Wednesday, February 8, 2012

बहुत खाली थी, बंद मुट्ठी मेरी ...

नहीं मिला उसे कुछ, दिल तोड़ कर मेरा
कितना तड़फा हूँ, ये उसे आजमाना था !

रंज करता, तो करता कब तक
जाके उसे, मुझे ही मनाना था !

सच ! कहाँ था जोर, मेरा मुझ पर
वक्त के हांथों, मैं एक खिलौना था !

मेरी फ़रियाद पे भी खामोश ही रहा
वो 'खुदा' है उसे ये, मुझे बताना था !

बहुत खाली थी, बंद मुट्ठी मेरी
मगर उसको, तो आजमाना था !!

2 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

सच है, सब छोड़ देने से सब मिलने लगता है

रश्मि प्रभा... said...

मेरी फ़रियाद पे भी खामोश ही रहा
वो 'खुदा' है उसे ये, मुझे बताना था !...waah