धुंध छाया है शहर में, बस इक तेरी ही याद का
गर भूलना चाहूँ तुझे, तो तू बता मैं क्या करूँ ?
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बगैर तमाशे के............ शोर
क्या वजह हो सकती है 'उदय' ?
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उनकी खामोशियों ने 'उदय', हमें शायर तो बना दिया
मगर अफसोस, दिल........ औ जज्बात नहीं बदले ?
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आईना देख-देख के, मत मुस्कुराया करो
किसी दिन, खुद की नजर न लग जाए ?
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गर कोई शर्त है, तो खुलकर बयां कर दो मेरे यारा
वैसे भी,... नुक्ताचीनी की हमारी आदत नहीं है ?
2 comments:
बहुत खूब, दमदार
धुंध छाया है शहर में, बस इक तेरी ही याद का
गर भूलना चाहूँ तुझे, तो तू बता मैं क्या करूँ ?
Bahut accha uday ji..
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