देखकर अफसोस है कि -
तुम्हारे -
चेले-चपाटे
भाई-भतीजे
गुरु-शिष्य
तुम्हें, आगे बढाने में रूचि नहीं रखते !
क्यों, किसलिए ?
वे सभी के सभी तुम्हारे
कच्चे, अधपक्के लेखन पर खामों-खां
हाँ में हाँ,
मिलाते दिखाई देते हैं !
वे चाहते ही नहीं
कि -
तुम जीते जी, या मरने के बाद
कभी भी -
राष्ट्रीय पहचान पा सको !
दुःख ही होता है
देखकर -
तुम्हारे घटिया लेखन पर
उनकी
झूठी-मूठी शाबासी !
उनकी शाबासी से
तुम कितने खुश होते हो !
देखा है मैंने
कुछ पल को -
तुम झूमने से लगते हो !!
खैर, अब तो तुम्हारी -
आदत पड़ गई है, शाबासी की !!
3 comments:
कुछ पर शाबासी झूठी है,
कुछ पर वर्षों से रूठी है।
उदय जी, आप लिखते बहुत अच्छा हैं.
bilkul sahi kaha aapne...achchi rachna...welcome to my blog...aur mujhe jhuthi shabashi mat dijiyega..sach sach bataiyega :)
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