Tuesday, November 8, 2016

मधुशाला

आ, चल, बैठें, देखें,
है कितनी .. कड़वी-मीठी .. मधुशाला ...
बिना चखे
हम कैसे कह दें, है पसंद नहीं हमें मधुशाला,

भीड़ लगी तुम देखो कितनी
संग पी रहे .. हिन्दू-मुस्लिम ..
अमीर-गरीब ...
मिल-बाँट कर ... मधुशाला ....

छोड़, उतार, अहं का चोला
चल, जांचें, परखें, मधुशाला ...
बिना चखे
हम कैसे कह दें, है पसंद नहीं हमें मधुशाला !

~ श्याम कोरी 'उदय'

1 comment:

Deepak Saini said...

भीड़ लगी तुम देखो कितनी
संग पी रहे .. हिन्दू-मुस्लिम ..
अमीर-गरीब ...
मिल-बाँट कर ... मधुशाला .

बस यही आकर सब एक होते है
बहुत खूब