखा नहीं उनको ?
... 
कुछ घड़ी को, रौशनी हुई थी आँगन में 
कोई है, जो छत पे आकर चला गया ? 
... 
ऐंसा सुनते हैं 'उदय', कि वे मर्जी के मालिक हैं 
वजह,...कुछ ख़ास नहीं, ........ सम्पादक हैं ? 
... 

Monday, February 18, 2013

जय-जयकार ...


सुना है, उनकी पवित्रता......है गंगा-सी पवित्र 
जी चाहे है, ............... एक डुबकी लगा लूँ ? 
... 
खुद की राख, औ खुद का कमंडल, और खुद ही खुद की जय-जयकार 
बस यही आलम है 'उदय', आज के साहित्यिक नागा साधुओं का ??
... 
जिसे हम ख़त समझ रहे थे, वो वारन्ट निकला 
खूब लिया है उन्ने,..... वेलेन्टाइन-डे का बदला ?

Saturday, February 16, 2013

डर ...


भोली सूरतों को, समझने में, धोखा हो जाता है अक्सर 
वर्ना, बार-बार,......हम इस तरह,.......छले नहीं जाते ?
... 
उनकी खुबसूरती अल्टीमेट है 
बस, वे मैग्नेटिक न हों, इत्ता-सा डर है ? 
... 
उनकी पारखी नज़रों को सलाम 
कोई तो है, जिसे हम भीड़ में तनहा नजर आये ? 
... 
सच ! वो इतना धड़के हैं, कि बेधड़क हो गए हैं 
अब, किसी से भी, धड़ा-धड़......मिल लेते हैं ? 

चापलूसी ...


हम उनके ख्यालों में तो हैं, 
पर,  
उनकी किताबों में नहीं हैं,

अब इसमें, 
दोष उनका भी नहीं है,

दरअसल, 
हम, 
उनकी चापलूसी में नहीं हैं ? 

Friday, February 15, 2013

संशय ...


चिट्ठी पंहुचते-पंहुचते, कहीं........देर न हो जाए 
आओ, एसएमएस से, हाल-ए-दिल बयाँ कर दें ? 
... 
कहीं, साहित्यिक उठाईगीर, यूनियन न बना लें 
और उल्टा ही,.........क्लैम ठोक दें तुम पर ?? 
... 
दास्तान-ए-मुहब्बत का ये आखरी पैगाम समझो 
अब,...मिलेंगे दूर कहीं, किसी और दुनिया में ??
... 
घोटालों की रकमों से, वो इतनी ऊँची कुर्सी पे जा बैठे हैं 
कि - क़ानूनी सिपाहियों के हाँथ-औ-नजरें संशय में हैं ? 
... 
मेरे इजहार-ए-मुहब्बत पे, वो खट से बोले 
पेंडिग रिक्वेस्ट बहुत हैं, बाद में देखते हैं ? 

Thursday, February 14, 2013

बासंती हवा ...


सिर्फ ... न इधर, न उधर ...
फिर किधर ? 
चहूँ ओर ... 
धरा, आसमां, लोक, परलोक ... 
सब जगह ... 
क्यों ? ... कैसे ?? 
बस,... हवा हूँ ... बासंती हवा !!

वेलेन्टाइन-डे ...


रश्में ...

तुम कहो तो .... आओ ... 
वेलेन्टाइन-डे की ... रश्में निभा लें 
कहीं ऐंसा न हो, शाम होते-होते, 
तुम कोई ... 
नया इल्जाम ... 
हमपे ............... मढ़ दो सनम ? 
... 
... 
वेलेन्टाइन-डे ... 

उनके हाँथों में ... 
लाल, पीले, सफ़ेद, गुलाबी ...
रंग-बिरंगे ...
ढेरों ....... गुलाब देख के 
जी मेरा घबरा गया !
बस, ... यूँ समझ लो 
उसी क्षण ... 
वेलेन्टाइन-डे ... मनाने का 
सिर पे चढ़ा भूत ...
अपने आप ...... उतर गया ? 

Wednesday, February 13, 2013

मिस कॉल ...


छिप-छिप के ही मत मुस्कुराया करो 
कभी,....... नजर भी हो जाया करो ?
... 
रेवड़ी भी, कभी इस रफ़्तार से नहीं बंटती हैं 'उदय' 
जिस रफ़्तार से, अपने मुल्क में हो रहे घोटाले हैं ? 
... 
लो, वो इत्ती-सी बात पे,...... कल से नाराज हैं 'उदय' 
"किस-डे" निकल गया, क्यों "किस" दी नहीं हमको ? 
... 
उफ़ ! ये जनतंत्र है, या चौसर की बिसात है 'उदय' 
जहां, कदम-कदम पे घोटालेबाजों की पौ-बारह है ? 
... 
सुनो, तुम अपनी मुहब्बत की अर्जी वापस ले लो 
मम्मी कहती हैं, अभी मेरे दूध के दांत टूटे नहीं हैं 
... 
उन्ने, सुबह-सुबह ही मिस कॉल से दस्तक दी है 
अब आज के,.....सारे प्रोग्राम पोस्टपोन समझो ? 

Tuesday, February 12, 2013

खुबसूरती ...


ज्यों ही हमने, उनसे....बिछड़ने का ढोंग रचा 
उनके दिल में छिपी चाहत, नजर आने लगे ?
... 
बच्चा-बच्चा वाकिफ है, उनके दलाली के हुनर से 
अब 'खुदा' ही जाने, फिर...मचा क्यूँ बबाल है ??
... 
छोड़ो, ... जाने दो, ... हम जी लेंगे 'उदय' 
प्यार की भी, ........इक मियाद होती है ? 
... 
आज, फेसबुक पे, उनकी खुबसूरती के खूब चर्चे हैं 
वजह ?...........तस्वीर, वर्षों पुरानी ठोक दी है ??

Monday, February 11, 2013

ट्वीटर कहानियाँ - 01


01
"महोदय, लिखते तो आप भी हैं..पर मेले में आपकी..कहीं कोई किताब नहीं दिखी ?...हाँ, बस यूँ समझ लो..अभी अपना किसी के संग..सौदा नहीं बैठा !!"
... 
02
"बाबू साहब, डेढ़ घंटे का ही तो सफ़र है कुछ ले-दे के..अच्छा, तो निकालो दो सौ रुपये..सॉरी सर..(सौ का नोट देते हुए) टिकिट ही बना दें..प्लीज !"
...
03
"राज, तुमने मुहब्बत इजहार करने में थोड़ी देर कर दी ... कल रात ही ... मैं किसी और की हो गई हूँ ... प्लीज ... सॉरी !!"
... 
04
"सुनो साहब जी,.. बहुत हुई, बहुत कर ली ... बंधुआ मजदूरी ... अब तो, आज से ... खुद के खेत को जोतेंगे ... गेंहू-चना उगाएंगे ... जै राम जी की !"

Sunday, February 10, 2013

तमाशे ...


आज हमने, उनपे, इश्क का दावा ठोक दिया है 
आखिर हमने,.... हर रोज किश्तें जो भरी थीं ?
... 
अबे ढक्कन,.... कस के रहा कर 
साकी-औ-सबाब बैठे हैं अन्दर ?
... 
क्या खूब तमाशे चल रहे हैं, आज अपने मुल्क में 'उदय' 
चॉकलेट से महंगे रैपर, औ अनाज से महंगे बोरे हुए हैं ? 
... 
आहट सुन के भी 'उदय', वे आँगन तक नहीं आये 
उफ़ ! उनकी नाराजगी की.........कोई हद तो देखे ?

Saturday, February 9, 2013

घमंड ...


साहब जी ...

साहब जी,... न तो आप मेले में दिखते हैं 
और न ही, ... किसी झमेले में !
आखिर आप होते कहाँ हैं ? 
बस, .......................यूँ समझ लो ... 
होते सब जगह हैं ...
पर...................दिखते कहीं नहीं हैं ??
... 
घमंड ...

एक मूर्ख ने दूसरे मूर्ख से कहा - 
'बाबाजी' नाराज हैं तो रहने दो ... 
हमारा क्या उखाड़ लेंगे !
ठीक तभी ... 
वहां पड़े ... ढेरों अधमरे ...
अचानक उठ खड़े हुए ... 
और बोले - 
ठीक यही घमंड हमें भी था ???

Thursday, February 7, 2013

लोकार्पण ...


अब तुम, हमसे ही हमारा पता मत पूंछो 
हम,..................... अभी खोये हुए हैं ?
... 
तुम कहते हो, तो उन्हें हम आज माफ़ कर देते हैं 
पर, दिल हमारा..शायद उन्हें कभी माफ़ न करे ? 
... 
रोज-रोज की आस है, रोज-रोज की प्यास 
अब तुम, यहीं-कहीं..पड़े रहने दो हमको ? 
... 
जाओ, अब हम किसी पुस्तक का लोकार्पण नहीं करेंगे 
लगता है उन्हें, हमें फोटो खिंचाने में मजा आता है ??
... 
न तो किस्सों में कुछ धरा है, और न ही कहानियों में 
गर कहीं कुछ है, तो बस.........अभिव्यक्तियों में है ?

Wednesday, February 6, 2013

शर्त ...


कहीं कुछ होता तो कब का छलक गया होता 
वैसे, सबाब-ए-हुस्न छिपाए छिपता कहाँ है ? 
... 
उन्हें, न भूलने का वादा तोड़ रहा हूँ 'उदय' 
क्यों ? ... अब,... बस,... खुदा हाफिज !!
... 
पग हमारे, कभी पगडंडी से बाहर नहीं जाते 
औ घर उनका 'उदय', एक्सप्रेस हाईवे पे है ? 
... 
लिखने को तो 'उदय', वो तीन-सौ पेज में वही बात लिखते हैं 
जिसे हम, दो-चार लाइनों में...... निचोड़ के समेट देते हैं ??
... 
खुद लिखूँ, ............ या तुझे पढूँ 
बता, मुहब्बत में क्या शर्त है तेरी ? 
... 
देखने-देखने का, हर एक का अपना-अपना नजरिया है 
वही कविता, वही दोहा, तो वही.... कहीं शेर है 'उदय' ? 

Tuesday, February 5, 2013

गठजोड़ ...


वजह कुछ भी नहीं थी, .................. बेवफाई की 
समय की मार तो देखो, हम उनसे मिल नहीं पाए ? 
... 
बड़ी सफाई से, उन्ने अपना इल्जाम हमपे मढ़ दिया है 
फिर भी, न जाने क्यूँ... वे छिपते-छिपाते फिर रहे हैं ?
... 
हिट होने के,... फार्मूले तो बहुत हैं 'उदय' 
बस, उन्हें आजमाने का जी नहीं करता ?
... 
अपनी तो बस 'उदय',......... दिल्ली वालों से होड़ है 
क्योंकि, कदम-कदम पे उनका आपस में गठजोड़ है ?
... 
जब उन्हें परवाह नहीं है, तो हमें शिकवा नहीं है 
होने दो, मुहब्बत में... हमें बदनाम अब यारा ?
... 
हम तो,...... जन्मजात...... इंकलाबी हैं 'उदय' 
किन्तु, जिंदाबाद-जिंदाबाद हमारा नारा नहीं है ?

कमाऊ-धमाऊ ...


भाई साहब, ... सुन्दर ... गोरी ... सुशील ... 
इंग्लिश पढ़ी-लिखी ... 
सुन्दर नाक-नक्श ...
पांच फिट पांच-छ: इंच ऊँची ...
गृहकार्य में दक्ष ... 
मिलनसार ... एक कन्या की तलाश है !

भाई साहब... दुल्हन ढूंढ रहे हो "या कुछ और" ?
व्हाट यू मीन ... !!

आई मीन ... इतने सारे गुण ... !
मिल तो जायेंगे ... किन्तु ... एक को छोड़कर !!

मतलब ? 

गृहकार्य में दक्ष ... को छोड़ दें ... तो ... 
अन्य गुणों वाली ... बहुत सारी मिल जायेंगी !!

अच्छा ... और ... आई मीन ...
"कुछ और" से .... क्या मतलब है आपका ?

"कुछ और" ........ बोले तो ... 
जिसका ... एक पैर ... घर के अन्दर ... 
और दूसरा ... हर घड़ी ... बाहर रहे ... 
आई मीन .................... "कमाऊ-धमाऊ" ??

Monday, February 4, 2013

इमोशनल लव स्टोरी ...


बस, ..... तुम ..... 
खामोश बने रहो, ... बने रहना 

कॉमा, ... इन्वर्टेड कॉमा ... 
लगाते-लगाते ... 

समय-समय पर ... 
मैं ... पैराग्राफ ... बदलते हुए ...

अंत में ... 
क्लाईमेक्स के बाद ...
फुलस्टाफ ... लगा दूँगा !

तब तुम ... समझ जाना ...
कि - 
आज की कहानी... पूर्ण हो गई !!

Friday, February 1, 2013

आबरू ...


आग...

जिस्म की आग... जिस्म के भीतर 
जलने दो, ... सुलगने दो ... 
शीत ... बहुत है बाहर 
किसी न किसी के काम आयेगी ??
... 
ईमान ...

सल्तनतें ... मिट गईं, 
बादशाहतें टूट गईं 
गर कुछ ... 
बचा है, ... बचा रहा ...
तो बस, 
ईमान की खुशबू ... 
आज तक ...
अब तक ...
अमर है फिजाओं में ? 
...
... 
...
जी चाहता है 'उदय', उसे... तनिक पकड़ के हिला दूँ 
साला ........ बैठ झूठ की बुनियाद पे इतरा रहा है ?
... 
आओ, चलें, बदल दें... हम पैमाने उम्र के 
अब, पंद्रह में पैंतीस के काम मुमकिन हैं ?
... 
ऐंसा सुनते हैं 'उदय', कि - वो एक आला दर्जे के पत्रकार हैं 
पर, हमने तो उन्हें, दलाली के सिबा कुछ करते नहीं देखा ? 
... 
पुरुष्कृत हुए हैं तो उनमें कुछ तो बात होगी जरुर 
वर्ना, गोबरों की भी.... रोटियाँ बनती हैं कभी ??
... 
बुझदिलों की शान-औ-सुरक्षा में बहादुर खड़े हैं 
उफ़ ! क्या गजब तंत्र है, कैसा अजब मंत्र है ?
... 
वो अपने जिगर के जख्मों को, कुछ इस तरह सहला रहे हैं 
उफ़ ! खुद ही लिख रहे हैं, ...... और खुद ही छपवा रहे हैं ?
... 
कुछ फर्जी लोगों के फर्जी किस्से तो सुनाओ 'उदय' 
क्यों ?... जी कर रहा है ... ठहाके लगाये जाएँ ??
... 
अब तो, जब जी चाहेगा तब ही चाहेंगे तुम्हें 
आगे, .................. जैसी तुम्हारी मर्जी ?
... 
किस्से तो बे-वजह के ही हैं 'उदय' 
पर, उनपे मचा बाजिव धमाल है ?
... 
खरीदे गए, बेचे गए, बेचे गए, खरीदे गए 
इस तरह, वो.......... मालामाल हो गए ?
... 
बेरहम, ........................ या बेवफा 
अब तुम ही कहो, क्या नाम दें तुमको ?
... 
कुकुरमुत्तों को, ....... कुत्तों की उपाधी से मत नवाजो 'उदय' 
एक वह ही तो हैं, जिनको किसी के शह की दरकार नहीं है ? 
... 
अपनी तो, जब भी हुई थी सुबह, उनके आगोश में हुई थी 
पर अब, ... बगैर आगोश के,......... सुबह होती कहाँ है ?
... 
जब तक ढकी थी आबरू उसकी, कहीं कोई कीमत नहीं थी 
कपडे फेंकते ही,......... आबरू............ बाजार बन गई ?
...