एक तरफ कुआ
तो दूजी तरफ खाई है
इसलिए ही
जन लोकपाल के मसले पर
सरकार ने
अनसुनी दिखलाई है !
करते क्या
और क्या न करते
मरना तो लगभग तय है
मान लेने पर
जेल जाने का भय है
तो न मानने पर
हार जाने का संकट तय है !
जन लोकपाल बिल
गले की हडडी बन गई है
न उगल पाने
और न निगल पाने का
संकट गहरा रहा है
और न ही कोई
संकटमोचक नजर आ रहा है !
हे राम ! अब क्या करें
कहीं ऐंसा न हो
न घर के रहें
और न ही घाट के
जन लोकपाल के चक्कर में
राज-पाट न छिन जाए
और तो और, कहीं
घाट घाट का
पानी न पीना पड़ जाए !!
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