Saturday, October 29, 2011

आलिंगन ...

कहो, कब तक ?
मुझे तुम, यूँ ही -
समेटते रहोगे
लपेटते रहोगे
सहेजते रहोगे
अपनी बांहों में, बोलो -
कब तक ?

कब तक
तुम्हें मेरा आलिंगन
यूँ ही
सुकूं देता रहेगा !
और कब तक तुम
यूँ ही
लिपटे रहोगे मुझसे
क्या, किसी दिन
तुम्हारा मन -
नहीं भर जाएगा, मुझसे ?

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

मन भरता नहीं है।