Tuesday, January 31, 2012

... क्यूँ न आँखें ठहरें ?

वजह जो भी रही हो, चाहतों में नफरतों की
पर, खामोशियों में क्या छिपा रक्खा है तूने ?
...
सच ! क्या करूँगा, अब मैं 'खुदा' होकर
जब दोस्त होकर भी, दोस्त हो न सका !!
...
न जाने किस घड़ी, तूफ़ान बस्ती में चला आए
किसी न किसी हाँथ को, तुम थाम के चलो !!!
...
तेरी खामोशियाँ में भी तूफानों सी सरसराहट है
कहो, गर कुछ नहीं, तो इतना सन्नाटा क्यूँ है ?
...
सच ! ख़्वाब है, या हकीकत है जमीं पे
कहो, इस नूर पे, क्यूँ न आँखें ठहरें ?

1 comment:

vidya said...

वाह!!
बेहतरीन...