Monday, January 16, 2012

खंजरों का जखीरा ...

मेरा दोस्त
दिमाग में खंजरों का जखीरा रख
मुस्कुरा रहा है
और मुस्कुराते हुए आज फिर उसने
मुझे अपना कहा है !
गर
पहले की तरह
इस बार भी, मैं चुप ही रहा तो
तय है !
पीठ पे घाव -
औ ताउम्र को एक और निशां
मुझे मिल जाएगा !!

1 comment:

प्रवीण पाण्डेय said...

इन निशानों से बचकर चलना पड़ेगा।