एक दिन मैंने भी सोचा
क्यों न - मैं भी गंगा-स्नान करूँ !
इसलिए,
ब्रह्ममुहूर्त में पहुँच गया, मैं सीधे गंगा तट पे !
पर, वहां भीड़ देख चंडालों की
मैं थोड़ा-सा सहम गया !
सारे गंगा तट पर -
भीड़ बड़ी थी, चोरों और चंडालों की !
डुबक-डुबक ...
भीड़ देख कर मैंने सोचा -
नहीं, अभी नहीं वो घड़ी है आई
कि -
मैं गंगा-स्नान करूँ !!
आज, यहाँ गंगा तट पर -
पाप-पुण्य की बेला है
न जाने -
किसको, क्या मिलना - क्या देना है ?
चहूँ ओर ... डुबक-डुबक ...
चलो चलें ...
देखेंगे, फिर देखेंगे, फिर किसी दिन देखेंगे !
आज नहीं वो बेला है
सच ! आज, गंगा-स्नान झमेला है !!
2 comments:
ढूढ़ी, कोई जगह बची है?
गंगा में भी लूट मची है..
जाकी रही भावना जैसी...
गन्गा सो देखी तिन तैसी॥
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