सच का आइना अब देखा नहीं जाता
खुदगर्ज चेहरा साफ़ नजर आने लगा है !
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चलो एक और मंदिर-मस्जिद बना लें हम
सिवाय इसके, कुछ नेकी हम कर भी नहीं सकते !
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है खबर मुझको, 'खुदा' नाराज बैठा है
क्या करें, बिना गुनाह के रहा नहीं जाता !
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चलो एक और टुकड़ा बेच दें, हम शान से ईमान का
बद हुए, बदनाम हुए, क्या हुआ, दौलत तो आने दो !
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ज़िंदा भूख से तड़फते-बिलखते हैं
कोई बात नहीं, चलो फूलों से मुर्दे सजा लें !
13 comments:
सच का आइना अब देखा नहीं जाता
खुदगर्ज चेहरा अब नजर आने लगा है !
......आज के समय में सारी दुनिया ही खुदगर्ज़ है
खुदगर्जी कि सचाई बयाँ कि है आपने..
उदय जी
हम तो आपकी भावनाओं को शत-शत नमन करते हैं.
"चलो एक और मंदिर-मस्जिद बना लें हम
सिवाय इसके, कुछ नेकी हम कर भी नहीं सकते"
शानदार शेर ! सुदर रचना.
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आपने सदा ही मेरा उत्साह बढ़ाया है...साधुवाद
आपका यहाँ भी स्वागत रहेगा
http://padhiye.blogspot.com/
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ज़िंदा भूख से तड़फते-बिलखते हैं
कोई बात नहीं, चलो फूलों से मुर्दे सजा लें !
bahut khoob..
उदय जी,
आदमी की फितरत पर अच्छा व्यंग्य किया है-
है खबर मुझको, 'खुदा' नाराज बैठा है
क्या करें, बिना गुनाह के रहा नहीं जाता !
शुभकामनाओं के साथ ,
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
बहुत ही दिलकश अंदाज़ में आपने इन्सानी फ़ितरत का चिट्ठा खोला है ! मेरे ब्लोग पर भि एक नज़र आएं !
सशक्त व्यंग।
ज़िंदा भूख से तड़फते-बिलखते हैं
कोई बात नहीं, चलो फूलों से मुर्दे सजा लें !
वाह, बहुत खूब...
तल्ख़ सच्चाइयों को बख़ूबी बयां किया है आपने...
bahut khoob...
mere blog par bhi kabhi aaiye
Lyrics Mantra
har do lina lajawab.
है खबर मुझको, 'खुदा' नाराज बैठा है
क्या करें, बिना गुनाह के रहा नहीं जाता !
और आखिरी शेर बहुत ही अच्छा लगा। सच ब्यान किया है आपने।
वाह जी बहुत खुब आज के हालात पर आप की यह कविता बिलकुल सटीक लगी . धन्यवाद
उदय भाई, आपके शेर समाज का आईना होते हैं। बधाई स्वीकारें।
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आपका सुनहरा भविष्यफल, सिर्फ आपके लिए।
खूबसूरत क्लियोपेट्रा के बारे में आप क्या जानते हैं?
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