Wednesday, October 19, 2011

इतनी रात ...

रात ने जगा दिया
काश ! कुछ देर और
अपनी बाहों में
समेटे हुए
रखे रहती, हमें सोने देती ...
किसी छोटे-मोटे ख़्वाब में
मुझे, उलझाए
रहती
कुछ देर और, घंटे-दो घंटे
उफ़ ! अब क्या करें
इतनी रात ...
किसे याद करें
कौन होगा जो जाग रहा होगा
या
किसे सोते से जगाएं
या फिर
खुद जागते रहें
किसी के जागने के इंतज़ार में ...
कहीं ऐंसा तो नहीं
ये रात
कुछ कह रही है
जगा कर, नींद से उठाकर
मुझे, कुछ इशारे कर रही है
कुछ न कुछ
तो जरुर है, या होगा
जो रात ने मुझे जगाया है
उठाया है ...
एक मित्र की तरह
एक प्रेमिका की तरह
एक नई दुल्हन की तरह
इतनी रात ... !!

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

एक रात ही साथ है।