रश्में ...
तुम कहो तो .... आओ ...
वेलेन्टाइन-डे की ... रश्में निभा लें
कहीं ऐंसा न हो, शाम होते-होते,
तुम कोई ...
नया इल्जाम ...
हमपे ............... मढ़ दो सनम ?
...
...
वेलेन्टाइन-डे ...
उनके हाँथों में ...
लाल, पीले, सफ़ेद, गुलाबी ...
रंग-बिरंगे ...
ढेरों ....... गुलाब देख के
जी मेरा घबरा गया !
बस, ... यूँ समझ लो
उसी क्षण ...
वेलेन्टाइन-डे ... मनाने का
सिर पे चढ़ा भूत ...
अपने आप ...... उतर गया ?
2 comments:
यह सब पश्चमी सभ्यता का ढकोसला है,सुन्दर प्रस्तुती.
कहीं ये २४ घंटे निकल न जायें..
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