शेर - 91
कैसे बना दूँ गैर तुझे, एक शुक्रिया अदा कर
तेरा ही शुक्रिया है, हमें जीना सिखा दिया।
शेर - 90
तेरे हम-कदमों से, मंजिलें आसां हैं
तेरे साथ होने से, जिंदगी खुशनुमा है।
शेर - 89
‘उदय’ तेरी ही दोस्ती है, जो हमें जिंदा रखे है
मरने को, तो हम, कब के मर चुके हैं ।
शेर - 88
वक्त ने न जाने क्यूं, बदल दिया हमको
वरना हम थे ऎसे, कि खुद के भी न थे ।
शेर - 87
‘उदय’ कहता है मत पूछो, क्या आलम है बस्ती का
हर किसी का अपना जहां, अपना-अपना आसमां है।
कैसे बना दूँ गैर तुझे, एक शुक्रिया अदा कर
तेरा ही शुक्रिया है, हमें जीना सिखा दिया।
शेर - 90
तेरे हम-कदमों से, मंजिलें आसां हैं
तेरे साथ होने से, जिंदगी खुशनुमा है।
शेर - 89
‘उदय’ तेरी ही दोस्ती है, जो हमें जिंदा रखे है
मरने को, तो हम, कब के मर चुके हैं ।
शेर - 88
वक्त ने न जाने क्यूं, बदल दिया हमको
वरना हम थे ऎसे, कि खुद के भी न थे ।
शेर - 87
‘उदय’ कहता है मत पूछो, क्या आलम है बस्ती का
हर किसी का अपना जहां, अपना-अपना आसमां है।
17 comments:
प्रिय साथीगण
मेरी पिछली पोस्ट पर आदरणीय साथीगण राज भाटिया, नजर, मुरारी पारीक, वन्दना, प्रसन्न वदन चतुर्वेदी, अर्श, अनिल, वृजमोहन श्रीवास्तव, दिगम्बर नासवा, गुंजन, मार्क राय, निर्मला कपिला जी द्वारा उत्साहवर्धन हेतु महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ दर्ज की गईं, मै इन सभी आदरणीय साथियों का आभारी हूँ तथा आशा करता हूँ कि भविष्य में भी उत्साहवर्धन जारी रहेगा।
धन्यवाद
श्याम कोरी 'उदय'
वक्त ने न जाने क्यूं, बदल दिया हमको
वरना हम थे ऎसे, कि खुद के भी न थे ।
waah jo khud ka bhi na tha wo kisi aur ka hona badi gahraiyaan hai aapke shero me !
तेरे हम-कदमों से, मंजिलें आसां हैं
तेरे साथ होने से, जिंदगी खुशनुमा है।
behtareen
उदय जी ! आपके इतने सारे और बड़े प्यारे शेर
पढ़ कर दिल को सुकून हासिल हुआ .....
और इस बार का ये शेर तो बहुत असरदार है
‘"उदय’ कहता है मत पूछो, क्या आलम है बस्ती का
हर किसी का अपना जहां, अपना-अपना आसमां है।"
बधाई स्वीकारें
---मुफलिस---
तेरे हम-कदमों से, मंजिलें आसां हैं
तेरे साथ होने से, जिंदगी खुशनुमा है।
nice ahasaasaat se bharapoor
‘उदय’ कहता है मत पूछो, क्या आलम है बस्ती का
हर किसी का अपना जहां, अपना-अपना आसमां है।
bahut ahccha sher hai.
vastvikta ke kareeb!
वाह......
har sher lajawaab hai.
Waah !
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वक्त ने न जाने क्यूं, बदल दिया हमको
वरना हम थे ऎसे, कि खुद के भी न थे
Lajawaab sher........sab ke sab khoobsoort hain
बहुत ही ख़ूबसूरत अशआर
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वक्त ने न जाने क्यूं, बदल दिया हमको
वरना हम थे ऎसे, कि खुद के भी न थे
अति सुन्दर
‘उदय’ कहता है मत पूछो, क्या आलम है बस्ती का
हर किसी का अपना जहां, अपना-अपना आसमां है।
बहुत खूबसूरत शेर है.
वक्त ने न जाने क्यूं, बदल दिया हमको
वरना हम थे ऎसे, कि खुद के भी न थे ।
अपनी पाठशाला के स्वार्थी पाठ को वक्त की पाठशाला बखूबी बदल देती है पर तब तक समाज पर बहुत अत्याचार हो चुका होता है.
सुन्दर भाव, सुन्दर प्रस्तुति.
बधाई.
umda sher
avhi abhivykti.
bade sher bhare hai ji aapki post par
kaash itne jungle me bhi hon
बिलकुल सही यही आलम है सबके अपने अपने जहाँ है और अपने अपने आसमान हैं
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