आज फ़िर, उसके चेहरे पे हंसी होगी
मेरे घर की खप्पर, तूफ़ानों ने जो उडा रक्खी है।
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सिर पे बांध के कफ़न, वो घर से निकल आया था
तूफ़ान जब ठहरे, तो लोगों ने उसे 'खुदा' माना था।
मेरे घर की खप्पर, तूफ़ानों ने जो उडा रक्खी है।
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सिर पे बांध के कफ़न, वो घर से निकल आया था
तूफ़ान जब ठहरे, तो लोगों ने उसे 'खुदा' माना था।
6 comments:
waah....bahut badhiya sir...
सिर पे बांध के कफ़न, वो घर से निकल आया था
तूफ़ान जब ठहरे, तो लोगों ने उसे 'खुदा' माना था
ग़ज़ब का शेर है ... खुदा ऐसे ही बनते हैं ...
दोनों शेर बढ़िया ।
पहला बेहतरीन। दूसरा लाजवाब।
बहुत बढ़िया
प्रभावशाली लेखन।
( आइये पढें ..... अमृत वाणी। )
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