Wednesday, May 26, 2010

शेर

टूटा था कभी, टूटेगा 'उदय'
सफ़र में फ़ासले हैं, गुजर ही जायेंगे

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देखना चाहते हैं हम भी, तेरी 'इबादत' का असर
कम से कम, इसी बहाने 'खुदा' के दीदार तो होंगे ।

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मेरी हस्ती का मत पूछो, कहां तक है मेरी हस्ती
जहां पे पस्त है दुनिया, शुरु होती मेरी हस्ती ।

13 comments:

M VERMA said...

मेरी हस्ती का मत पूछो, कहां तक है मेरी हस्ती
जहां पे पस्त है दुनिया, शुरु होती मेरी हस्ती ।
कायल हैं हम तो आपकी हस्ती के. सुन्दर शेर

honesty project democracy said...

सुन्दर अभिव्यक्ति /

Kumar Jaljala said...

शेर लिख लेने से कोई शेर नहीं हो जाता है. आदमी तभी शेर होता है जब वह अपने भीतर आलोचना सुनने की आदत डाल लेता है... डम-डम डम, निबूंडा-निबूंडा के कांचा-कांचा पका निबूंडा लाई लो...ढफली वाले ढफली बजा...

कडुवासच said...

@Kumar Jaljala
...स्वागत है जलजला जी !!!

कडुवासच said...

@Kumar Jaljala

... जलजला जी ...बुंदेलखंड में एक गीत है ....

"...ओ गोरी घुंघटा न डाल
हम तो चुनरिया से चीन गए हैं ..."

संजय भास्‍कर said...

बेहद ही खुबसूरत ........

संजय भास्‍कर said...

क्या आशिकाना अंदाज़ है ........ बहुत खूब .......

kunwarji's said...

"देखना चाहते हैं हम भी, तेरी 'इबादत' का असर
कम से कम, इसी बहाने 'खुदा' के दीदार तो होंगे!"

बहुत अच्छे उदय जी.....

जीतना चाहते हो हार कर भी.....

सब अपना बना लिया उस पर वार कर भी...

कुंवर जी,

डॉ टी एस दराल said...

न टूटा था कभी, न टूटेगा 'उदय'
सफ़र में फ़ासले हैं, गुजर ही जायेंगे ।

क्या बात कही है । सुन्दर ।

jamos jhalla said...

लगता है की फांसले तय करके ही उदय हुए हो बधाई

दिगम्बर नासवा said...

देखना चाहते हैं हम भी, तेरी 'इबादत' का असर
कम से कम, इसी बहाने 'खुदा' के दीदार तो होंगे

वाह उदय जी .. कमाल के तेवर हैं इस शेर में .. बहुत खूब ...

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर रचना जी, धन्यवाद.
वेसे लगता है इस जलजले को आप से प्यार हो गया है

shama said...

Aisa gazab likhte hain,ki,dang rah jatee hun!