अपने देश में भिखारियों की संख्या दिन-व-दिन बढते जा रही है गली-मोहल्लों, चौक-चौराहों, गांवों-शहरों, धार्मिक स्थलों, लगभग हर जगह पर भिखारी घूमते-फ़िरते दिख जाते हैं और तो और रेल गाडियों में भी इनका बोलबाला है हर गाडी, हर डिब्बे में भिखारी दमक जाते हैं और चालू ....दे दाता के नाम.... भगवान भला करे .... ।
मूल समस्या ये है कि जब आम आदमी प्लेटफ़ार्म पर बिना टिकट जाने से डरता है तो ये भिखारी ट्रेन में कैसे घुस जाते हैं और अपने कारनामों को कैसे अंजाम देने लगते हैं ...... ट्रेन में अगर कोई बिना टिकट चढ जाये तो टी टी ई अथवा रेल्बे पुलिस की "गिद्ध निगाह" से बच नहीं सकता फ़िर ये भिखारी खुलेआम ट्रेनों में कैसे भीख मांग रहे हैं .... क्या रेल प्रशासन व प्रबंधन की मिलीभगत से ये कारनामे हो रहे हैं ? ..... अगर नहीं, तो इन्हें ट्रेन में चढने ही क्यों दिया जाता है !!!
अपने देश में कार्यरत ढेरों "एन जी ओ" क्या इतना भी नहीं कर सकते कि चंद बेसहारा व असहाय लोगों को दो वक्त की "रोटी" व "झोपडी" मुहईया करा सकें !!!
9 comments:
हर कोई भिखारी है. सबसे बड़े तो पांच साल वाले हैं.
भीख मांगना व्यवसाय है। इसलिए जैसे सड़कों पर लोग सामान बेचते हैं और पुलिस वालों को हफ्ता देते हैं ऐसे ही ये भी रेल के अधिकारियों को पैसा देते हैं।
bhikhari ke saath contract rahta hai
बिसनेस है जनाब ... लगता है इस बिसनेस ने सबसे ज़्यादा रोज़गार दिया हुवा है लोगों को .....
अजी आज कल तो भिखारी भी करोडो की माला पहनते है, यह तो उन्ही के चेलेचपटे है, जो माला के लिये शायद हफ़ता देते होंगे
Kahneko bhikhari hain..inse sab darke rahte hain...chahe musafir ho ya prashasan ho....Inko koyi kya kahega..kuchh kahtehi 'Human Rights" wale inki tarafdari karte aa jate hain..
श्याम भाई,
आप सब जानते हैं,
ये भी कारपोरेट जगत है,
इन भिखारियों के बैंक खाते देखिए।
जोहार ले
Kahneko bhikhari hain..inse sab darke rahte
ट्रेन में अगर कोई बिना टिकट चढ जाये तो टी टी ई अथवा रेल्बे पुलिस की "गिद्ध निगाह" से बच नहीं सकता फ़िर ये भिखारी खुलेआम ट्रेनों में कैसे भीख मांग रहे हैं
ये भारतीय रेल है
कुछ लोगो का खेल है
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