भोली सूरतों को, समझने में, धोखा हो जाता है अक्सर
वर्ना, बार-बार,......हम इस तरह,.......छले नहीं जाते ?
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उनकी खुबसूरती अल्टीमेट है
बस, वे मैग्नेटिक न हों, इत्ता-सा डर है ?
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उनकी पारखी नज़रों को सलाम
कोई तो है, जिसे हम भीड़ में तनहा नजर आये ?
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सच ! वो इतना धड़के हैं, कि बेधड़क हो गए हैं
अब, किसी से भी, धड़ा-धड़......मिल लेते हैं ?
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