Tuesday, March 6, 2012

सिसकियों के मंजर ...

सच ! झलक रही थी तेरी बेबसी, खामोशियों में
अब 'खुदा' ही जाने है, तेरी सिसकियों के मंजर !
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छोडो ! इसकी, उसकी, अपनी, तुपनी, बातें
अब, तिरंगी आन पे कुर्बान होने की घड़ी है !
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जब भी देखता हूँ तुझे, तुझमें 'रब' नजर आता है
ये प्यार का असर है, या है दीवानगी की इन्तेहा !

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