"चलो अच्छा हुआ, जो तुम मेरे दर पे नहीं आए / तुम झुकते नहीं, और मैं चौखटें ऊंची कर नही पाता !"
Friday, March 5, 2010
डामरे जी .... लडका बडा हो गया है!
एक दिन मैं "न्यू मार्केट" चौक भोपाल मे खडे होकर पान खा रहा था मेरा एक मित्र आया उसके साथ पुरानी यादें ताजा करते हुये "सिगरेट" का कश मारने लगे ... थोडी देर बाद मित्र चला गया मैं पान वाले को पैसे दे रहा था .... ठीक उसी समय एक सज्जन अपने मोबाईल फ़ोन पर बात करने लगे ... डामरे जी क्या हाल है... बढिया है ... आजकल भोपाल मैं हूं ... रिटायर हो गया हूं ... अभी-अभी आपका लडका दिखा था ... हां ... हां वहीं भोपाल मे "जी न्यूज" मे काम कर रहा है, बहुत नाम कमा लिया है ... वो सब तो ठीक है डामरे जी ... लेकिन आपका लडका बडा हो गया है ... क्यों, क्या हुआ ... अब क्या बतांऊ वह मुझे तो नहीं पहचान पाया पर मै उसे देखकर ही पहचान गया .... चलो अच्छी बात है उससे मिलते रहना मैं भी उसे बोल दूंगा आपसे मिल लेगा .... वो सब तो ठीक है डामरे जी ... अरे क्या हुआ, कुछ संकोच कर रहे हो ... नहीं ऎसी कोई बात नही है ... बस इतना बताना चाहता हूं ... डामरे जी ...... आपका लडका बडा हो गया है "सिगरेट" पी रहा था।
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4 comments:
बस इतना बताना चाहता हूं ... डामरे जी ...... आपका लडका बडा हो गया है "सिगरेट" पी रहा था।
बहुत खूब, लाजबाब !
यानि बड़ा होना है तो सिगरेट पीना पड़ेगा !
वाह बहुत बढ़िया लगा जो सराहनीय है! बधाई!
उसके साथ पुरानी यादें ताजा करते हुये "सिगरेट" का कश मारने लगे ..
यह तो सर्वथा अनुचित है । पुरानी यादों के चक्कर में फिर सिग्रेट को होठों से लगाना ठीक नहीं।
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