Wednesday, October 12, 2016

जख्म ...

अच्छे-खासे दिन थे फिर भी चाह रहे थे अच्छे दिन 
अब.. पछताए होत का जब चिड़िया चुग गई खेत ? 
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अब... कुछ बचा नहीं है सब लुटेरों के हाथ है 
ट्रेन.. दाल.. प्याज.. जब चाहेंगे तब लूट लेंगे ? 
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गर, दिल को सुकूं मिले तो....उ. फिर तेरी बात हो
वर्ना ! तेरे बगैर भी जिंदगी कट रही है शान से ?
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उनसे.. फिर से मिलने की शर्त पे, हुआ बिछड़ने का करार था
उफ़ ! ... जालिम... तनिक खुदगर्ज.. तनिक फरेबी निकला ?
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फिर से कोई जख्म हरा-भरा सा दिख रहा है 'उदय' 
न जाने कौन ... रात... ख़्वाब में छेड़ गया है मुझे ?

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