चिट्ठी पंहुचते-पंहुचते, कहीं........देर न हो जाए
आओ, एसएमएस से, हाल-ए-दिल बयाँ कर दें ?
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कहीं, साहित्यिक उठाईगीर, यूनियन न बना लें
और उल्टा ही,.........क्लैम ठोक दें तुम पर ??
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दास्तान-ए-मुहब्बत का ये आखरी पैगाम समझो
अब,...मिलेंगे दूर कहीं, किसी और दुनिया में ??
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घोटालों की रकमों से, वो इतनी ऊँची कुर्सी पे जा बैठे हैं
कि - क़ानूनी सिपाहियों के हाँथ-औ-नजरें संशय में हैं ?
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मेरे इजहार-ए-मुहब्बत पे, वो खट से बोले
पेंडिग रिक्वेस्ट बहुत हैं, बाद में देखते हैं ?
2 comments:
sAdhU sAdhU
सुंदर रचना ...
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