मैं पेड़ पे लटका हुआ आम हूँ
आम हूँ तो हूँ
खुद-ब-खुद, ख़ास कैसे हो जाऊंगा
तब तक, जब तक
कोई मुझे पेड़ से तोड़कर
किसी एयर कंडीशन शो रूम तक -
नहीं पहुंचाएगा !
और जब एयर कंडीशन शो रूम में -
पहुँच जाऊंगा
तो खुद-ब-खुद ख़ास हो जाऊंगा !
बस एक बार ख़ास होने -
तक की बात है
जैसे ही ख़ास हुआ
फ़टाफ़ट बिक जाऊंगा
खरीददार खड़े होंगे
बोलियाँ लगेंगी
मुंह माँगी कीमत मिल जायेगी
बस, यही फर्क होता है
आम और ख़ास में
आम की दो कौड़ी भी कीमत नहीं होती
और ख़ास की -
सच ! मुंह माँगी कीमत हो जाती है !!
1 comment:
आम से खास की रोचक यात्रा।
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