बड़ा मुश्किल सफ़र है, आज का ये दिन मेरे यारा
किसी ने कह दिया है, मुझे तुम सांथ ही रखना !
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जिनके पांव, घर-आँगन से बाहर नहीं पड़ते
उन्हें कैसे खबर हो, शहर में मेला लगा है !
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लड़ रहे हैं, अड़ रहे हैं, भिड़ रहे हैं
पर शान से सब चल रहे हैं !
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जिस तरफ सिक्के गिरें, नेता वहां मौजूद हैं
ये राजनैतिक दांव हैं, ये राजनैतिक पेंच हैं !!
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आज की सब, शीत की लहरें नहीं हैं
गुन-गुनी धूप संग, है बिखरा सवेरा !
2 comments:
sunder rachanaa hai.
धूप गुनगुनी,
कष्ट में कमी।
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