Saturday, March 31, 2012

फरेबी ...

उसकी आँखें हैं या कोई तिलस्मी मंजर है 'उदय'
सिर्फ देखा है एक बार, और हम अपने नहीं रहे !
...
वो तो, तेरी आँखों में नमी, हमसे देखी नहीं जाती
वर्ना ! तुझसा फरेबी, हमने देखा नहीं अब तक !!!

लुत्फ़ ...

किसी भी ख़त का किस्सा, सुनने नहीं मिला
करूँ कैसे यकीं, कि ख़त मेरे तुझको मिले हैं ?
...
तुम्हारी हाँ, हो तो भी ठीक, न हो तो भी ठीक
सच ! तुम्हें चाहने का, लुत्फ़ ही कुछ और है !!

Friday, March 30, 2012

अक्सर ...

उफ़ ! आज उसने गुस्से में अखबार के चिथड़े-चिथड़े उड़ा दिए
सुनते हैं, वह, स्कैम, फ्रॉड, करप्शन, पढ़ने का आदि हुआ था !
...
वफ़ा की रश्में तो हर दिल निभाना चाहता है
वो तो, वक्त ही बेईमान हो जाता है अक्सर !!

पैगाम ...

देखना यार तेरी महफ़िल, कहीं सूनी-सूनी न रहे
अब तक तेरा पैगाम, मुझ तक आया जो नहीं !!
...
बहुत शोर है शहर में, आज उसके इल्जामों से
कितने झूठें, कितने सच्चे हैं, 'खुदा' ही जाने है ?

Thursday, March 29, 2012

खुलासा ...

किसी न किसी के सांथ तो जाना ही है
वैसे, माशूक भी मौत से कम कहाँ है ?
...
सच ! मेरे देश के लाल, कर रहे हैं कमाल
भृष्टाचार के दम पर, हो रहे हैं माला-माल !
...
कौन आईना दिखा रहा है, या कौन आईने में है
काश ! इस बात का भी खुलासा हो जाता 'उदय' !

इल्जाम ...

जाओ, जाकर
पांच-दस लाख में खरीद लो उसको
गर न मानें
तो
उस पर
किसी के सांथ
छेड़छाड़ का इल्जाम लगा दो !
फिर देखते हैं
हम
उसकी ईमानदारी
या तो
वो खुद चल के हमारे पास आयेगा
या फिर ... जाएगा ... जेल !!

Wednesday, March 28, 2012

खुशमिजाजी ...

यकीनन ये तेरा नहीं, तेरे दिल का फैसला होगा
क्योंकि, हम तेरी फितरती आदतों से वाकिब हैं !
...
तेरे ख्याल भर से, दिल खुद-ब-खुद बहल गया है आज
रु-ब-रु न सही, ख्यालों में खुशमिजाजी से आते रहना !

किरदार ...

न कर गुमां, कि ऊंची हवेली आज तेरी शान है
सच ! महलों की शान, खँडहर बयां कर रहे हैं !
...
क्या गजब किरदार है उसका 'उदय'
पीठ पे गाली, सामने पाँव छूता है !!

Tuesday, March 27, 2012

तौबा ...

सुकूं से बैठकर, क्या गुल खिला लेंगे
चलो दो-चार हाँथ, आजमा लें हम !!
...
तौबा कर लेते मोहब्बत से
गर, तेरे इरादे भाँप जाते हम !

Monday, March 26, 2012

जुनून ...

गर मौक़ा पडा तो, बाअदब हमें गुलामी क़ुबूल है
उफ़ ! भृष्टाचार पे अंकुश, हमें कतई नहीं मंजूर है !
...
मेरी रातें भी दिन जैसी ही हैं
फर्क है तो, तनिक अंधेरा है !
...
खुद छापो और खुद बांटो, ये शौक नहीं जुनून है
नये स्वयंभू लेखक की, एक छोटी-सी पहचान है !

Sunday, March 25, 2012

चेला ...

इस मायावी संसार में
कदम रखते ही
हर किसी ने
हाँथ पकड़-पकड़ के
हमें चेला बनाना चाहा था
बड़ी मुश्किल से बचते-बचाते
यहाँ तक पहुंचे हैं 'उदय'
कहीं ऐंसा तो नहीं
कुछ ऐंसा ही
तुम्हारा भी ईरादा है ?

जुनून-ए-लोकपाल ...

है उम्र का तकाजा, सठिया गया हूँ मैं
फिर भी मेरे नसीब में सत्ता की डोर है !
...
सच ! अपने अपने ताज-ओ-तख़्त संभालो दिल्ली वालो
जुनून-ए-लोकपाल, चिंगारी नहीं है, धधगती आग है !!

Saturday, March 24, 2012

हंसी इत्तेफाक ...

समझते तो हैं हम मुहब्बत के सारे दस्तूर 'उदय'
बस, नासमझी सिर्फ इत्ती है, बयानी नहीं आती !
...
सच ! इसे हम हंसी इत्तेफाक कैसे मान लें 'उदय'
कि वो, हर रोज अंजाने में टकरा जाते हैं हमसे !
...
स्वयंभू लेखकों की, हर रोज किताबें छप रही हैं
पाठकों की किसे है परवाह, दुकानों की मौज है !

जूते ...

मेरी बस्ती में
कुछ ऐंसे लोग भी रहते हैं 'उदय'
जिन्हें -
फुर्सत नहीं है दूसरों के जूते उठाने से !
और वे ये चाहते हैं
कि -
कोई और, उनके जूते उठा के दे !!

Friday, March 23, 2012

मौक़ा परस्ती ...

कुछ हैं, जो सुबह से शहीदों के गुणगान में लगे हैं
जो वक्त पे, इंकलाब जिंदाबाद कहने से भी डरते हैं !
...
चंहू ओर, क्या खूब धूम-धडाका है मौक़ा परस्ती का 'उदय'
उफ़ ! चेले के माथे पे मुकुट, औ गुरु के हांथों में तालियाँ हैं !!

अंधेरे ...

आओ, सिमट जाएं, हम
अंधेरे में ...
जब -
उजाला होगा
तब -
फिर चल पड़ेंगे ...
सच !
मान जाओ, बात मेरी
ये अंधेरे, यूँ ही नहीं होते !!

बस्ती का आलम ...

हर गली, हर मोड पे, तेरे नाम की तख्ती लगी है
पर, तू रहती कहाँ है ? कोई कुछ कहता नहीं है !!
...
सच ! हम समझ गए थे उसी दिन, तेरी बस्ती का आलम
जब कुकुरमुत्तों को, मशरूम कह के नवाजा जा रहा था !!

Thursday, March 22, 2012

मुहब्बत ...

उफ़ ! अब खामों-खाँ, तू मुहब्बत का दम न भर
हम जानते हैं, शाम ढलने के बाद ही याद आते हैं हम !
...
सच ! यूँ तो, हर घड़ी हमको तुम्हारी चाह थी
पर, जब तुम मिले, न जाने हमें क्या हो गया ?

Wednesday, March 21, 2012

सुबह ...

सच ! बहुत दिनों के बाद हुई है, आज सुबह से बात हुई है
थोड़ा गुस्सा तो जायज था, फिर मीठी-मीठी बात हुई है !
...
सुना है, जर्रे जर्रे पे तुमने अपना नाम लिख रखा है
अगर चाहो, तो दिल मेरा, अब तक कोरा पडा है !!

Tuesday, March 20, 2012

हाल-ए-वतन ...

गम-औ-खुशी के बीच, चलो एक रस्ता बनाएं हम 'उदय'
कितने भी आएँ गम मगर, खुशियाँ भी उनके सांथ हों !!
...
तुम उधर से हैलो कहो, मैं इधर से हाय कहूँ
कहते-सुनते, खुद-ब-खुद एक शेर हो जाएगा !
...
हाल-ए-वतन, अब कोई हमसे न पूंछे 'उदय'
क्योंकि - किसे उल्लू, किसे हम शाख बोलें !

Monday, March 19, 2012

लिंग परिक्षण ...

कोरे कागज़ रूपी साहित्यिक गर्भ में
एक कविता
पल रही थी, बन रही थी, जन्म ले रही थी
अभी
कविता के -
अंग
रूप
आकार
उभर ही रहे थे
कि -
एक आधुनिक गुरु-ज्ञानी ने
नजर डाल, कविता का लिंग परिक्षण कर दिया
जैसे ही लिंग का ज्ञान हुआ ... कन्या ...
एक सशक्त कविता ... कमजोर मान ली गई
और ... फिर ...
जन्म के पूर्व ही
गर्भ में ... कविता रूपी भ्रूण की ... ह्त्या ... कर दी गई !
ठीक उसी तरह ... जिस तरह ...
कन्या भ्रूण की ...
लिंग परिक्षण उपरांत ... कर दी जाती है ह्त्या !!

बहरूपिया ...

वह दहाड़ता नहीं है तो इसका मतलब यह नहीं है
कि वह 'शेर' नहीं है ! है तो जरुर, मगर गूंगा है !!
...
उफ़ ! क्या गजब बहरूपिया है यार मेरा
कभी चोर, तो कभी कोतवाल होता है !!
...
सच ! जब जब देखूं तुझे, तू आईने में कुछ-न-कुछ ढूँढती दिखे है
एक बार मेरी आँखों में झाँक के देख, वो सब तुझे मिल जाएगा !

Sunday, March 18, 2012

वारिस ...

खामों-खां बस्ती की झोपड़ियां तलाशी जा रही हैं 'उदय'
उफ़ ! ऐंसा कौन-सा मुजरिम है जो दिल्ली में नहीं बैठा !
...
सच ! मैं इस मुल्क का इकलौता वारिस हूँ
उनसे कह दो, मुझे अदब से सलाम करें !!

Saturday, March 17, 2012

आगोश ...

गर, आज उसे रंज है मुझसे, तो रहने दो
किसी दिन बैठ के, उसे हम मना लेंगें !!!
...
न मिले चैन, तो न सही, पर, तेरे आगोश में
जिंदगी का भी, अपना एक अलग मजा है !!

Friday, March 16, 2012

कशमकश ...

उफ़ ! उन्हीं से चाहतें, उन्हीं से नफरतें
हे मौला ... ज़रा मेरा कुसूर तो बता ??
...
माना कि कशमकश में, खुदकुशी करके मरा है वो
पर, बुजदिल नहीं है, मौत को हरा कर गया है वो !
...
जब उसने आते ही मुझे गुरु कहा था 'उदय'
मैं भांप गया था, मुझे चेला बनाने आया है !

Thursday, March 15, 2012

शख्स ...

यहाँ हर शख्स, किसी न किसी का खुद-ब-खुद चेला हुआ है
उफ़ ! ये कैसा शहर है 'उदय', जहां कोई 'गुरु' नहीं दिखता !!
...
कहने को तो 'उदय', आज हर एक शख्स खुद-ब-खुद 'खुदा' है
उफ़ ! फिर भी न जाने क्यूँ, उसे खैरात पे आसरा है !!

दुआ ...

हर एक शख्स तेरे शहर का, तुझपे जाँ निछार करे
अब तू ही बता कैसे, ये दिल, तेरा दिल क़ुबूल करे ?
...
दुआ इतनी ही है 'सांई', तू मुझे खुद-सा बना ले
मुझे जब छुए कोई, उसकी रूह को सुकून मिले !
...
कल ही तो दिल तोड़ा है तूने, जुबां से खुद मुकर के
अब थोड़ा तो वक्त दे, जो तुझपे फिर से एतबार हो !

Wednesday, March 14, 2012

कर्म ...

"सामान्यतौर पर मनुष्य के जीवन काल में उसके कर्मों के फल तत्कालीन तौर पर लाभप्रद परिलक्षित होते हैं किन्तु जब तक इस रहस्य से पर्दा नहीं उठ जाता कि मनुष्य के कर्म उसके मरने के बाद उसे किस रूप में फल प्रदान करेंगे तब तक यह निश्चय करना बेईमानी होगा कि अच्छे या बुरे कर्मों के दूरगामी परिणाम क्या होंगे ... पर हाँ, बड़े बड़े खंड़हर हो चुके महलों व इमारतों को देखकर ऐंसा अनुमान तो लगाया ही जा सकता है कि उनमें रहने वाले राजाओं, महाराजाओं, सूरमाओं, सुल्तानों की न सिर्फ सल्तनतें व बादशाहतें नष्ट हुई हैं वरन उनकी पीढियां भी स्वाहा हो गई हैं इसलिए इस बात की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि यह उनके बुरे कर्मों की परिणिती है ... अत: सदभावनापूर्ण कर्म हमारे जीवन में सोच व व्यवहार के हिस्से होने चाहिये !"

Tuesday, March 13, 2012

जिंदगी ...

उसने कह तो दिया था कि मयकदे में शराब उसकी है
न जाने क्या हुआ, कि हम अपनी समझ के पी गए !!
...
सच ! तेरे संग, कदम कदम पे मौत के साये हैं
पर, तेरे बगैर, जिंदगी, जिंदगी भी तो नहीं !!!

Monday, March 12, 2012

कोशिशें ...

उफ़ ! हुआ वही, जो होना नहीं था
कदम मेरे खुद-ब-खुद तेरी ओर चल पड़े !
...
मय और साकी की तमाम कोशिशें नाकाम रहीं
सच ! नींद आई, तो तेरे आगोश में आई !!
...
सच ! लाख ऐब सही, तेरे एक हुनर को सजदा
जान जोखिम में डाल, तू मुझसे मिलती तो है !

Sunday, March 11, 2012

खेल ...

हर खेल निराला है, यहाँ वक्त के मसीहा का
कोई हार के जीता है, कोई जीत के हारा है !
...
तेरी आँखें हैं या कोई क़त्ल का औजार है
उफ़ ! जिसे देखे, उसे घायल किये है !!

Saturday, March 10, 2012

आगोश ...

आज की सब, हम तुम्हारी यादों संग ही जागे हैं
अब सोचते हैं, रात भर, हम सोये कैसे बिन तेरे !
...
जेहन में जिंदगी की दास्ताँ, खामोश बैठी है
गर ! कुछ नहीं है तो, आओ बातें करें उससे !
...
नींद कब आती मुझे है, बिन तेरे आगोश के
कब सोये, कब जगे, अब ये किसे मालुम है !

क्या लिखूँ ?

क्या लिखूँ ?... मैं सोच रहा हूँ
जो तुमको भा जाऊं !
अ ब स द ... क ख ग घ
ए बी सी डी ... एक्स वाय जेड
९ २ ११ ... ५ ३ १८
कुछ न कुछ लिख जाऊं
जग को छोडो ...
तुमको मैं ... थोड़ा तो भा जाऊं
गीत लिखूं
संगीत लिखूं
या फिर मौन मैं लिख जाऊं
क्या लिखूँ ?... मैं सोच रहा हूँ
जो तुमको भा जाऊं !!

Friday, March 9, 2012

वध ...

आज मैंने
एक घोर महापापी
जिसने अनेकों -
अपहरण
बलात्कार
लूट
डकैती
ह्त्या
जैसे संगीन अपराध किये थे
उसे मार दिया है
हे प्रभु
आज के युग में
क्या यह वध कहलायेगा ?
गर नहीं ... तो क्यूँ नहीं ??

हाल-ए-दिल ...

कुत्ते की दुम नहीं, हैं खिलौने मिट्टी के
टूटना नसीब है, झुकना अदा नहीं !
...
हाल-ए-दिल अपना सुनाएँ, अब हम किसे
सच ! प्यार भी अब हो गया व्यापार है !!!
...
कदम मेरे, ये किस बस्ती में आ पहुंचे हैं 'उदय'
उफ़ ! यहाँ हर शख्स खुद को 'खुदा' कहता है !

Thursday, March 8, 2012

चाहत ...

तुम्हारी मर्जी
जब तक
जी चाहे
तुम
खामोश बनकर चाहते रहो !
पर
मैं !!
कहो -
कब तक खामोश रहूँ ??

Wednesday, March 7, 2012

रंगों की होली ...

देख ! संभल के रहना, आज रंगों की होली है
हर किसी के हौंठों पे, "बुरा न मानो होली" है !
...
जी तो चाहता है आज तुझे मच-मचा के रंग दें
उफ़ ! जानते हैं, रंगों से कितनी एलर्जी है तुझे !
...
कल भी, कल की तरह जियादा हो गई थी 'उदय'
फिर आज तो "बुरा न मानो होली" है !

बुरा न मानो होली ...

जब जब चाहा मैंने, रंग जाना प्यार के रंगों में
न जाने क्यूँ, तूने सिर्फ गुलाल से मन भाया है !
...
सच ! तूने ये किस रंग में रंग दिया है मुझे
तेरी सखियाँ ही मुझसे खफा-खफा सी हैं !!
...
वैसे भी तेरे प्यार का रंग कुछ इस कदर चढ़ा है मुझ पे
कि, किसी और रंग के चढ़ने की गुंजाइश नहीं दिखती !
...
सच ! वैसे पिछले साल का रंग उतरा नहीं है
न जाने, इस बार फिर से, तेरे क्या इरादे हैं ?
...
आज होली के रंगों में, न कोई हिन्दू न कोई मुसलमान है
यह सांई, नानक, महावीर, बुद्ध का सतरंगी हिन्दुस्तान है !
...
सच ! जी चाहे, जो तेरा, उस रंग से, रंग दे मोहे
फिर न कहना, किसी और को मौक़ा मिल गया !
...
प्यार से हर बार, रंगा तो तूने ही है मुझे
पर इस बार इच्छा किसी की और भी है !
...
तुम अगर चाहो तो रंग बनके तुम से लिपट जाएं
बात बिगड़ी तो कह देना, "बुरा न मानो होली" है !

Tuesday, March 6, 2012

प्यार का रंग ...

जब जब चाहा मैंने, रंग जाना प्यार के रंगों में
न जाने क्यूँ, तूने सिर्फ गुलाल से मन भाया है !
...
सच ! तूने ये किस रंग में रंग दिया है मुझे
तेरी सखियाँ ही मुझसे खफा-खफा सी हैं !!
...
वैसे भी तेरे प्यार का रंग कुछ इस कदर चढ़ा है मुझ पे
कि, किसी और रंग के चढ़ने की गुंजाइश नहीं दिखती !
...
सच ! वैसे पिछले साल का रंग उतरा नहीं है
न जाने, इस बार फिर से, तेरे क्या इरादे हैं ?

सिसकियों के मंजर ...

सच ! झलक रही थी तेरी बेबसी, खामोशियों में
अब 'खुदा' ही जाने है, तेरी सिसकियों के मंजर !
...
छोडो ! इसकी, उसकी, अपनी, तुपनी, बातें
अब, तिरंगी आन पे कुर्बान होने की घड़ी है !
...
जब भी देखता हूँ तुझे, तुझमें 'रब' नजर आता है
ये प्यार का असर है, या है दीवानगी की इन्तेहा !

Monday, March 5, 2012

कशमकश ...

सच ! जमाने से नहीं
हम, खुद से लड़ रहे थे
आज मालुम हुआ
लड़ते-लड़ते ...
हम हार गए, खुद से !
अब, जब -
होश आया तो देखा
हम वहीं खड़े हैं
जहां से
लड़ना शुरू किया था !
और ज़माना
आगे निकल गया है
उफ़ ! ये कशमकश ... !!

डगर ...

हे 'खुदा' तू ही सुझा दे, मैं चलूँ अब किस डगर
एक डगर माशूक है, तो एक डगर साकी खड़ी !
...
उफ़ ! खामों-खां जमाने ने मय पे तोमत मढ़ दी
खता उसकी नहीं थी, कदम मेरे लड़-खडाये थे !

Sunday, March 4, 2012

दौड़ ...

ये दौड़ गधों की है, या घोड़ों की
किसे क्या फर्क पड़ता है
पर हाँ, यदि तुम्हें जीतना है, तो ...
तुम्हें दौड़ना ही होगा
नहीं तो
चुपचाप तालियाँ बजाते रहो
तुम्हारा यह कहना
तर्कसंगत, तर्कपूर्ण नहीं है
कि -
दौड़ ...
घोड़ों की है और गधे जीत रहे हैं !!

आधुनिक किताबें ...

मेरी कविता
रोज लिखी जाती है
रोज छपती है
और रोज प्रकाशित हो जाती है
और तो और
उस पर
पाठकों की प्रतिक्रिया
अच्छी, बुरी, मिलीजुली
त्वरित मिल जाती है
मैं आधुनिक कवि हूँ
ब्लॉग, फेसबुक ...
मेरी आधुनिक किताबें हैं !!

Saturday, March 3, 2012

तमाशा ...

वक्त के हांथों
हम बन्दर बन गए हैं
खेल उसका, वो मदारी
अब वो ही जाने
ये तमाशा
कब ख़त्म हो पायेगा ?

Friday, March 2, 2012

आधा झूठा - आधा सच्चा ...

अब कैसे समझाएं तुझे, अपनी बेरुखी का सबब
'रब' ही जानता है, तेरे बगैर कैसे जी रहे हैं हम !
...
जी तो चाहता है तुझे रकीब मान लें अपना
मगर दिल है, जो अभी भी खामोश बैठा है !
...
काश ! हम भी किसी के, या कोई हमारा होता
भले चाहे, वो आधा झूठा - आधा सच्चा होता !

दिल के टुकड़े ...

बहुत मुश्किल नहीं था फासला, दो कदमों का
गुजर गए सालों, और हम तय कर नहीं पाए !
...
हे 'खुदा', तनिक हमें भी फरेबी बना दे
दिल के टुकड़े, अब सहेजे नहीं जाते !!
...
प्यार ... गर है, तो कह दो
पहले आप - पहले आप में रक्खा क्या है ?

Thursday, March 1, 2012

अश्लील कविता ...

एक दिन मैंने
बिलकुल वैसी ही कविता लिखी
जैसी किसी एक विदेशी लेखक ने लिखी थी
उसकी लिखी कविता -
हिट हो गई !
और मेरी कविता -
अश्लील घोषित कर दी गई !!