कहीं कुछ होता तो कब का छलक गया होता
वैसे, सबाब-ए-हुस्न छिपाए छिपता कहाँ है ?
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उन्हें, न भूलने का वादा तोड़ रहा हूँ 'उदय'
क्यों ? ... अब,... बस,... खुदा हाफिज !!
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पग हमारे, कभी पगडंडी से बाहर नहीं जाते
औ घर उनका 'उदय', एक्सप्रेस हाईवे पे है ?
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लिखने को तो 'उदय', वो तीन-सौ पेज में वही बात लिखते हैं
जिसे हम, दो-चार लाइनों में...... निचोड़ के समेट देते हैं ??
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खुद लिखूँ, ............ या तुझे पढूँ
बता, मुहब्बत में क्या शर्त है तेरी ?
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देखने-देखने का, हर एक का अपना-अपना नजरिया है
वही कविता, वही दोहा, तो वही.... कहीं शेर है 'उदय' ?
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