आओ, हम अपने किनारों को, एक कर लें
अब अलग-अलग हमसे चला नहीं जाता ?
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छोड़ दो, लताड़ दो, धुतकार दो, उन दहशतगर्दों को
जो बम फोड़ कर,.......कौम को बदनाम करते हैं ?
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वैसे तो, वे एक-दूसरे की पीठ खूब थप-थपा रहे हैं
मगर अफसोस,..................सुर है न ताल है ?
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मिलने को तो, वो जब भी मिलते हैं 'छाती' तान के मिलते हैं
मगर अफसोस, कभी.......... उनकी मंसा जाहिर नहीं होती ?
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लो, वो आज फिर, कुछ.........कहे-सुने बिन चले गए
सच ! उनकी बेचैनी, अब हमसे और देखी नहीं जाती ?
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