आज हर आदमी की जेब में एक आईना है
उसे खुद की कुरूपता से क्या लेना-देना है !
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कुछ गूंगे, कुछ अंधे, तो कुछ बहरे हैं
क्या शहर इसी को कहते हैं ?
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बन्दर हो, या हो मदारी
करतब नहीं होगा, तो ताली नहीं होगी !
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हुनर का फर्क तो ज़माना कर ही लेगा
क्यूँ न दोनों ही हांथों से, एक-एक मूर्ती तराशी जाए !
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परम्पराओं की दुहाई देकर, लोग चेले बन रहे हैं
सुनते हैं, समझदार पीढी है !!
1 comment:
वाह, गहरे..
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