सुना है, उनकी पवित्रता......है गंगा-सी पवित्र
जी चाहे है, ............... एक डुबकी लगा लूँ ?
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खुद की राख, औ खुद का कमंडल, और खुद ही खुद की जय-जयकार
बस यही आलम है 'उदय', आज के साहित्यिक नागा साधुओं का ??
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जिसे हम ख़त समझ रहे थे, वो वारन्ट निकला
खूब लिया है उन्ने,..... वेलेन्टाइन-डे का बदला ?
3 comments:
बहुत सुन्दर,व्यंगात्मक प्रस्तुति.
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि कि चर्चा कल मंगल वार 19/2/13 को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका हार्दिक स्वागत है
जय हो..हम तो दूर से ही देख रहे हैं।
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