Saturday, February 16, 2013

डर ...


भोली सूरतों को, समझने में, धोखा हो जाता है अक्सर 
वर्ना, बार-बार,......हम इस तरह,.......छले नहीं जाते ?
... 
उनकी खुबसूरती अल्टीमेट है 
बस, वे मैग्नेटिक न हों, इत्ता-सा डर है ? 
... 
उनकी पारखी नज़रों को सलाम 
कोई तो है, जिसे हम भीड़ में तनहा नजर आये ? 
... 
सच ! वो इतना धड़के हैं, कि बेधड़क हो गए हैं 
अब, किसी से भी, धड़ा-धड़......मिल लेते हैं ? 

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