Friday, October 21, 2011

हे राम ! सत्य-अहिंसा !!

वह सत्य-अहिंसा के पथ पर था
बातें कड़वी, और व्यवहार में सादगी थी
वो जो भी कहता
बहुत कडुवा लगता था !
सत्य -
आज किसे मीठा लग सकता है !!

चुभता है
काटता-सा है
झंकझोरता-सा है
सुन-सुन के
कानों में जलन सी होने लगती है !
लगता है, जैसे किसी ने
कानों में कोई जहरीला कीड़ा घुसेड दिया है
जो रगड़ रगड़ के -
जला रहा है कानों को !!

एक दिन उसके तीखे व्यंग्यी शब्द -
सुनते सुनते
रहा नहीं गया, सहा नहीं गया
और उठकर
जड़ दिया एक तमाचा उसके गाल पे
चटाक ! वह खामोश देखता रहा !!

फिर धीरे से बोला -
बोला क्या, उसने दूसरा गाल आगे करते हुए कहा -
लो, एक चांटा और मार दो, इस गाल पे
सुनकर मैं सन्न रह गया
लगे ऐसे, जैसे उसने मुझ पर
बम फेंक दिया हो
और मैं
क्षित-विक्षित होकर, ज़मीन पे पडा, तड़फ रहा हूँ
हे राम !
सत्य-अहिंसा !!
ये कैसी मुसीबत है
जो चुभती भी है, और फूटती भी है !!

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