Saturday, December 17, 2011

शाबासी ...

देखकर अफसोस है कि -
तुम्हारे -
चेले-चपाटे
भाई-भतीजे
गुरु-शिष्य
तुम्हें, आगे बढाने में रूचि नहीं रखते !

क्यों, किसलिए ?
वे सभी के सभी तुम्हारे
कच्चे, अधपक्के लेखन पर खामों-खां
हाँ में हाँ,
मिलाते दिखाई देते हैं !

वे चाहते ही नहीं
कि -
तुम जीते जी, या मरने के बाद
कभी भी -
राष्ट्रीय पहचान पा सको !

दुःख ही होता है
देखकर -
तुम्हारे घटिया लेखन पर
उनकी
झूठी-मूठी शाबासी !

उनकी शाबासी से
तुम कितने खुश होते हो !
देखा है मैंने
कुछ पल को -
तुम झूमने से लगते हो !!

खैर, अब तो तुम्हारी -
आदत पड़ गई है, शाबासी की !!

3 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

कुछ पर शाबासी झूठी है,
कुछ पर वर्षों से रूठी है।

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

उदय जी, आप लिखते बहुत अच्छा हैं.

Monika Jain said...

bilkul sahi kaha aapne...achchi rachna...welcome to my blog...aur mujhe jhuthi shabashi mat dijiyega..sach sach bataiyega :)