साहित्यिक समर में
अब तक
समय समय पर
शब्द नहीं
चेहरे तलाशे जाते रहे हैं
चेहरे तलाशे गए हैं, चेहरे पूजे गए हैं !
पर, इस बार
साहित्यिक समर में
समय है
नए कदमों के सांथ
नई राह की ओर बढ़ने का
नए पदचिन्ह के निशां पीछे छोड़ने का !
उम्मीद है
इस बार, चेहरे नहीं टटोले जाएंगे !
उम्मीद है
इस बार, चेहरे नहीं पूजे जाएंगे !
उम्मीद है
इस बार, चेहरे नहीं, शब्द विजित होंगे !!
7 comments:
uday bhaai bhtrin rchna ke liyen bdhaai .akhtar khan akela kota rajsthan
शब्द-क्षेत्र में शब्द पूज्य हो।
बेहतरीन प्रस्तुति
कल 18/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है,जिन्दगी की बातें ... !
धन्यवाद!
shabd vijit honge..sateek baat achchi prastuti.
बहुत ही बढ़िया सर!
सादर
hmmmmmmmmmmm
उम्मीद तो है....
बढ़िया !!
शब्द की जय हो विजय हो
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