Thursday, March 22, 2012

मुहब्बत ...

उफ़ ! अब खामों-खाँ, तू मुहब्बत का दम न भर
हम जानते हैं, शाम ढलने के बाद ही याद आते हैं हम !
...
सच ! यूँ तो, हर घड़ी हमको तुम्हारी चाह थी
पर, जब तुम मिले, न जाने हमें क्या हो गया ?

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

छुईमुई छूने से शरमाये।