Tuesday, May 24, 2016

जन लोकपाल ... जान बाकी है ... जिन्दा है ... !

जन लोकपाल
अभी-भी ... जिन्दा है ... लहु-लुहान पड़ा है,

न कराह रहा है ...
न तड़फ रहा है ...
क्यों ? .... क्योंकि - .... वह कोमा में है !

न ड्रिप चढ़ी है, न आई.सी.यू. में है,
संग ... न कोई नर्स है, न ही कोई डॉक्टर है,
 
अगर कुछ है ... तो ...
पत्तों की छाँव है
कभी ठंडी, तो कभी गर्म हवाएँ हैं
जन लोकपाल
पीपल के पेड़ के नीचे
बेसुध पड़ा है
जान बाकी है ... साँसें चल रही हैं ... जिन्दा है ... ,

पीठ पे
खंजर भौंकने वाले
आज भी हाथों में खंजर लिए
खुलेआम ... घूम रहे हैं
शान से ... मान से ... सम्मान से ... ??? 

~ श्याम कोरी 'उदय'

Sunday, May 8, 2016

दुःख के बादल ...

दुःख के बादल बिखरे हैं
चहूँ ओर ........ आकाश में,

और हम ...
सुख की छतरी
छोटी-छोटी

पकड़ हाथ में
दौड़ रहे हैं ... दौड़ रहे हैं,

जीवन की आपा-धापी में
हम ...
कुछ पकड़ रहे ... कुछ छोड़ रहे हैं,

दुःख के बादल बिखरे हैं
चहूँ ओर ........ आकाश में !!

~ श्याम कोरी 'उदय'