"चलो अच्छा हुआ, जो तुम मेरे दर पे नहीं आए / तुम झुकते नहीं, और मैं चौखटें ऊंची कर नही पाता !"
हा हा!मस्त!एक विनम्र अपील:कृपया किसी के प्रति कोई गलत धारणा न बनायें. शायद लेखक की कुछ मजबूरियाँ होंगी, उन्हें क्षमा करते हुए अपने आसपास इस वजह से उठ रहे विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.-समीर लाल ’समीर’
बहुत अच्छी प्रस्तुति।राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
सही आकलन!
आप कविता में कुछ नया प्रयोग कर रहे हैं।लगता है कुछ नया ही गढकर मानेंगे जहांपनाहमुझे एक शेर याद आ रहा हैपैदा न जमीं से नया आसमां कोईमुझे डर लगता है आपकी रफ़्तार देखकरबहुत बढिया
सच तो यही हैयह शैली पसन्द आयी
yah padhti kuch alag si , jaandaar hai
वाह गजब का लिखा है .....बल्ले बल्ले आनंद आ गया ...
मस्त है जी!
हा..हा..हा...मजा आ गया।
अटका-मटकादही चटाका
लौआ-लाटाबन में काटा
अरे भाई, कहां से निकालते हो ऐसे सटीक शब्द।मेरे ख्याल से यह आपकी तीसरी कविता है।तीनों एक से बढ़कर एक।
ऐसे ही लिखते रहें। गंदे हो रहे तमाम हालातों के बीच कहीं ऐसी मजेदार चीजें भी तो पढ़ने तो मिलनी चाहिए।
Wah,wah! Padhtehi tazagi mehsoos hui!
गीत-गजलकविता-कहानीहास्य-व्यंग्यब्लाग-दुनिया ...हा..हा..हा...,सही आकलन,अच्छी प्रस्तुति।
काम शब्दों में सब कुछ व्यक्त कर दिया आपने,काबिले तारीफ...सच कहा आपने यही है ब्लॉग दुनिया..ये ब्लॉग ही है जिस कारण हम सब यहाँ एकजुट हैं.आभार VIKAS PANDEY www.vicharokadarpan.blogspot.com
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
अच्छा है। तीखा है और तेजधार है।बचना ये हसीनों.. लो मैं आ गया टाइप का है।
अर्थपूर्ण परिपूर्ण चतुष्पदम हाईकू के लिए धन्यवाद उदय जी.
वाह , बिलकुल अलग अंदाज़ में ।
बहुत अच्छे भई बहुत ही अच्छे |
shyaam ji aadaam kuch ginti ke alfaazon men puri duniyaa smet kr rkhne kaa hunr sirf aapne sikhaaa he bdhaai ho . akhtar khan akela kota rajasthan
पूरे ब्लॉग जगत का सार बता दिया इस छोटी सी कविता में । भई वाह ।
बहुत ही सुन्दर! शार्ट कट मेथड्। सभी बातें मन की शामिल कर ली जावे। बधाई।
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24 comments:
हा हा!
मस्त!
एक विनम्र अपील:
कृपया किसी के प्रति कोई गलत धारणा न बनायें.
शायद लेखक की कुछ मजबूरियाँ होंगी, उन्हें क्षमा करते हुए अपने आसपास इस वजह से उठ रहे विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.
हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.
-समीर लाल ’समीर’
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
सही आकलन!
आप कविता में कुछ नया प्रयोग कर रहे हैं।
लगता है कुछ नया ही गढकर मानेंगे जहांपनाह
मुझे एक शेर याद आ रहा है
पैदा न जमीं से नया आसमां कोई
मुझे डर लगता है आपकी रफ़्तार देखकर
बहुत बढिया
सच तो यही है
यह शैली पसन्द आयी
yah padhti kuch alag si , jaandaar hai
वाह गजब का लिखा है .....बल्ले बल्ले आनंद आ गया ...
मस्त है जी!
हा..हा..हा...
मजा आ गया।
अटका-मटका
दही चटाका
लौआ-लाटा
बन में काटा
अरे भाई, कहां से निकालते हो ऐसे सटीक शब्द।
मेरे ख्याल से यह आपकी तीसरी कविता है।
तीनों एक से बढ़कर एक।
ऐसे ही लिखते रहें। गंदे हो रहे तमाम हालातों के बीच कहीं ऐसी मजेदार चीजें भी तो पढ़ने तो मिलनी चाहिए।
Wah,wah! Padhtehi tazagi mehsoos hui!
गीत-गजल
कविता-कहानी
हास्य-व्यंग्य
ब्लाग-दुनिया ...हा..हा..हा...,सही आकलन,अच्छी प्रस्तुति।
काम शब्दों में सब कुछ व्यक्त कर दिया आपने,काबिले तारीफ...सच कहा आपने यही है ब्लॉग दुनिया..
ये ब्लॉग ही है जिस कारण हम सब यहाँ एकजुट हैं.आभार
VIKAS PANDEY
www.vicharokadarpan.blogspot.com
किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।
अच्छा है। तीखा है और तेजधार है।
बचना ये हसीनों.. लो मैं आ गया टाइप का है।
अर्थपूर्ण परिपूर्ण चतुष्पदम हाईकू के लिए धन्यवाद उदय जी.
वाह , बिलकुल अलग अंदाज़ में ।
बहुत अच्छे भई बहुत ही अच्छे |
shyaam ji aadaam kuch ginti ke alfaazon men puri duniyaa smet kr rkhne kaa hunr sirf aapne sikhaaa he bdhaai ho . akhtar khan akela kota rajasthan
पूरे ब्लॉग जगत का सार बता दिया इस छोटी सी कविता में । भई वाह ।
बहुत ही सुन्दर! शार्ट कट मेथड्। सभी बातें मन की शामिल कर ली जावे। बधाई।
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