"यौन शिक्षा" एक ऎसा विषय जिस पर अभी भी मतभेद जारी हैं, कुछ बुद्धिजीवी वर्ग इसके पक्षधर हैं तो कुछ निसंदेह इसके विरोधी भी हैं ... विरोध भी जायज है क्योंकि ये विषय ही ऎसा है कि कोई भी नहीं चाहेगा कि उसके बच्चों को अनावश्यक रूप से समय पूर्व ही "यौन शिक्षा" से अवगत कराया जाये ... वो इसलिये भी यदि उन्हें समय पूर्व ही "यौन शिक्षा" से शिक्षित करने का प्रयास किया जायेगा तो वे उसे प्रेक्टीकल तौर पर व्यवहारिक जीवन में अमल भी कर सकते हैं जिसके दुष्परिणामों से भी इंकार नहीं किया जा सकता ... यह भी स्वभाविक है कि यह विषय पढने और पढाने दोनों ही द्रष्टिकोण से असहजता को जन्म देता है।
सर्वप्रथम तो मैं यहां यह स्पष्ट करना चाहूंगा कि "यौन शिक्षा" से तात्पर्य "शिक्षा" से है न कि "कामक्रीडा" से ... इसलिये इसमे इतनी भयभीत होने वाली बात नहीं है ... यदि बच्चों को समय रहते शिक्षित नहीं किया जाता है तो भी नासमझी में उठे किसी प्रायोगिक कदम के कारण समस्याओं से जूझना पड सकता है जो अक्सर व्यवहारिक रूप में हमें सुनने मिल जाती हैं ... अक्सर ऎसा देखा व सुना जाता है कि अज्ञानता के कारण भी बच्चे यौन संबंधी ऎसे प्रयोग कर बैठते हैं जिसके परिणाम अहितकार ही होते हैं ।
यहां पर "यौन शिक्षा" से मेरा सीधा-सीधा तात्पर्य सामान्य व्यवहारिक ज्ञान से है जो बच्चों के लिये बेहद जरूरी है जिसका ज्ञान उन्हें होना ही चाहिये ... यह ज्ञान न सिर्फ़ लडकियों को वरन लडकों को भी होना चाहिये वो इसलिये कि "यौन संबंधी समस्याओं" का शिकार कोई भी हो सकता है ... यह ज्ञान "यौन शोषण" से बचाव के लिये ही जरुरी नहीं है वरन यौन संबंधी अपराध बोध के लिये भी आवश्यक है ... शिक्षा व ज्ञान के परिणाम देर-सबेर हितकर ही होते हैं ... यहां पर यह भी स्पष्ट कर देना मैं आवश्यक समझता हूं कि "यौन शिक्षा" अर्थात यौन संबंधी सामान्य व्यवहारिक ज्ञान एक "चाकू" की तरह है जिसका सही इस्तमाल सब्जी काटने या आपरेशन के रूप में किया जाये तो हितकर है और प्रयोग के तौर पर किसी के हाथ या गला काटने में किया जाये तो अहितकर है ।
16 comments:
यौन शिक्षा के तहत सामान्य व्यवहारिक ज्ञान की आवश्यक्ता को कतई नहीं नकारा जा सकता.
बहुत ही उम्दा विवेचना / यौन शिक्षा व्यवहारिकता के बुराइयों और अच्छाइयों को समझाते हुए दी जानी आवश्यक है ,क्योकि व्यवहार में अगर अच्छाई आ जाएगी तो हर काम में उसका पभाव दिखेगा / ऐसा हम सब लोगों को मिलकर ही करना होगा ,क्योकि स्वार्थी लोग हर चीज को बेचने के तरीके से करते हैं जिससे उसका असल उद्देश्य ही बदल जाता है /
बहुत अच्छे,शिक्षण ही क्यों?
अलग से डिग्री कोर्स शुरु होना चाहिए इस विषय पर। जिससे लोगों को इस विषय पर बात करने में झिझक ना हो और टीचर/मैम भी पढ़ा सकें।
बने-बने
इस शृंखला को भी पढ़िएगा:
http://jaihindi.blogspot.com/2009/06/1.html
बिल्कुल सही कहा आपने .....इस बदलते ज़माने के साथ आज के समय में बच्चों ...को यौन शिक्षा जरूरी है ....बस इसे एक ज्ञान के रूप में और जागरूकता के रूप में शिक्षा दी जाये .
bahut sundar our saarthak vivechanaa. mai aapke vichaar se 100% sahamat hun.
देखो भाई, ये पार्ट-1, पार्ट-2, पार्ट-3 वाली बात सही नहीं है। ठीक है कि लम्बी पोस्ट को कम पाठक मिलते हैं, पर आगे पढ़वाने के लिए इंतजार करवाना भी तो ठीक नहीं है।
बाकी, यौन शिक्षा आज की आवश्यकता है और इसमें कोई बुराई मुझे तो नजर नहीं आती। हाँ, कठमुल्ला टाइप के लोग जरूर विरोध कर रहे हैं।
की फरक पैंदा ए।
बिल्कुल सही कहा आपने ....
उत्तम प्रस्तुति!
अब भी हमारे यहाँ के प्रगतिवादी लोग इस शिक्षा के पक्ष में हैं न जानें क्यों। उनका कहना है कि इस शिक्षा से सेक्स अपराध रुकेगें तथा बच्चे सेक्स के प्रति जागरुक होगें। जहाँ तक मुझे लगता ऐसे लोग जो भी कहते है वह बेबुनियाद है। पश्चिमी देशों मे लगभग हर जगह यह शिक्षा मान्य है, तो वहाँ क्या होता है, यह किसी से छिपा नहीं है। अगर अकेले ब्रिटेन को ही देखा जाये तो वहाँ की हालत क्या है इस शिक्षा के बावजुद बेहद शर्मसार करने वाली जो की हमारे समाज में बहुत बडा अपराध माना जाता है। वहाँ की लडकियाँ शादि से पहले ही किशोरावस्था मे माँ बन जाती है। कम उम्र में मां बनने वाली लड़कियों के मामले में ब्रिटेन, पश्चिमी यूरोप में सबसे आगे है। संडे टेलिग्राफ में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक बड़ी संख्या में गर्भपात के बावजूद स्कूल जाने वाली लड़कियों में गर्भधारण की संख्या तेजी से बढ़ी है। स्वास्थ्य विभाग की वेबसाइट के हवाले से अखबार ने लिखा है कि हर साल 18 साल से कम उम्र की लगभग 50,000 लड़कियां गर्भवती हो जाती हैं।अगर यौन शिक्षा से ये सब होता है तो क्या इसे हमें मान्यता देनी चाहिए।
इस तरह ब्रिटिश सरकार ने पहली बार यह माना है कि यौन शिक्षा कम उम्र की लड़कियों में गर्भधारण पर लगाम लगाने में नाकाम रही है। अब बताईये ऐसी शिक्षा की क्या जरुरत है हमारे समाज को। हमारी सरकार हमेशा से पश्चिमी देशो के परिवेश को अपनाना चाहती है लेकिन क्यों। वहाँ के बच्चो को शुरु से ही यौन शिक्षा दि जाती है तो परिणाम क्या है हम सब जानते है।
आप बहुत ही गंभीर विषयों पर काम कर रहे हैं। देखिए जब-जब गंभीर विषयों पर कोई अपनी बात रखता है तो उसे निराश करने वाले लोग मिलते ही है। मैं आपको निराश नहीं कर रहा हूं। आप लगे रहे। किसी निष्कर्ष पर पहुंचे।
अब तक देश के लगभग 2 लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं जोकि पाक समर्थित आतंकवाद में मरने वालों की संख्या से कई गुना ज़्यादा हैं। ऐसे ही ग़रीबों-वंचितों के दिलों में निराशा और अवसाद और फिर आक्रोश पैदा होता है। समाज शस्त्र के नियम के अनुसार समस्या से ध्यान हटाने के लिए नेता लोग मनोरंजन के साधन बढ़ा देते हैं लेकिन मनोरंजन के साधन आए दिन ऐसी हिंसक फिल्में दिखाते हैं जिनमें जनता का शोषण करने वाले नेताओं की सामूहिक हत्या को समाधान के रूप में पेश किया जाता है। व्यवस्था और कानून से अपना हक़ और इन्साफ़ मिलते न देखकर हिंसा के रास्ते पर आगे बढ़ते हैं। इनकी समस्या के मूल में जाने के बजाय नेता लोग इसे इसलामी आतंकवाद, नक्सलवाद और राष्ट्रवाद का नाम देकर अपनी राजनीति की रोटियां सेकने लगते हैं। व्यवस्था की रक्षा में फ़ौजी मारे जाते हैं और उनके आश्रित नौकरी और पेट्रोल पम्प आदि पाने के लिए बरसों भटकते रहते हैं। उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं होता। देश की व्यवस्था को सम्हालने वाले तो उन लोगों की भी ख़बर नहीं लेते जिन्होंने देश का 70 हज़ार करोड़ रूपया विदेशों में जमा कर रखा है लेकिन सरकार उस मध्यवर्गीय क्लर्क की सैलरी से आयकर काटना नहीं भूलती जिसे अपने बच्चों की फ़ीस देना और उनका इलाज कराना तक भारी होता जा रहा है।
समस्याएं बहुत सी हैं लेकिन सारी समस्याओं का कारण अव्यवस्था है। यह ‘अव्यवस्था’ केवल इसलिए है कि व्यवस्था को चलाने वाले नेता और उन्हें चुनने वाली देश की जनता अधिकांशतः अपने फ़र्ज़ की अदायगी को लेकर ‘ईमानदार’ नहीं है।
जब उनके दिल में ‘ईमान’ ही नहीं है तो ईमानदारी आयेगी भी कैसे ?
ईमान क्या है ?
ईमान यह है कि आदमी जान ले कि सच्चे मालिक ने उसे इस दुनिया में जो शक्ति और साधन दिए हैं उनमें उसके साथ -साथ दूसरों का भी हक़ मुक़र्रर किया है। इस हक़ को अदा करना ही उसका क़र्ज़ है। फ़र्ज़ भी मुक़र्रर है और उसे अदा करने का तरीक़ा और हद भी। जो भी आदमी इस तरीक़े से हटेगा और अपनी हद से आगे बढ़ेगा। मालिक उस पर और उस जैसों पर अपना दण्ड लागू कर देगा। इक्का दुक्का अपवाद व्यक्तियों को छोड़ दीजिए तो आज हरेक आदमी बैचेनी और दहशत में जी रहा है। हरेक को अपनी सलामती ख़तरे में नज़र आ रही है।
सलामती केवल इस्लाम दे सकता है
लेकिन कब ?
सिर्फ़ तब जबकि इसे सिर्फ़ मुसलमानों का मत न समझा जाए बल्कि इसे अपने मालिक द्वारा अवतरित धर्म समझकर अपनाया जाए। इसके लिए सभी को पक्षपात और संकीर्णता से ऊपर उठना होगा और तभी हम अजेय भारत का निर्माण कर सकेंगे जो सारे विश्व को शांति और कल्याण का मार्ग दिखाएगा और सचमुच विश्व गुरू कहलायेगा।
nice
सही कहा सर जी.... हमने भी बहुत पहले इस बारे में लिखा था और बहुत उल्टा सीधा सुना था......पर अब और अधिक जरूरत है इसकी जबसे हमारे बच्चों का यौन शोषण होना शुरू हुआ है.
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
कुछ वन्दे ईश्वरम पर गौर करें जो कह रहे हैं सलामती केवल इस्लाम दे सकता है .... ऐसे लोगों के लिये क्या हमदर्दी की जरूरत है या फिर... रही यौन शिक्षा की बात तो मिथिलेश की बात से सहमत...
इस विषय की सामान्य व्यावहारिक जानकारी का होना तो नितान्त आवश्यक है......
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