कहीं भी धूप नहीं है
कहीं भी छाँव नहीं है
ये तूने क्या कर दिया राजन ...
कहीं खुशियों सा शोर नहीं है
कहीं मातम सा सन्नाटा नहीं है
लोग ज़िंदा हैं, या मर गए हैं
कोई आहट नहीं है
लोग हो रहे हैं नोट, हजार के, पाँच सौ के
पर कहीं कोई सौदाई नहीं हैं
ये तूने क्या कर दिया राजन ...
बस्तियों, शहरों, गलियों, मोहल्लों में
कहीं को भेद नहीं है ..... ?
~ श्याम कोरी 'उदय'
कहीं भी छाँव नहीं है
ये तूने क्या कर दिया राजन ...
कहीं खुशियों सा शोर नहीं है
कहीं मातम सा सन्नाटा नहीं है
लोग ज़िंदा हैं, या मर गए हैं
कोई आहट नहीं है
लोग हो रहे हैं नोट, हजार के, पाँच सौ के
पर कहीं कोई सौदाई नहीं हैं
ये तूने क्या कर दिया राजन ...
बस्तियों, शहरों, गलियों, मोहल्लों में
कहीं को भेद नहीं है ..... ?
~ श्याम कोरी 'उदय'
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