कुछ ख़्वाब थे मुट्ठी में
रेत के कणों की तरह
शनै: शनै: कब बिखरे
सफ़र में एहसास न हुआ
बस, कुछ बचा है
तो एक ख़्वाब जहन में
क्या जहन में बसा ख़्वाब
ले जायेगा मंजिल तक
अब वो पल हैं सामने
जो मुझे झकझोर रहे हैं
कह रहे हैं रख हौसला
चलता चल, बढता चल
एक नई मंजिल की ओर
जहन में बसा ख़्वाब
भी तो आखिर ख़्वाब है !
8 comments:
सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
कह रहे हैं रख हौसला
चलता चल, बढता चल
एक नई मंजिल की ओर
age badhane par hi nai manjil melegi....
बहुत सुन्दर लिखा है बधाई।
उदय भाई
टेंशन लेने का नहीं टेंशन देने का। निराशा अच्छी बात नहीं है। मैं हूं ना...
nice
ख्वाब और हकीकत का द्वंद. धन्यवाद.
nice one.
ख्वाबोँ की हकीकत से रुबरु कराने के लिये धन्यवाद
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