Sunday, January 15, 2012

... भूत कहलाने की ठानी है !

सच ! अब कहें तो कैसे कहें कि ये अपना शहर है
शहर के सारे 'खुदा', हमें मुसाफिर कहते फिरे हैं !
...
करने दो उन्हें आलोचनाएँ, उनका अधिकार है
एक राह पकड़ के चलना, अपना अधिकार है !
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दुम कटे कुत्ते की दुम, सीधी कहाँ से हो
भौं-भौं है शान जिसकी, वो चुप कैसे हो !
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जब से सुना है, साहित्यिक संसार में भूतों की गुणगानी है
ठीक तभी से हमने भी, जीते जी भूत कहलाने की ठानी है !
...
आज को कल, तो कल को आज, हो जाना है
ठहरना है किसे ? सभी को चलते जाना है !!!

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

बस आगे बढ़ते जाना है।