Friday, March 30, 2012

अक्सर ...

उफ़ ! आज उसने गुस्से में अखबार के चिथड़े-चिथड़े उड़ा दिए
सुनते हैं, वह, स्कैम, फ्रॉड, करप्शन, पढ़ने का आदि हुआ था !
...
वफ़ा की रश्में तो हर दिल निभाना चाहता है
वो तो, वक्त ही बेईमान हो जाता है अक्सर !!

3 comments:

देवेन्द्र पाण्डेय said...

उस शहर में बीपी का मरीज नहीं होगा
जिस शहर में अखबार जाता नहीं होगा।

Rajesh Kumari said...

aajkal akhbaaron me inke alava aata bhi kya hai aadi to har koi vyakti ho sakta hai.sahi kataksh kiya hai.

प्रवीण पाण्डेय said...

वक्त बड़ा बेईमान है..