Wednesday, October 5, 2011

... जज्बे तूफानी चाहिए !

घोषित लोकशाही, अघोषित तौर पे राजशाही है 'उदय'
कभी विरासत, तो कभी वसीयत की जय जयकार है !
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जाने क्यूं, मुल्क मेरा सौदे की मंडी हुई है
चप्पे-चप्पे पे, खुदी का सौदा कर रहे हैं लोग !
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सर्द फिजाओं में भी, सहमे सहमे से क्यूं हो 'उदय'
मौके की नजाकत देख के, तनिक सिमट के चलो !
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जिन्हें उठा लेना था अब तक बंदूकें हांथों में
जाने क्या हुआ उनको, जो सहमे हुए हैं !
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उम्मीदों भरे जिस्म, नाउम्मीदी में सुलग रहे थे
यार तो बैठा था सामने, मगर खामोश बैठा था !
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मरते मरते जज्बात, जी पड़े हैं 'उदय'
खबर है कि उधर, वो भी बेचैन हुए हैं !
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चवन्नी से जियादा औकात नहीं थी जिनकी
आज क्या खूब सियासत चल रही है उनकी !
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सूखी रोटी चबा-चबा के, चटनी चांट लेते हैं
उफ़ ! गरीबी में, यही हमारे माल-पुआ हैं !!
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खानदानी सूरमाओं को कोई समझाओ यारो
बे-वजह झूठी शान बघारी में रक्खा क्या है !
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आज मेरे मुल्क को एक नई इंकलाबी चाहिए
बस तेरे मेरे जेहन में, जज्बे तूफानी चाहिए !