"चलो अच्छा हुआ, जो तुम मेरे दर पे नहीं आए / तुम झुकते नहीं, और मैं चौखटें ऊंची कर नही पाता !"
Sunday, October 9, 2011
दर्द ...
उन्होंने, कसम खाई थी दर्द देने की अब वो अपनी कसम निभा रहे हैं मगर क्या करें हम, फिर भी उन्हें याद आ रहे हैं उनके, याद करने से याद करते रहने से हम उनके जीवन में खुद-ब-खुद चाहकर, न चाहकर भी सांथ सांथ बढे, बढे चले जा रहे हैं !!
1 comment:
सुन्दर अभिव्यक्ति ... हार्दिक बधाई.
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