Sunday, October 9, 2011

... रहम की गुंजाईश नहीं छोडी !

उफ़ ! अच्छी बात है, दोपहर होते होते, हम जाग रहे हैं
फिर भले चाहे, जो मन में आए, आंकलन लगा रहे हैं !
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सच ! आज हम एक हुनर को देख के दंग रह गए
कमाल है, जूते उठाते उठाते लोग, मंत्री बन गए !
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चेलागिरी अपने आप में एक हुनर है 'उदय'
सच ! चेला, खुद-ब-खुद छैला हो जाता है !
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अपुन ने बहुतों को, चेलों का चेला बनते देखा है
बिना सिर-पैर की बातों पे, उनको हंसते देखा है !
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किसी ने मुस्कुरा के, हमें अपना बना लिया है 'उदय'
अब क्या करें, उसे कुछ कहें, या इंतज़ार करें !!
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किसी ने लाख छिपानी चाही थी, चाहत अपनी
उसकी आँखों ने मगर चुगली कर दी !

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सच ! शब्द पैने हों या न हों, मोटे होने चाहिए
लिखने वाले की शकल पहचानी होनी चाहिए !
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सच ! कल रात तक वो हमारे थे
सुबह सुबह होते हम उनके हो गए !
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हर किसी को हक़ मिला है जोर आजमाईश का
कोई भ्रष्टाचार के सामने, तो कोई पीछे खडा है !
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जिन्दगी में कहीं कोई बंदिशें नहीं थी
मौत ने रहम की गुंजाईश नहीं छोडी !

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